बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध पंथ के अनुयायियों के लिए ही नहीं बल्कि सनातन परंपरा को मानने वाले सभी लोगों के लिए उत्सव का दिन होता है। आज ही के दिन बौद्ध धर्म की नींव रखने वाले भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। भारत के तमाम ऋषि-मुनि और मनीषियों के जीवन दर्शन में गौतम बुद्ध का प्रभाव दिखता है। स्वामी विवेकानंद भी इनमें से एक थे, जो भगवान बुद्ध के जीवन को निस्वार्थ सेवा के रूप में देखते थे। स्वामी विवेकानंद भगवान बुद्ध को महान व्यक्तियों में मानते थे।
स्वामी विवेकानंद कहा करते थे कि उनको किशोरावस्था में भगवान बुद्ध के दर्शन हुए। स्वामीजी ने इस अनुभूति की चर्चा अपने शिष्य शरतचन्द्र चक्रवर्ती से की थी। स्वामीजी ने बताया कि उनको ध्यान के वक्त भगवान बुद्ध के दर्शन हुए। जब वह ध्यान मग्न थे, तब उनके सामने एक आकृति उत्पन्न हुई थी।
इस आकृति का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि शांत चेहरे के साथ उनके हाथ में दंड और कमण्डलु था। वह संन्यासी उनकी ओर निरंतर देख रहा था, जैसे कुछ बोलना चाह रहा हो। स्वामीजी भी कुछ देर उन्हें देखते रहे लेकिन कुछ समय बाद डर गए और वह स्थान छोड़ दिया। कक्ष से बाहर आ गए। स्वामी विवेकानंद को बाद में अपना यह निर्णय मूर्खतापूर्ण लगा क्योंकि उनके अनुसार वह संन्यासी उनको कुछ बताना चाह रहा था। हालांकि इसके बाद फिर कभी उस आकृति से कभी फिर भेट नहीं हुई।
पश्चिम को भगवान बुद्ध के संदेश से परिचित कराया
स्वामी विवेकानंद जब भारत से बाहर गए तो उन्होंने अपने व्याख्यान में बार-बार गौतम बुद्ध का जिक्र किया। भगवान बुद्ध के जीवन चरित्र और बौद्ध पंथ के मुख्य उपदेशों से अमेरिका और पश्चिम को परिचित कराया। अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद ने “अमेरिकावासी बहनों तथा भाइयों” से अपना वक्तव्य शुरू किया था और सामने बैठे विश्वभर से आये हुए लगभग 7 हज़ार लोगों ने दो मिनट से ज्यादा समय तक तालियां बजाई। यह बात लगभग सबको पता है, लेकिन उसी विश्व धर्म महासभा में स्वामीजी ने भगवान बुद्ध और बौद्ध पंथ पर भी व्याख्यान दिया था। यह जानकारी कम ही लोगों को है।

विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद का भाषण
विश्व धर्म महासभा 17 दिनों (11 से 27 सितम्बर, 1893 ) तक आयोजित हुई थी। जिसमें स्वामीजी ने 6 भाषण दिए थे। विश्व धर्म महासभा के अंतिम दिन से एक दिन पूर्व (26 सितंबर 1893) को स्वामीजी ने अपना पांचवा भाषण दिया, जिसका विषय था- “बौद्ध धर्म : हिंदू धर्म की निष्पत्ति”।
अपने भाषण में स्वामीजी ने भगवान बुद्ध और बौद्ध पंथ की खूब तारीफ की। स्वामीजी को अमेरिका में काफी लोग बौद्ध पंथ का उपदेशक मानने लगे थे। स्वामीजी के प्रति यह धारणा उनके बौद्ध पंथ को दिए गए सम्मान के कारण बनी थी। रोचक बात यह है कि स्वामीजी ने ऐसी धारणा रखने वाले लोगों को कभी खुलकर कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया। यह बात वह अपने भाषण की शुरुआत में ही रेखांकित भी करते हैं।
बौद्ध धर्म पर क्या बोले स्वामी विवेकानंद?
