छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपना पहला विधानसभा चुनाव 1993 में जीते थे। अब वह 2023 की तैयारी में जुटे हैं। 1993 से 2023 तक चुनावी सीन कैसे बदला है, इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने अपने नजरिए से इसे बताया। सोमवार (18 सितंबर) को रायपुर में द इंडियन एक्सप्रेस समूह के कार्यक्रम ‘जनसत्ता मंथन’ में सीएम ने इस बारे में कहा कि उन दिनों दीवारों पर नारे लिखने (वॉल राइटिंग) का बड़ा महत्व था। अगर किसी उम्मीदवार के लिए दीवारों पर नारे लिखने के लिए कार्यकर्ता नहीं भेजे गए तो वह नाराज हो जाता था। उन्होंने कहा- आज सोशल मीडिया से प्रचार होता है। हालांकि, वॉल राइटिंग का महत्व आज भी है।
सीएम बघेल ने एक और अंतर यह बताया कि उन दिनों एक मोहल्ले में एक व्यक्ति से मिल लिया तो उस मोहल्ले का वोट मिलना तय हो जाता था। आज हालत यह है कि एक परिवार का एक-एक व्यक्ति उम्मीद करता है कि उम्मीदवार उनसे आकर मिले।
कार्यक्रम में भूपेश बघेल के पहले चुनाव से जुड़े एक मशहूर किस्से का भी जिक्र हुआ। किस्सा यह है कि जब भूपेश बघेल पहली बार चुनाव लड़े थे, तो पिता नंद कुमार बघेल ने अपना वोट अपनी पसंद के किसी और उम्मीदवार को दिया था। उन्होंने परिवार से ज्यादा महत्व अपनी राजनीतिक निष्ठा को दिया था। सोमवार (18 सितंबर) को द इंडियन एक्सप्रेस समूह के कार्यक्रम ‘जनसत्ता मंथन’ में इस किस्से का जिक्र छिड़ा तो कुछ नई बात निकल कर सामने आई।
कार्यक्रम में सीएम भूपेश बघेल बतौर मेहमान शामिल थे। जनसत्ता डॉट कॉम के संपादक विजय कुमार झा ने सीएम से पूछा कि पिता का वोट अब मिलता है या नहीं? जवाब में सीएम बघेल ने बताया, “पहले चुनाव में तो उन्होंने मुझे वोट नहीं दिया था। वह वोट देने एक फोटोग्राफर को लेकर गए थे और मेरे खिलाफ चुनाव लड़ रहे पुरुषोत्तम कौशिक को वोट देते हुए फोटो खिंचवाई थी। वह फोटो अखबार में भी छपी थी। निर्वाचन आयोग ने कोई कार्रवाई भी नहीं की उन पर। वह समाजवादी हैं, इसलिए उन्होंने कौशिक को वोट दिया था। अब तो बैलेट पेपर रहा नहीं। ईवीएम पर मतदान होता है। अब मैं कैसे पता करूं कि उन्होंने किसे वोट दिया। संविधान में तो गुप्त मतदान की व्यवस्था है।”
“आशीर्वाद मांगना नहीं भूलता
सीएम बघेल ने बताया, “मैं उन्हें वोट के लिए नहीं मनाता। लेकिन नामांकन से पहले मां-पिता से आर्शीवाद लेने जरूर जाता रहा हूं। अब तो मां नहीं रहीं, तो अगले चुनाव में सिर्फ पिताजी से आर्शीवाद लूंगा।”
किसान परिवार से सीएम की कुर्सी तक
भूपेश बघेल का जन्म साल 1961 में एक किसान परिवार में हुआ था। साल 1986 में भारतीय युवा कांग्रेस में शामिल होकर बघेल ने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था। 1990 में उन्हें इसका अध्यक्ष बनाया गया। 1993 में वह पाटन से मध्य प्रदेश विधानसभा के विधायक के रूप में चुने गए। अगले चुनाव में भी उन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी। 2000 में छत्तीसगढ़ के निर्माण के बाद भी बघेल अपनी सीट पर जीतते रहे। उन्होंने 2003 से 2008 तक छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के उपनेता के रूप में कार्य किया।
कॉलेज के दिनों में कलेक्टर ऑफिस का किया था घेराव
भूपेश बघेल ने रायपुर के साइंस कॉलेज से पढ़ाई की है। पिछले महीने बिलासपुर में कॉलेज स्टूडेंट्स से बातचीत में सीएम ने अपने कॉलेज के दिनों का एक किस्सा सुनाया, जिसके मुताबिक उन्होंने हॉस्टल में पंखा लगवाने के लिए कलेक्टर ऑफिस का घेराव कर दिया था। उनके कॉलेज में तीन हॉस्टल थे और किसी में पंखा नहीं था। पंखा लगाने की मांग के लिए विद्यार्थियों ने कलेक्टर ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया।
दिलचस्प यह है कि तब अजीत जोगी (छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री) रायपुर के कलेक्टर हुआ करते थे। उन्होंने प्रदर्शन देखकर विद्यार्थियों को बातचीत के लिए बुलाया। स्टूडेंट्स ने पंखे की मांग रखी। इस प्रदर्शन के आठ दिन बाद तीनों हॉस्टल में पंखा लगा। बाद में अजीत जोगी ने राजीव गांधी के कहने पर कलेक्टर की नौकरी छोड़ राजनीति में आ गए और छत्तीसगढ़ के पहले सीएम बने।