Jharkhand Kolhan Politics: झारखंड के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इस बार कोल्हान इलाके में पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रही है। 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे यहां पार्टी के लिए बेहद निराशाजनक रहे थे। कोल्हान में 14 विधानसभा सीटें आती हैं और इन सभी सीटों पर पार्टी को पिछले चुनाव में हार मिली थी। इस बार बीजेपी ने कोल्हान टाइगर के नाम से पहचाने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को विशेष रणनीति के तहत भगवा खेमे में शामिल किया है। बीजेपी को उम्मीद है कि चंपई सोरेन इस इलाके में कमल खिलाएंगे।
चंपई सोरेन लंबे वक्त तक झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सुप्रीमो शिबू सोरेन के करीबी रहे और पार्टी और सरकार में बड़े पदों पर रहते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने के बाद उन्होंने इसे अपना अपमान बताया और इस साल अगस्त में बीजेपी का हाथ थाम लिया।
झारखंड में इन दिनों चुनाव प्रचार जोरों पर है और आने वाले दिनों में इंडिया गठबंधन और एनडीए के तमाम बड़े नेता राज्य में चुनावी रैलियां और जनसभाओं को संबोधित करते हुए दिखाई देंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों और झारखंड की चुनावी राजनीति को समझने वालों की नजर इस पर टिकी हुई है कि चंपई सोरेन के आने से बीजेपी को कोल्हान में कितना फायदा हो सकता है?
झारखंड में दो चरणों में- 13 और 20 नवंबर को मतदान होना है और 23 नवंबर को चुनाव नतीजे आएंगे। झारखंड के साथ ही महाराष्ट्र में भी विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और साथ ही कई राज्यों में खाली पड़ी विधानसभा और लोकसभा सीटों पर भी चल रहे चुनाव प्रचार के कारण देश का राजनीतिक माहौल काफी गर्म है। लोकसभा चुनाव के बाद यह पहली बड़ी चुनावी लड़ाई एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच चल रही है।
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कोल्हान में कौन से इलाके आते हैं?
कोल्हान इलाके में पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले आते हैं। बीजेपी की कोल्हान को लेकर कितनी सक्रियता है उसे इससे समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल दो बार कोल्हान में आ चुके हैं। सितंबर में उन्होंने पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर में वंदे भारत की 6 ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई थी और 600 करोड़ रुपए की रेलवे परियोजनाओं की बुनियाद रखी थी। बीजेपी चुनाव प्रचार के दौरान फिर से प्रधानमंत्री मोदी को कोल्हान इलाके में उतारेगी।
पिछले चुनाव में चली थी झामुमो की लहर
2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान में झामुमो ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था। उसने यहां गठबंधन में चुनाव लड़ते हुए 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी। दो सीटें कांग्रेस को मिली थी और एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते थे।
बीजेपी ने सभी उम्मीदवार बदले
बीजेपी ने आक्रामक और सधे हुए कदमों से आगे बढ़ते हुए कोल्हान के मैदान में सियासी बिसात बिछाई है। पार्टी यहां पर गठबंधन में 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इन सभी 10 सीटों पर पार्टी ने नए उम्मीदवार उतारे हैं। यानी 2019 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने वाले नेताओं को पार्टी ने इस बार दांव नहीं लगाया है। कोल्हान की बची हुई सीटों पर बीजेपी के सहयोगी दल ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) और जेडीयू ने क्रमशः तीन और एक सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं।
बीजेपी ने उतारे दिग्गजों के ‘रिश्तेदार’
लोकसभा चुनाव में शिकस्त खाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को पोटका से टिकट दिया गया है। इसके अलावा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा वक्त में ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू को भी बीजेपी जमशेदपुर ईस्ट से चुनाव लड़ा रही है। पूर्णिमा दास साहू का मुकाबला कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार से है।
2019 के विधानसभा चुनाव में रघुबर दास इस सीट से चुनाव हार गए थे। बीजेपी ने चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को घाटशिला विधानसभा सीट से उतारा है। कोल्हान इलाके की एक और हाई प्रोफाइल सीट जगन्नाथपुर है। यहां से पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा चुनाव लड़ रही हैं।
इस तरह बीजेपी ने कोल्हान में बड़े नेताओं और उनके रिश्तेदारों पर दांव लगाकर चुनाव को रोचक बना दिया है। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन यहां मैया सम्मान योजना और सोरेन सरकार के द्वारा चलाई गई अन्य कल्याणकारी योजनाओं को मुद्दा बना रहा है। झामुमो ने सरायकेला विधानसभा सीट से बीजेपी के बागी नेता गणेश महली को चंपई सोरेन के मुकाबले टिकट दिया है।
झामुमो को कितना नुकसान होगा?
झारखंड के राजनीतिक हलकों में बड़ा सवाल यह है कि चंपई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी को कितना फायदा होगा और झामुमो को कितना नुकसान होगा? कोल्हान के इलाके में चंपई सोरेन के सियासी असर को कम करके नहीं आंका जा सकता। झामुमो ने चंपई सोरेन के असर को बेअसर करने के लिए स्पष्ट रूप से कहा है कि चंपई सोरेन बीजेपी में इसलिए गए हैं क्योंकि वह अपने बेटे के लिए विधानसभा चुनाव में टिकट चाहते थे और झामुमो इसके लिए तैयार नहीं था।
कोल्हान में है चंपई सोरेन का असर
चंपई सोरेन पिछले 30-35 साल से कोल्हान में झामुमो के लिए काम करते रहे हैं। इस इलाके में लोगों के बीच उनका भावनात्मक असर है और इसलिए झारखंड राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ने वाले चंपई सोरेन को उनके समर्थक कोल्हन टाइगर कहते हैं।
चंपई सोरेन ने लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल में होने की वजह से इंडिया गठबंधन का नेतृत्व किया था और तब झारखंड की सभी आरक्षित पांचों सीटों पर बीजेपी हार गई थी और इंडिया गठबंधन को जीत मिली थी।
बीजेपी की कोशिश चंपई सोरेन की मदद से कोल्हान में झामुमो और इंडिया गठबंधन को बड़ा नुकसान पहुंचाने और कुछ सीटें झटकने की है। देखना होगा कि उसे यहां कितनी कामयाबी मिलती है?
कोल्हान इलाके में आदिवासी मतदाता ज्यादा हैं। बीजेपी ने इस इलाके में कथित रूप से अवैध घुसपैठ को मुद्दा बनाया है और कहा है कि सोरेन सरकार की वजह से आदिवासियों की जन, जंगल और जमीन को खतरा है। अगर चंपई सोरेन बीजेपी के लिए यहां आधार बनाने और झामुमो के वोट बीजेपी के पाले में लाने में कामयाब रहे तो निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में नतीजे बेहद चौंकाने वाले हो सकते हैं।