किसानों के 75000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने का दांव 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के लिए गेमचेंजर साबित हुआ था। UPA की सत्ता में वापसी के साथ, पार्टी नेता सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल अपने आलोचकों को गलत साबित करने में कामयाब रहे।
2007 में, प्रतिभा पाटिल भारत में यह पद संभालने वाली पहली महिला के रूप में राष्ट्रपति चुनी गईं और पूर्व भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति बने। बीमार चल रहे अटल बिहारी वाजपेयी (तब 85 वर्षीय) ने 2009 के चुनावों में भाग नहीं लेने का फैसला किया। 81 वर्षीय एलके आडवाणी को पार्टी के प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया गया। हालाँकि, चुनाव अभियान जोर पकड़े, इससे पहले ही आडवाणी के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत से मतभेद सामने आ गए और भाजपा सत्ता पाने में विफल रही।
चुनावों से पहले की कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ
2009 के चुनावों से पहले संसद की कार्यवाही अत्यधिक बाधित रही। वास्तव में, लोकसभा में 2008 में केवल 46 बैठकें हुईं, जो स्वतंत्रता के बाद सबसे कम थी।
2008 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस दिल्ली और राजस्थान में सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही, लेकिन भाजपा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वापस लौटी, इसके अलावा कर्नाटक में जीत दर्ज की।
दुनिया ने 26 नवंबर, 2008 के आतंकी हमले की भयावहता टेलीविजन स्क्रीन पर देखी। लश्कर-ए-तैयबा के 10 सदस्यों ने लगभग चार दिनों तक मुंबई में सुनियोजित आतंकवादी हमला किया।

इस बीच, 2009 के आम चुनावों से ठीक पहले चुनाव आयोग (EC) में एक विवाद पैदा हो गया। एन गोपालस्वामी, जिन्हें फरवरी 2004 में चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था और 2006 में मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में पदोन्नत किया गया था, 20 अप्रैल, 2009 को सेवानिवृत्त होने वाले थे। हालाँकि, वह चाहते थे कि 2009 के चुनाव का कम से कम एक चरण उनके रहते पूरा कराया जाए। गोपालस्वामी के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की कतार में खड़े नवीन चावला इसके खिलाफ थे।
जनवरी 2009 में, गोपालस्वामी ने राष्ट्रपति से सिफारिश की कि चावला को बर्खास्त कर देना चाहिए। हालांकि, उनकी सिफारिश को पाटिल और बाद में सर्वोच्च न्यायालय दोनों ने खारिज कर दिया। पांच चरणों में 2009 का चुनाव 16 अप्रैल से 13 मई के बीच हुआ।
2009 के लोकसभा चुनावों के परिणाम और प्रभाव
चूँकि सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को 2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार लागू किया गया था। यानि, चुनाव परिसीमित निर्वाचन क्षेत्रों और सीमाओं के आधार पर आयोजित किए गए थे। इससे लगभग 500 निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं की संरचना में बदलाव आया।
71.69 करोड़ मतदाताओं में से, 41.71 करोड़ या 58.21% ने पूरे भारत में 8.30 लाख मतदान केंद्रों पर मतदान किया। कुल 8,070 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे, जिनमें 556 महिला उम्मीदवार शामिल थीं।
कांग्रेस ने इस बार बेहतर प्रदर्शन किया – 2004 में मिली 145 सीटों के मुकाबले 206 सीटें – लेकिन भाजपा की सीटें 2004 के 138 से घटकर 116 रह गईं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 21 सीटें जीतीं, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) 16, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नौ और सीपीआई ने इस चुनाव में चार सीटें जीतीं।

