इतिहास के हर पन्ने से हम रुबरु हों, ये जरूरी नहीं। और हर पन्ना खुद को इतिहास में दर्ज करवा पाए- ऐसी किस्मत भी सबकी नहीं होती। बिहार की संस्कृति इतनी विराट है, इसकी धरोहरें इतनी अकूत परंपराओं और कहानियों से भरी हैं कि सबकुछ जान पाना किसी के लिए भी संभव नहीं। फिर भी कुछ ऐसे स्थान हैं, जिनका ज़िक्र तो मिलता है, जिनका इतिहास सामने आता है, लेकिन सम्मान कहीं खो जाता है। बिहार के सासाराम में स्थित रोहतासगढ़ किला भी उन्हीं में से एक है। सबकुछ होते हुए भी समय के थपेड़ों और प्रशासन की अनदेखी ने इसे दयनीय हाल में पहुंचा दिया है। जनसत्ता की विशेष सीरीज़ ‘धरोहर’ के दूसरे भाग में आज बात रोहतासगढ़ किले की-
त्रेता युग में अयोध्या काफी संपन्न था, वहां के राजा-महाराजा समृद्ध थे। ऐसे ही एक शासक थे सत्यवादी सम्राट महाराजा हरिश्चंद्र। उन्होंने अपने जीवनकाल में धर्मनिष्ठा ऐसे निभाई, सत्य का पालन ऐसे हुआ कि आगे चलकर ईमानदारी और सत्यवादी के पूरक ही महाराज हरिश्चंद्र बन गए। उन्हीं के पुत्र थे रोहिताश्व। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने ही रोहतासगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया था। हरिवंश पुराण, ब्रह्मांड पुराण जैसे शास्त्रों में इसका जिक्र तो मिलता है, लेकिन इतिहासकार एकमत नहीं हैं।
इतिहासकार डॉक्टर श्याम सुंदर तिवारी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि रोहतासगढ़ दुर्ग को लेकर सबसे पुराना प्रमाण सातवीं शताब्दी के आसपास का है। एक अभिलेख के मुताबिक उस जमाने में रोहतास में महाराजा शशांक गौड़ का शासन था। शशांक देव की मुहर का सांचा भी इस बात की पुष्टि करता है। आगे चलकर इसी रोहतासगढ़ किले पर खरवार वंश के क्षत्रियों के शासन की बात सामने आती है। दावा हुआ है कि किसी जमाने में पृथ्वीराज चौहान ने इस किले को जीत लिया था। फिर 1539 आते-आते शेर-शाह सूरी का यहां शासन आया।
शेर-शाह सूरी के रोहतासगढ़ दुर्ग को लेकर कुछ दिलचस्प चर्चाएं चलती हैं, इनकी पुष्टि नहीं की जा सकती। एक ऐसा ही किस्सा बताता है कि खरवार राजा नृपति का रोहतासगढ़ दुर्ग पर कब्जा था, लेकिन तब अफगान शासक शेर शाह इसकी अहमियत को समझ गया था। ऐसे में उसने राजा नृपति के ब्राह्माण मंत्री चुड़ामणि को स्वर्ण मुद्राओं का लालच दिया और अपने साथ मिला लिया। इसके बाद राजा नृपति को फंसाने के लिए एक जाल बिछाया। महिलाओं को शरण देने के बहाने रोहतासगढ़ दुर्ग में दस्तक देने की तैयारी हुई।
चुड़ामणि ने ही राजा नृपति को गुमराह किया, अपनी बातों को मानने पर मजबूर किया। इसी वजह से शेर शाह की कई पालकियां रोहतासगढ़ किले के अंदर दाखिल हुईं। सभी में महिलाएं ही थीं, लेकिन आखिरी पालकी में शेर शाह के सैनिक मौजूद थे जिन्होंने आक्रमण किया और रोहतासगढ़ किला राजा नृपति के हाथों से छिन गया। कहा जाता है बाद में शेर शाह ने धोखेबाज चुड़ामणि की भी हत्या करवा दी थी। शेर शाह के लिए रोहतासगढ़ किला काफी महत्वपूर्ण था, ऐसे में उसने इसकी सुरक्षा के लिए 10 हजार सैनिक तैनात कर दिए थे।
इतिहास के कुछ पन्ने बताते हैं कि रोहतासगढ़ किला 1588 में मुगल शासक अकबर के जनरल मान सिंह के नियंत्रण में भी आया था। उसने उसी किले में खुद के लिए ‘तख्ते बादशाही’ नाम से एक महल का निर्माण भी करवाया। अपनी पत्नी के लिए एक आइना महल अलग बनवा दिया। दावा है कि मान सिंह ने ही किले के परिसर के बाहर जामा मस्जिद, हब्श खान का मकबरा और सूफी सुलतान का मकबरा भी बनवाया था।
अब रोहतासगढ़ किले का इतिहास त्रेता युग से शुरू होते-होते कभी राजपूत शासन के पास गया, फिर अफगान शासक आए और फिर मुगलों ने भी कब्जा जमाया। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक सन 1764 में बक्सर की लड़ाई हुई और मीर कासिम को अंग्रेजी हुकूमत के हाथों पराजय झेलनी पड़ी। उस हार के बाद अंग्रेजी कप्तान थॉमस गोडार्ड ने रोहतासगढ़ पर अपना कब्जा जमाया। ऐसा कहा जाता है कि उस अंग्रेजी कप्तान ने इस प्राचीन किले के कई हिस्से ध्वस्त करवा दिए थे।
वैसे अंग्रेजो ने इस किले को नुकसान तो काफी पहुंचाया, लेकिन इसी किले आजादी की हुंकार भी देश के बहादुरों ने भरी थी। 1857 में जब स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई हुई थी, वीर कुंवर सिंह के छोटे भाई अमर सिंह ने रोहतासगढ़ किले पर कब्जा कर लिया था और वहीं से विद्रोह की शुरुआत की।
अब इतिहास के पन्ने रोहतासगढ़ किले को लेकर अलग-अलग जानकारी तो देते हैं, कुछ ऐसे रहस्य भी सामने रखते हैं जिन पर विश्वास करना मुश्किल है। दावा है कि फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने लगभग दो सौ साल पहले इस रोहतासगढ़ दुर्ग की यात्रा की थी। उनके कुछ पुराने दस्तावेज दावा करते हैं कि रोहतासगढ़ की दीवारों से खून टपकता है, कुछ स्थानीय लोग आज भी इस बात को सच मानते हैं, लेकिन ना कभी ये तथ्य साबित हो पाया है और ना ही इसके कभी साक्ष्य मिले। ऐसे में जानकार इसे अंधविश्वास की श्रेणी में रखना ज्यादा पसंद करते हैं। इतना जरूर है कि इस दिलचस्प पहलू की वजह से भी रोहतासगढ़ किले की चर्चा जरूर हो जाती है।
आज रोहतासगढ़ किला सासाराम के पास स्थित तो है, लेकिन उसकी हालत जर्जर हो चुकी है। वहां कूड़े के ढेर भी कभी-कबार दिख जाते हैं और आवारा पशु भी घूमते रहते हैं। किसी जमाने में इस किले को विश्व धरोहर की सूची में शामिल करवाने की कोशिश हुई थी, लेकिन सारे प्रयास विफल रहे और आज बिहार की यह धरोहस इतिहास के पन्नों में तो दर्ज है, लेकिन समय के थपेड़ों और प्रशासन की अनदेखी ने इसे दयनीय हाल में पहुंचा दिया है।
ये भी पढ़ें- धरोहर का पहल भाग- बिहारी गमछे के मायने
