हाल ही में गठित NDA कैबिनेट (मोदी 3.0) में, शिवराज सिंह चौहान को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (MoA&FW) और ग्रामीण विकास मंत्रालय का नेतृत्व सौंपा गया है। यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है। खास कर यह देखते हुए कि हाल ही में हुए संसदीय चुनावों में बीजेपी ने अधिकांश सीटें ग्रामीण क्षेत्रों में ही गंवाई हैं। यह स्पष्ट संकेत देता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सब कुछ ठीक नहीं है।
ऐसे में, बीजेपी को इन क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे, और इसके लिए ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जिसके पास विशाल अनुभव हो और जो ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं, खासकर कृषि की समस्याओं को समझता हो।
चौहान इस भूमिका के लिए उपयुक्त माने जा रहे हैं। वे मध्य प्रदेश के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं। उनके डेढ़ दशक से ज्यादा लंबे कार्यकाल में, मध्य प्रदेश ने 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की समग्र GDP वृद्धि और 6.8 प्रतिशत प्रति वर्ष की कृषि-GDP वृद्धि देखी।

नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहने के दौरान, गुजरात के अलावा, किसी अन्य राज्य ने इस तरह का समावेशी विकास मॉडल नहीं देखा। मध्य प्रदेश की वृद्धि उसी अवधि में भारत की 6.5 प्रतिशत की GDP वृद्धि और लगभग 3.6 प्रतिशत की कृषि-GDP वृद्धि से अधिक रही है।
अब उनके सामने इस बात की चुनौती है कि क्या वह भारत की कृषि-GDP वृद्धि को 5 प्रतिशत प्रति वर्ष से अधिक बढ़ा सकते हैं और किसानों की आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं?
यह कैसे किया जा सकता है? यहां हमारी तरफ से कुछ सुझाव हैं:
पहला: चौहान को यह समझने की ज़रूरत है कि कृषि सिर्फ़ खाद्य उत्पादन नहीं है, बल्कि खाद्य से जुड़ी एक पूरी प्रणाली है जो उत्पादन से लेकर विपणन और खपत तक फैली हुई है। उन्हें जलवायु परिवर्तन के सामने आने वाली चुनौतियों के बावजूद उत्पादकता बढ़ानी होगी। खेती में ऐसे उपाय अमल में लाने होंगे जो जलवायु परिवर्तन के असर को बेअसर कर सकें। इनमें विभिन्न फसलों की गर्मी प्रतिरोधी किस्में लाने से लेकर “अधिक उपज” देने वाली खेती की प्रथाओं का इस्तेमाल तक शामिल हैं।
इसका मतलब है कि उन्हें तुरंत कृषि अनुसंधान और विकास (R&D) के साथ-साथ विस्तार पर खर्च बढ़ा कर कम से कम कृषि-GDP का 1 प्रतिशत करना होगा, जो वर्तमान में 0.5 प्रतिशत से कम है। नवीनतम शोध के अनुसार, इससे होने वाले सीमांत लाभ 10 गुना से अधिक हैं।

दूसरा: उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय किसानों के पास दुनिया की सबसे अच्छी तकनीक हो, साथ ही अपने उत्पादों के लिए सबसे अच्छे बाजार तक भी उनकी पहुंच बनी रहे। इसके बिना, उत्पादकता वैश्विक मानकों के साथ नहीं गति नहीं पकड़ पाएगी और किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं होगी।
किसानों को उनके उत्पाद के लिए सर्वोत्तम मूल्य दिलाने के लिए, कृषि मंत्री को अंतर-मंत्रालयी समूह में अपने सहयोगियों को इस बात के लिए मनाना होगा कि खाद्य कीमतें कम रखी जाएं। अचानक निर्यात प्रतिबंध लगाना, व्यापारियों पर स्टॉक सीमा लगाना, एफसीआई की आर्थिक लागत से बहुत कम कीमत पर सरकारी स्टॉक बेचना, वायदा बाजारों को निलंबित करना, ये सभी किसानों के हित के खिलाफ हैं।
चौहान के लिए यह एक बड़ी लड़ाई है। उन्हें प्याज के निर्यात पर लगी पाबंदी हटा कर शुरुआत करनी चाहिए, क्योंकि महाराष्ट्र के प्याज बेल्ट के किसान निर्यात प्रतिबंधों के खिलाफ हैं। इससे उनकी आय बुरी तरह प्रभावित हुई है।
प्याज के बाद वह 15 से 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क के साथ आम चावल के निर्यात को खोल सकते हैं, ताकि चावल उत्पादन में निहित उर्वरक और बिजली सब्सिडी की लागत को वसूल किया जा सके।

तीसरा: अन्य उच्च मूल्य वाले फलों और सब्जियों, दूध और दुग्ध उत्पादों, मत्स्य पालन और मुर्गी पालन के लिए, उन्हें अन्य मंत्रालयों के साथ समन्वय करके फार्म से मेगा शहरों और विदेशी बाजारों तक मूल्य श्रृंखला बनानी होगी ताकि किसानों को यथासंभव बेहतर मूल्य मिल सके। इन मूल्य श्रृंखलाओं को बनाने के लिए संगठित निजी क्षेत्र या सहकारी समितियों / किसान उत्पादक कंपनियों को आमंत्रित करना आवश्यक है।
उन्हें उद्योग में मौजूद PLI योजना के आधार पर प्रोत्साहित किया जा सकता है, या भारत ने दूध के लिए मूल्य श्रृंखला बनाते समय AMUL मॉडल के आधार पर जो किया था, उस पर विचार करना होगा। इससे उपभोक्ता के रुपये में किसानों की हिस्सेदारी बढ़ेगी।
कृषि मंत्री को TOP (टमाटर, प्याज और आलू) को संभालने से शुरुआत करनी चाहिए और उनकी मूल्य श्रृंखलाओं को ठीक करना चाहिए ताकि उत्पादक और उपभोक्ता दोनों लाभान्वित हो सकें।

चौथा: अगर उनके पास प्रधानमंत्री और अन्य कैबिनेट सहयोगियों को मनाने की क्षमता है, तो उर्वरक सब्सिडी राशि को उनके मंत्रालय MoA&FW में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। आज, 1.88 ट्रिलियन रुपये की उर्वरक सब्सिडी (2023-24 के संशोधित बजट अनुमान), जो MoA&FW के कुल बजट से अधिक है, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत है। इस मंत्रालय का किसानों से बहुत कम लेना-देना है।
पंजाब-हरियाणा के लिए एक विशेष पैकेज की भी आवश्यकता है ताकि उन्हें पारिस्थितिक आपदा से बचाया जा सके। मुद्दों की सूची बहुत बड़ी है, लेकिन मैं इसे यहीं विराम देता हूं।
अगर शिवराज सिंह चौहान ये सब कर सकते हैं, तो वे भारतीय कृषि की बड़ी सेवा कर सकेंगे।
(लेखक अशोक गुलाटी ICRIER में विशिष्ट प्रोफेसर हैं। यहां लिखी बातें उनके निजी विचार हैं।)