लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद बीजेपी अब तीन राज्यों में होने वाले चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव अक्टूबर में होने हैं। झारखंड में इंडिया गठबंधन में शामिल झामुमो, कांग्रेस और राजद की सरकार है।
बीजेपी इंडिया गठबंधन की सरकार को सत्ता से हटाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है और उसने दो बड़े नेताओं- कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को राज्य में प्रभारी व सह प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी है। लेकिन झारखंड का चुनाव बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। पूर्व में पार्टी के कद्दावर नेता रहे सरयू राय चुनाव से ऐन पहले जेडीयू में चले गए हैं।
राय ने 2019 में टिकट कटने पर भाजपा छोड़ दी थी। उधर, भाजपा की सहयोगी जेडीयू ने जहां 11 सीटों पर दावेदारी ठोक दी है, वहीं जीतन राम मांझी की पार्टी हम भी कह रही है कि वह भी झारखंड में चुनाव लड़ेगी।

इन परिस्थितियों में झारखंड में सरकार बनाने के रास्ते में बीजेपी के सामने क्या 5 बड़ी चुनौतियां हैं, जानते हैं:
आदिवासी सीटों पर हासिल करनी होगी जीत
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती आदिवासी सीटों पर अपने प्रदर्शन को सुधारने की है। झारखंड में अनुसूचित जनजाति के लिए लोकसभा की पांच सीटें आरक्षित हैं और इन सभी सीटों पर बीजेपी को इस बार चुनाव में हार मिली है। इन पांच लोकसभा सीटों में से चार सीटों पर बीजेपी की हार का अंतर 1.2 लाख वोटों से ज्यादा का रहा है।
इन पांच लोकसभा सीटों के अंदर विधानसभा की 29 सीटें आती हैं और निश्चित रूप से लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन बीजेपी के लिए चिंता का विषय है।
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित लोकसभा सीटें
लोकसभा सीट का नाम | आने वाली विधानसभा सीटें |
खूंटी | खरसावां (एसटी), तमाड़ (एसटी), तोरपा (एसटी), खूंटी (एसटी), सिमडेगा (एसटी), कोलेबिरा (एसटी) |
सिंहभूम | सरायकेला (एसटी), चाईबासा (एसटी), मझगांव (एसटी), जगनाथपुर (एसटी), मनोहरपुर (एसटी), चक्रधरपुर (एसटी) |
लोहरदगा | मांडर (एसटी), सिसई (एसटी), गुमला (एसटी), बिशुनपुर (एसटी), लोहरदगा (एसटी) |
दुमका | शिकारीपाड़ा (एसटी), नाला, जामताड़ा, दुमका (एसटी), जामा (एसटी), सारठ |
राजमहल | बोरियो (एसटी), राजमहल, बरहेट (एसटी), लिट्टीपाड़ा (एसटी), पाकुड़, महेशपुर (एसटी) |
झारखंड में बीजेपी के बड़े आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को भी लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।
झारखंड में विधानसभा की 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं और अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं का आंकड़ा 26 प्रतिशत है। बीजेपी को झारखंड में सरकार बनाने के लिए इन विधानसभा सीटों पर नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।
सहयोगी दलों के बीच कैसे होगा सीटों का बंटवारा
बीजेपी के सामने दूसरी बड़ी चुनौती अपने सहयोगी दलों के बीच सीटों के बंटवारे की है। एनडीए में बीजेपी के सहयोगी दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने कहा है कि वह राज्य में 5-6 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है और इसके लिए एनडीए से बात की जाएगी। पार्टी ने कहा है कि अगर बात नहीं बनी तो अकेले चुनाव लड़ने पर भी विचार किया जाएगा।
पड़ोसी राज्य बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने कहा है कि वह झारखंड में 11 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

आजसू से टूट गया था गठबंधन
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी दल ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के बीच सीट बंटवारे को लेकर बात नहीं बन सकी थी और दोनों दल अलग-अलग लड़े थे। बीजेपी को विधानसभा चुनाव में इसका नुकसान हुआ था और वह सत्ता से बाहर हो गई थी।
हालांकि इस बार आजसू उसके साथ है लेकिन अब जब जेडीयू और हम भी झारखंड में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि बीजेपी किस तरह सीट बंटवारे में इन सभी दलों को मना पाएगी।
अगर बीजेपी सहयोगी दलों के साथ मिलकर झारखंड में सरकार बना भी लेती है तो उसे साथ मिलकर ही आगे बढ़ना होगा और निश्चित रूप से ऐसे में उसके लिए सरकार चलाना आसान नहीं होगा।

