बॉम्बे हाई कोर्ट ने सतारा पुलिस के एक अफसर को जमकर फटकार लगाई। फटकार लगाने की वजह यह थी कि अफसर ने एक कॉलेज के प्रिंसिपल को उसी कॉलेज के प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई के लिए पत्र लिखा था। प्रोफेसर ने एक कार्यक्रम के दौरान आक्रोशित हुए छात्रों और दर्शकों को शांत करने के लिए दिवंगत एक्टिविस्ट गोविंद पानसरे की किताब ‘शिवाजी कौन होता’ का जिक्र किया था।
अदालत ने पुलिस से सवाल किया कि यह कैसा लोकतंत्र है और याचिकाकर्ता की ओर से संविधान के आर्टिकल 19 (1) (ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का दावा करने के बावजूद क्या याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी तरह का कोई अपराध बनता है?
अदालत ने कहा कि आखिर पुलिस मैनुअल या सीआरपीसी याचिकाकर्ता प्रोफेसर के संवैधानिक अधिकारों से आगे कैसे जा सकते हैं। अदालत ने सख्त रूख अख्तियार करते हुए कहा कि यह बर्दाश्त करने लायक नहीं है।

अदालत ने प्रोफेसर के खिलाफ पत्र लिखने वाले पुलिस अफसर को इसलिए फटकार लगाई क्योंकि अफसर ने कहा था कि उन्होंने प्रिंसिपल को जो पत्र लिखा है, वह सीआरपीसी की धारा 149 के मुताबिक है।
अदालत के सख्त रूख को देखने के बाद जब राज्य सरकार के वकील ने बेंच को बताया कि पुलिस इस तरह के विवादित पत्र को वापस ले लेगी तो बेंच ने याचिका का निपटारा कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज के. चव्हाण की खंडपीठ प्रोफेसर डॉ. मृणालिनी अहेर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। प्रोफेसर ने सतारा के भुइंज पुलिस स्टेशन के पीएसआई आरएस गरजे द्वारा अगस्त, 2023 में लिखे गए एक पत्र को चुनौती दी थी। इस पत्र में पचवड़ में स्थित यशवंतराव चव्हाण कॉलेज के प्रिंसिपल को अहेर के खिलाफ जांच करने और पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया था।
अहेर ने अपने वकील युवराज नरवणकर के जरिये प्रिंसिपल की ओर से 12 फरवरी, 2024 की एक रिपोर्ट को अदालत में चुनौती दी और पुलिस अफसर के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की।

क्या कहा गया था याचिका में?
अहेर की याचिका के अनुसार, पिछले साल अगस्त क्रांति दिवस (9 अगस्त) को, प्रोफेसर विनायकराव जाधव ने सम्मानित शख्सियतों पर लेक्चर दिया था। इस दौरान जब कुछ छात्रों और दर्शकों को यह लगा कि सम्मानित शख्सियतों के बारे में कुछ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया तो उन्होंने हंगामा किया था।
अहेर ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्होंने हालात को शांत करने की कोशिश की और पानसरे की किताब का जिक्र किया। उन्होंने याचिका में दावा किया था कि कुछ बेहूदे दर्शकों ने उन पर हमला करने की कोशिश की। हंगामा करने वाले लोग आरोप लगा रहे थे कि अहेर ने विनायकराव जाधव के व्यवहार की निंदा करने के बजाय उनका समर्थन किया।
अहेर ने याचिका में कहा था कि उनके पति भी प्रोफेसर हैं और उन्होंने बीच-बचाव की कोशिश की लेकिन पीएसआई गरजे ने लोगों के सामने उनके और उनके पति के साथ खराब व्यवहार किया और उन्हें अपमानित किया।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि गरजे ने प्रिंसिपल से याचिकाकर्ता के खिलाफ विभागीय जांच करने के लिए कहा। उन्होंने याचिका में कहा कि हालांकि प्रिंसिपल ने शुरू में उन्हें आश्वासन दिया था कि वह गरजे की बात का संज्ञान नहीं लेंगे लेकिन बाद में उन्होंने जांच के आदेश दे दिए और फिर इसकी रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि पुलिस अफसर जो एक एप्वॉइंटिंग अथॉरिटी नहीं था, उसके कहने पर ऐसी जांच किया जाना पूरी तरह गलत था।

क्या आपने वह किताब पढ़ी है?
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस चव्हाण ने अदालत में मौजूद पुलिस अफसर से पूछा कि क्या उन्होंने वह किताब (शिवाजी कौन होता) पढ़ी है और क्या याचिकाकर्ता के बोलने की आजादी के अधिकार के बावजूद इस मामले में किसी तरह का अपराध किया गया?
अदालत ने कहा कि पुलिस अफसर अपनी ताकत का उल्लंघन कर कॉलेज के प्रिंसिपल से कार्रवाई करने के लिए नहीं कह सकते थे।
अदालत की ओर से राज्य सरकार के वकील को पुलिस अफसर के खिलाफ सख्त आदेश की चेतावनी देने के बाद सतारा जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के निर्देश पर पब्लिक प्रॉसिक्यूटर हितेन वेनेगांवकर ने अदालत को बताया कि इस पत्र को बिना शर्त वापस ले लिया जाएगा।
इसके बाद अदालत ने बयान को रिकॉर्ड पर लिया और याचिका का निपटारा कर दिया।