2009 में सबसे ज्यादा नुकसान UPA की सहयोगी पार्टी, लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का हुआ। पार्टी ने केवल चार सीटें जीतीं। लालू खुद पाटलिपुत्र सीट से चुनाव हार गए। हालांकि, वह सारण से भाजपा के राजीव प्रताप रूडी को हराकर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे।
UPA की एक और सहयोगी, राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को भी झटका लगा। पासवान बिहार के हाजीपुर में अपने ही गढ़ में जनता दल यूनाइटेड (JDU) के राम सुंदर दास से हार गए। LJP अपनी लड़ी सभी 12 सीटों पर हार गई थी।
दिल्ली के चांदनी चौक और उत्तर प्रदेश के लखनऊ दोनों से सबसे अधिक (41-41 उम्मीदवार) चुनाव मैदान में थे। ये सीटें कांग्रेस के कपिल सिब्बल (चांदनी चौक) और भाजपा के लालजी टंडन (लखनऊ) ने जीतीं।
उत्तर प्रदेश में, राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के अजित सिंह ने भाजपा के साथ गठबंधन करने का फैसला किया। उन्होंने सात सीटों में से पांच सीटें जीतीं। इनमें अजित सिंह की सीट बागपत भी शामिल थी। भाजपा प्रमुख राजनाथ सिंह ने गाजियाबाद से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता।

जैसे राहुल 2004 में लोकसभा में आए थे, वैसे ही उनके चचेरे भाई वरुण गांधी 2009 में भाजपा के टिकट पर पीलीभीत से पहली बार लोकसभा पहुंचे। वरुण अपने पहले ही चुनाव में भड़काऊ भाषण देकर चर्चा में आ गए थे।
गांधी की कांग्रेस पर पकड़ हुई मजबूत
2009 के लोकसभा चुनाव में यूपीए की पकड़ मजबूत बनाए रखने में सोनिया और राहुल कामयाब रहे थे। बिहार में राजद और LJP दरकिनार हो गई थीं। इस बीच, भाजपा ने मनमोहन सिंह पर निशाना साधने का अभियान चलाया। मनमोहन 2004 से प्रधान मंत्री थे। भाजपा ने उन्हें “कमजोर” प्रधानमंत्री कह कर हमला बोलना शुरू किया।
भाजपा ने आडवाणी के नेतृत्व में अपने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए वोट मांगे और एक “निर्णायक” सरकार का वादा बेचने की कोशिश की।
इसके बावजूद, UPA सत्ता में वापस आ गई। एक चुनावी वादा जिसने वास्तव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को वापसी करने में मदद की, वह था कृषि ऋण माफी।
77 वर्षीय मनमोहन ने 22 मई, 2009 को एक बार फिर प्रधान मंत्री पद की शपथ ली, लेकिन आम धारणा यह थी कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले राहुल के लिए रास्ता बनाने के लिए उन्हें अपने पद से मुक्त कर दिया जाएगा। फिर भी, मनमोहन 2014 तक प्रधान मंत्री बने रहे।

