क्या आप सोच सकते हैं कि भारत में एक ऐसा भी मंदिर है जहां देवताओं को अदालत के कटघरे में खड़ा किया जाता है और उन्हें सजा भी दी जाती है। क्या वाकई कोई ऐसा मंदिर हो सकता है? हां, छत्तीसगढ़ के बस्तर की केशकाल घाटी में भंगाराम देवी का मंदिर है, जहां पर देवी-देवताओं पर आरोप लगाया जाता है और आरोप लगाने वाले लोग स्थानीय ग्रामीण ही होते हैं।

इनमें अधिकतर वे लोग होते हैं जिन्होंने देवी-देवताओं से कोई मन्नत मांगी होती है या अपनी परेशानी बताई होती है लेकिन उनकी सुनवाई नहीं होती। भंगाराम देवी के द्वारा देवताओं को सजा सुनाने की यह परंपरा बहुत पुरानी है और आज भी आदिवासियों के बीच काफी लोकप्रिय है।

महिलाओं को शामिल होने की अनुमति नहीं

भंगाराम देवी ही यहां जज होती हैं और स्थानीय ग्रामीणों और आदिवासियों की शिकायतों को सुनती हैं। लगभग 240 गांवों के आदिवासी अपने पारिवारिक देवताओं की शिकायत करने के लिए उन्हें देवी के पास लाते हैं और ऐसा हर साल होने वाले भादो जात्रा त्योहार के दौरान किया जाता है। भादो जात्रा को लेकर एक विशेष बात यह भी है कि इसमें महिलाओं को शामिल होने की अनुमति नहीं है।

कितना पुराना है मंदिर?

इस प्राचीन मंदिर की स्थापना 1700-1800 ईस्वी में राजा भाईरामदेव के शासनकाल के दौरान हुई थी। बस्तर के आदिवासी मामलों के जानकार प्रोफेसर एम. अली एन. सैयद ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि बस्तर के आदिवासी गांवों में काफी विविधता है और वे एक ही देवी-देवताओं की पूजा नहीं करते। वे अपने खुद के देवता बनाते हैं। एक बेहद दिलचस्प बात और है कि अगर किसी भी देवता को गंगाराम देवी के द्वारा सजा सुनाई जाती है तो उस देवता की मूर्ति को सजा के रूप में मंदिर के पिछले हिस्से में छोड़ दिया जाता है।

अंतिम होता है भंगाराम देवी का फैसला

स्थानीय ग्रामीण इस बात पर भरोसा करते हैं कि भंगाराम देवी के द्वारा सुनाया जाने वाला फैसला अंतिम होता है और अगर उनके किसी देवी-देवता को सजा सुनाई जाती है तो ऐसे में ग्रामीण उस देवता को भुला देते हैं और देवता की मूर्ति को सजा के रूप में मंदिर के पिछले हिस्से में छोड़ दिया जाता है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक, यहां पर डोली, कुल्हाड़ी, बॉक्स, ड्रम जैसे आकार के कुलदेवता भी मिले। इन सभी देवताओं की मूर्ति पत्थर और लड़कियों से बनी होती हैं।

क्या है भंगाराम देवी को लेकर मान्यता?

भंगाराम देवी को लेकर ऐसी मान्यता है कि वह कई शताब्दी पहले वारंगल (वर्तमान में तेलंगाना) से बस्तर आई थीं और वह अपने साथ डॉक्टर खान को भी लेकर आई थीं। स्थानीय मान्यताओं के मुताबिक, भंगाराम देवी ने स्थानीय राजा से बसने के लिए जमीन मांगी थी और उन्हें केशकाल पर्वत के पास जमीन दी गई थी।

डॉक्टर खान के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने आदिवासियों की हैजा और स्मालपॉक्स की महामारी के दौरान मदद की थी और इसके बाद उन्हें भी देवता का दर्जा दिया गया। यहां पर उन्हें खान देवता या काना देवता कहा जाता है। स्थानीय ग्रामीण उन पर नींबू और अंडे चढ़ाते हैं। डॉक्टर खान नागपुर से आए थे। खान डॉक्टर एक छड़ी के रूप में मंदिर में हैं।

कैसे होती है मामलों की सुनवाई?

ग्रामीण अपनी तरह-तरह की शिकायतों को लेकर मंदिर में आते हैं। जैसे कि फसलों का खराब हो जाना या फिर बीमारियों का प्रकोप। यह कहा जाता है कि जब उन्होंने अपनी समस्याओं को लेकर देवी-देवताओं से प्रार्थना की तो उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया।

स्थानीय ग्रामीणों के मुताबिक, भंगाराम देवी की अदालत में अगर कोई देवता दोषी पाया जाता है तो उसे कठोर दंड भी दिया जाता है। ऐसे में देवताओं की मूर्ति को मंदिर से बाहर कर दिया जाता है और तब तक वापस नहीं लाया जाता, जब तक देवता ग्रामीणों की प्रार्थनाओं का जवाब देकर अपनी अहमियत को साबित ना कर दें।

कैसे होती है कानूनी कार्रवाई?

देवी की अदालत में ग्रामीण वकीलों की भूमिका निभाते हैं और मुर्गियों को यहां गवाह के रूप में पेश किया जाता है। हर सुनवाई के बाद मुर्गियों को छोड़ दिया जाता है। इसके बाद सजा का ऐलान गांव के एक नेता द्वारा किया जाता है और इसे देवी की इच्छा माना जाता है।

सुधार करने का भी मिलता है मौका

भंगाराम देवी के मंदिर में केवल सजा ही नहीं मिलती बल्कि यहां पर देवी सुधार का भी मौका देती हैं। यह भी हैरान करने वाली बात है कि देवी-देवताओं को भी उनकी गलतियों के लिए सुधार करने का मौका दिया जाता है और अगर वह सुधार करते हैं तो उन्हें फिर से मंदिर में रख लिया जाता है।