वह कहते हैं ”मैं बौद्ध धर्मावलम्बी नहीं हूं, जैसा कि आप लोगों ने सुना है, पर फिर भी मैं बौद्ध हूं। यदि चीन, जापान अथवा सीलोन उस महान तथागत के उपदेशों का अनुसरण करते हैं, तो भारतवर्ष उन्हें पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार मानकर उनकी पूजा करता है। आपने अभी अभी सुना कि मैं बौद्ध धर्म की आलोचना करनेवाला हूं, परन्तु उससे आपको केवल इतना ही समझना चाहिए। जिनको मैं इस पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार मानता हूं, उनकी आलोचना ! मुझसे यह संभव नहीं।“
स्वामीजी पश्चिम के श्रोताओं को हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के संबंध को समझाने के लिए यहूदी धर्म और ईसाई धर्म के संबंध का उद्धरण देते हैं। स्वामीजी कहते है “हिंदू धर्म (हिंदू धर्म से मेरा तात्पर्य वैदिक धर्म है) और जो आजकल बौद्ध धर्म कहलाता है, उनमें आपस में वैसा ही संबंध है, जैसा यहूदी तथा ईसाई धर्मों में। ईसा मसीह यहूदी थे और शाक्य मुनि हिंदू। यहूदियों ने ईसा को केवल अस्वीकार ही नहीं किया, उन्हें सूली पर भी चढ़ा दिया, हिन्दुओं ने शाक्य मुनि को ईश्वर के रूप में ग्रहण किया है और वे उनकी पूजा करते हैं।“
‘हिंदू धर्म बौद्ध धर्म के बिना नहीं रह सकता और न बौद्ध धर्म हिंदू धर्म के बिना’
स्वामीजी अपने भाषण के अंत में कहते है ”हिंदू धर्म बौद्ध धर्म के बिना नहीं रह सकता और न बौद्ध धर्म हिंदू धर्म के बिना ही। तब यह देखिए कि हमारे पारस्परिक पार्थक्य ने यह स्पष्ट रूप से प्रकट कर दिया है कि बौद्ध, ब्राह्मणों के दर्शन और मस्तिष्क के बिना नहीं ठहर सकते, और न ब्राह्मण बौद्धों के विशाल हृदय के बिना। बौद्ध और ब्राह्मण के बीच यह पार्थक्य भारतवर्ष के पतन का कारण है।”
श्रीलंका में विरोध का सामना
जब स्वामीजी का पश्चिम के अपने प्रथम प्रवास के बाद जनवरी 1897 को कोलंबो में आगमन हुआ था तो उनका भव्य स्वागत हुआ था। जिसमें बौद्ध पंथ के लोग भी बहुत बड़ी संख्या में उपस्थित थे। हालांकि यह भी जानकारी मिलती है कि इसके बाद जब वह आज के श्रीलंका के शहर अनुराधापुर गए तो स्थानीय जातिगत और धार्मिक शत्रुता के कारण उनको विरोध का सामना करना पड़ा था। पर इस घटना से स्वामीजी के मन पर भगवान बुद्ध और बौद्ध पंथ के प्रति को नकारात्मक भाव नहीं उत्पन हुआ।
स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने भगवान शिव और बुद्ध पर पुस्तक लिखी है। उनको यह प्रेरणा अपने गुरु से ही मिली। भगिनी निवेदिता ने अपनी पुस्तक “द मास्टर ऐज़ आई सॉ हिम”में अनेकों बार बुद्ध का वर्णन किया है। इस पुस्तक में भगिनी ने स्वामी विवेकानन्द और बुद्ध पर पाठ भी लिखा है। जिसका शीर्षक है “स्वामी विवेकानन्द और बुद्ध के प्रति उनका दृष्टिकोण”। इसके अतरिक्त भगिनी ने एक पुस्तक लिखी है जिसका शीर्षक है “शिव और बुद्ध”।
जीवन के अंतिम दिनों में बोधगया गए थे स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद के जीवन की अंतिम यात्राओं में बोधगया शामिल था। 4 जुलाई 1902 को स्वामीजी ने महासमाधि ली थी। इसी वर्ष के जनवरी महीने में स्वामीजी बौद्ध पंत के प्रमुख धार्मिक स्थल बोधगया गए थे। इसके बाद सिर्फ उनका काशी जाना हुआ था। अपने अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल पर जाना उनके भगवान बुद्ध के प्रति स्नेह दर्शाता है।
(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं।)