भाजपा में टकराव
गिरते स्वास्थ्य के चलते वाजपेयी ने 2009 का चुनाव लड़ने से मना कर दिया। आडवाणी, जो तब 81 वर्ष के थे और वाजपेयी सरकार में उप प्रधानमंत्री व गृह मंत्री रह चुके थे, मैदान में डटे थे। 2009 के चुनावों से पहले एक वर्ष से अधिक समय तक वह भाजपा के प्रधान मंत्री पद के चेहरे थे।
एनडीए ने समाजवादी शरद यादव को संयोजक बनाया और 2009 के चुनावों की तैयारी तेज की। ऐसे ही वक्त पर भैरों सिंंह शेखावत ने बम गिरा दिया। जनवरी 2009 में पूर्व उपराष्ट्रपति ने घोषणा की कि वह लोकसभा चुनावों में आडवाणी की प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी को चुनौती देंगे।
शेखावत के इस कदम पर तत्कालीन भाजपा प्रमुख राजनाथ सिंह ने टिप्पणी की, “जिसने गंगा स्नान कर लिया हो, उसे कुएँ पर नहाने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।”
शेखावत ने पलटवार किया, “मैं भाजपा में तब से हूँ जब राजनाथ सिंह पैदा भी नहीं हुए थे। मैंने गंगा स्नान भले ही कर लिया हो, लेकिन कुएँ पर भी नहाया हूँ।” पूरी ताकत लगाने के बाद भी भाजपा सत्ता में नहीं आ सकी।
भाजपा की समस्या बढ़ाने वालों में दिग्गज राजनेता जसवंत सिंह भी शामिल थे, जो राजस्थान से थे और वाजपेयी के विश्वासपात्रों में से एक थे। उन्हें अगस्त 2009 में शिमला में पार्टी की बैठक के दौरान राजनाथ ने बर्खास्त कर दिया था। बैठक से ठीक पहले, जसवंत ने पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की प्रशंसा करते हुए एक पुस्तक जारी की थी।
उथल-पुथल के वर्ष और भ्रष्टाचार विरोधी बोल
जबकि UPA का पहला कार्यकाल कई जन-हितैषी नीतियों और कार्यक्रमों से भरा था। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, जिसे UPA-I ने 2005 में लागू किया था, ने आम नागरिकों को सत्ता में बैठे लोगों से कठिन प्रश्न पूछने की शक्ति दी थी। लेकिन, दूसरा कार्यकाल उथल-पुथल से भरा था। सरकार में संघर्ष और भ्रम बार-बार दिखाई देता था।
अखबारों में घोटालों के बारे में पढ़ना आम बात हो गई थी। इन घोटालों में 2010 का आदर्श हाउसिंग घोटाला, 2010 का CWG घोटाला, 2009 का 2G स्पेक्ट्रम घोटाला, 2012 का कोयला घोटाला आदि शामिल थे। वास्तव में, UPA में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के एक मंत्री, ए राजा को भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण इस्तीफा देना पड़ा।
पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी, अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और योग गुरु बाबा रामदेव जैसे भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं ने शीर्ष पर भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए सरकार को जन लोकपाल बिल बनाने के लिए मजबूर करने के लिए एक अभियान शुरू किया। दिल्ली का रामलीला मैदान बार-बार विरोध स्थल बन गया।
एक आईआरएस अधिकारी से RTI कार्यकर्ता बने केजरीवाल और रामदेव ने नए राजनीतिक संगठनों की शुरुआत पर नजरें गड़ा दीं। रामदेव भाजपा के करीबी हो गए, केजरीवाल ने 2012 में अपनी पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) का गठन किया। केजरीवाल ने मध्यम वर्ग को आकर्षित करने के लिए कई “अव्यावहारिक” वादे किए। जैसे- “मैं मुख्यमंत्री बनने के बाद आधिकारिक कारों और सरकारी आवास नहीं लूंगा” आदि। आप दिल्ली में जीत गई।

केजरीवाल के कुछ सहयोगी या तो भाजपा में शामिल हो गए या पार्टी के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे। किरण बेदी को बाद में पुदुचेरी के उपराज्यपाल नियुक्त किया गया था। जनरल वीके सिंह (सेवानिवृत्त) को 2014 और 2019 में गाजियाबाद से बीजेपी ने लोकसभा पहुंचाया और मोदी सरकार में मंत्री भी बनवाया।
10 साल तक सत्ता में रहने वाली पार्टी का क्षरण
किसी भी पार्टी के लिए लगातार दो कार्यकाल आसान नहीं होते हैं। यूपी और बिहार में, कांग्रेस वापसी करने में विफल रही। नेताओं ने पार्टी के संगठनात्मक आधारों को फैलाने का कोई प्रयास नहीं किया, जिससे कांग्रेस हर गुजरते साल के साथ कमजोर होती गई। इस बीच, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को जुलाई 2012 में राष्ट्रपति चुना गया।
उधर, भगवा आतंकवाद के आरोपों से जूझते हुए, संघ परिवार और एक नई भाजपा 2014 के चुनाव में जीत का इरादा लिए उतरी। 5 मार्च, 2014 को लोकसभा चुनावों की घोषणा की गई। भाजपा ने नरेंद्र मोदी को आगे करके चुनाव लड़ा और जोरदार तरीके से सत्ता में आई।