NCP Leader Baba Siddique Murder: एनसीपी नेता और बांद्रा वेस्ट से तीन बार विधायक रहे बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद मुंबई और पूरे महाराष्ट्र में राजनीतिक माहौल गर्म है और मुंबई की कानून व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव मुंह के सामने हैं और सिद्दीकी की हत्या के बाद नेताओं की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है।
सिद्दीकी की मौत के बाद मुंबई में 1960 के दशक से अब तक किस तरह 6 बड़े राजनेताओं को बदमाशों की गोलियों का शिकार होना पड़ा है, वे भयावह घटनाएं याद आती हैं।
बीजेपी नेता रामदास नायक की हत्या
बांद्रा वेस्ट विधानसभा सीट से चुनाव लड़े बीजेपी के नेता रामदास नायक की भी हत्या हुई थी। रामदास नायक बीजेपी की मुंबई इकाई के प्रमुख रहे थे और उनका सामना छोटा शकील से हुआ था। 28 अगस्त, 1994 को नायक जब अपने घर से कुछ ही दूरी पर स्थित बाबा सिद्दीकी के घर के पास अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ थे तभी छोटा शकील के गिरोह से जुड़े बदमाशों ने एके-47 राइफल से गोलियां चलाई। इस हमले में रामदास नायक और उनके सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई और बदमाश मोटरसाइकिल पर भाग गए।
मुंबई पुलिस ने इस मामले में 12 लोगों को गिरफ्तार किया था और इसमें गैंगस्टर फिरोज कोकनी भी शामिल था। 13 साल तक चली लंबी लड़ाई में सिर्फ एक शख्स को ही दोषी ठहराया जा सका।
कृष्णा देसाई की हत्या में 16 शिवसेना समर्थक दोषी
माना जाता है कि हत्या की ऐसी पहली घटना 5 जून, 1970 को हुई थी। जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) के विधायक कृष्णा देसाई की हत्या कर दी गई थी। देसाई एक मिल में मजदूर थे और बाद में यूनियन नेता के रूप में भी उभरे। वह कॉरपोरेटर बने और 1967 में परेल से विधायक का चुनाव भी जीते। देसाई ने मुंबई में कम्युनिस्ट पार्टी के सांस्कृतिक मोर्चा
राष्ट्र सेवा दल को मजबूत किया था।
उस दौर में शिवसेना मुंबई में अपना आधार बढ़ा रही थी तो उसने राष्ट्र सेवा दल और देसाई को अपने राजनीतिक वर्चस्व के लिए खतरा माना। 5 जून, 1970 की रात को देसाई जब घर से बाहर निकले तो उन्हें बताया गया कि कोई उनसे मिलना चाहता है। तभी वहां खड़े तलवार से लैस लोगों ने उन पर हमला कर दिया और देसाई की जान चली गई। इस मामले में शिवसेना के 19 समर्थकों को गिरफ्तार किया गया और इनमें से 16 को अदालत ने दोषी ठहराया।
मुंबई में गैंगस्टर्स का आतंक
1990 में मुंबई में गैंगस्टर्स का आतंक बढ़ गया था। इस दौरान शिव सेना के विधायक विट्ठल चव्हाण की 1992 में गुरु साटम गिरोह के बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। 29 मई, 1993 को शिवसेना के नेता और ट्रेड यूनियन के लीडर रमेश मोरे को अंधेरी में हमलावरों ने मौत के घाट उतार दिया था। उनकी हत्या का आरोप गैंगस्टर अरुण लवली पर लगा था।
इस घटना के पांच ही दिन बाद 3 जून, 1993 को बीजेपी के विधायक प्रेम कुमार शंकर दत्त शर्मा की बंदूकधारियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। कहा जाता है कि ये बंदूकधारी दाऊद इब्राहिम के गुट से संबंध रखते थे।
अप्रैल, 1994 में मुस्लिम लीग के पूर्व विधायक जियाउद्दीन बुखारी की बायकुला में हत्या कर दी गई। इसमें भी अरुण गवली गिरोह का नाम सामने आया। 1995 में जब शिवसेना-बीजेपी गठबंधन महाराष्ट्र की सत्ता में आया तो राजनीतिक हत्याओं पर अंकुश लगा।
मुंबई में जिस बड़े नेता की आखिरी हत्या हुई थी वह पूर्व विधायक दत्ता सामंत थे। 16 जनवरी, 1997 को घाटकोपर में काम पर जाते समय सामंत की गाड़ी को रोककर चार हमलावरों ने उन पर 17 गोलियां चलाईं। इसमें उनकी मौत हो गई। इस मामले में गैंगस्टर छोटा राजन को भी आरोपी बनाया गया लेकिन बाद में उसे बरी कर दिया गया।
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1997 में दत्ता सामंत की हत्या के बाद मुंबई में निर्वाचित प्रतिनिधियों की हत्या की कोई घटना नहीं हुई है। लेकिन बाबा सिद्दीकी की हत्या ने मुंबई पुलिस के सामने नेताओं की सुरक्षा को लेकर निश्चित रूप से एक चुनौती पेश की है। देखना होगा कि क्या पुलिस देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई में बदमाशों और गैंगस्टर्स का आतंक खत्म कर पाएगी?