सीटें और वोट शेयर बढ़ाना चुनौती
पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों से अगर तुलना करें तो बीजेपी का वोट शेयर और सीटें दोनों ही कम हुए हैं। इसलिए विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत हासिल करने के लिए वोट शेयर और सीटों की संख्या के मोर्चे पर काम करना होगा। दूसरी ओर, कांग्रेस और झामुमो ने सीटें और वोट शेयर दोनों ही बढ़ाए हैं।
ऐसे में बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती सीटों और वोट शेयर को बढ़ाने की है। पार्टी के सह प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा इन दिनों राज्य में पार्टी के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने झारखंड में डेमोग्राफिक चेंज और अवैध घुसपैठ होने का दावा करते हुए कहा है कि झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार सिर्फ वोट बैंक की राजनीति कर रही है।
बीते दिनों में सरमा के जिस तरह के बयान आए हैं, उससे यह सवाल उठता है कि राज्य में सरकार बनाने के लिए बीजेपी क्या ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है? लोकसभा चुनाव में खराब नतीजों के बाद बीजेपी के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि उन्हें ध्रुवीकरण के जरिए वोट मिल सकते हैं। लेकिन देखना होगा कि पार्टी इसमें कितनी कामयाब होगी?
2024 में कौन कितनी लोकसभा सीटों पर जीता
राजनीतिक दल | 2019 में मिली सीटें | 2024 में मिली सीटें |
बीजेपी | 11 | 8 |
कांग्रेस | 1 | 2 |
झामुमो | 1 | 3 |
आजसू | 1 | 1 |
बीजेपी का वोट शेयर गिरा, झामुमो और कांग्रेस का बढ़ा
राजनीतिक दल | 2019 लोकसभा चुनाव में मिले वोट (प्रतिशत में) | 2024 लोकसभा चुनाव में मिले वोट (प्रतिशत में) |
बीजेपी | 50.96 | 44.60 |
कांग्रेस | 15.63 | 19.19 |
झामुमो | 11.51 | 14.60 |
सरयू राय फैक्टर करेगा परेशान?
जेडीयू ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बड़ा दांव खेलते हुए सरयू राय को पार्टी में शामिल कर लिया है। सरयू राय जमशेदपुर के इलाके में लोकप्रिय हैं और 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को हरा दिया था। सरयू राय बीजेपी में ही थे लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था तो उन्होंने अपने रास्ते अलग कर लिए थे।
सरयू राय के आने से निश्चित रूप से जेडीयू को मजबूती मिलेगी और जेडीयू सीटों के बंटवारे को लेकर बीजेपी पर दबाव बना सकता है।
सोरेन के मुकाबले लोकप्रिय नेता नहीं
बीजेपी के सामने एक बड़ी मुश्किल उसके पास राज्य में किसी ऐसे नेता का ना होना भी है जिसकी लोकप्रियता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को टक्कर देती हो। हेमंत सोरेन झारखंड में प्रभावशाली आदिवासी समुदाय से आते हैं और इस समुदाय में उनकी पकड़ है। उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को दिशोम गुरु के नाम से जाना जाता है। दिशोम गुरु का मतलब होता है देश का गुरु।
5 महीने तक जेल में रहने के बाद हेमंत सोरेन ने बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त किलेबंदी शुरू कर दी है। उन्होंने आदिवासी कार्ड को भुनाने की कोशिश की है और कहा है कि वह आदिवासी के बेटे हैं और बीजेपी के सामने कतई नहीं झुकेंगे।

कल्पना भी बनीं पार्टी का चेहरा
हेमंत सोरेन की गैर मौजूदगी में उनकी पत्नी कल्पना सोरेन झारखंड में बड़ा चुनावी चेहरा बनकर उभरी हैं और उन्होंने लोकसभा के चुनाव में इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए जमकर प्रचार किया था। कल्पना ने विधानसभा का उपचुनाव 26000 वोटों से जीता था।
हालांकि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी भी आदिवासी समुदाय से आते हैं और बीजेपी के पास अर्जुन मुंडा जैसे बड़े आदिवासी चेहरे भी हैं। लेकिन लोकप्रियता के मामले में बीजेपी को किसी ऐसे नेता की तलाश जरूर करनी होगी जो हेमंत सोरेन का मुकाबला कर सके।
इसके साथ ही विपक्ष के द्वारा संविधान और आरक्षण को बचाने की बात को जिस तरह मुद्दा बनाया जा रहा है, यह भी एक एक चुनौती बीजेपी के सामने है। विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी यह कहा था कि बीजेपी सत्ता में आएगी तो संविधान को बदल देगी और आरक्षण को खत्म कर देगी। इसका असर भी चुनाव नतीजों में देखने को मिला था।
देखना होगा कि बीजेपी इतनी सारी चुनौतियों का मुकाबला किस तरह करेगी।