Devdutt Pattanaik on Arts and Culture: (द इंडियन एक्सप्रेस ने UPSC उम्मीदवारों के लिए इतिहास, राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कला, संस्कृति और विरासत, पर्यावरण, भूगोल, विज्ञान और टेक्नोलॉजी आदि जैसे मुद्दों और कॉन्सेप्ट्स पर अनुभवी लेखकों और स्कॉलर्स द्वारा लिखे गए लेखों की एक नई सीरीज शुरू की है। सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स के साथ पढ़ें और विचार करें और बहुप्रतीक्षित UPSC CSE को पास करने के अपने चांस को बढ़ाएं। इस लेख में, पौराणिक कथाओं और संस्कृति में विशेषज्ञता रखने वाले प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पटनायक ने अपने लेख में भारत में अलग-अलग धर्मों में होने वाली अंतिम संस्कार की प्रथाओं पर चर्चा की है।)

जैन मिथकों में इस युग के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लेखन का ज्ञान और अपनी पुत्री सुंदरी को अंकगणित का ज्ञान दिया। साहित्य और गणित की उत्पत्ति दो जैन भिक्षुणियों से हुई है। जैन लोग विद्याओं या विषयों को तीर्थंकर की शिक्षाओं से उत्पन्न देवियों के एक समूह के रूप में देखते थे। हालांकि, ये कहानियां बहुत बाद में सामने आईं और संभवत लेखन की उत्पत्ति को समझाने का एक काव्यात्मक तरीका रही होंगी।

विद्वानों का मानना ​​है कि जैन धर्म ने लिपियों के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तमिलनाडु में, तमिल ब्राह्मी लिपि जैन स्थलों पर पाई गई है, जहाँ पत्थर की शय्याएं हैं, जहां जैन भिक्षु आमरण उपवास करते थे। यह लिपि 270 ईसा पूर्व की है और संभवतः अशोक की लिपि, जो 250 ईसा पूर्व की है, से भी पुरानी है। यह स्पष्ट है कि 2,300 वर्ष पूर्व, व्यापारियों, भिक्षुओं और राजाओं के कार्यों के माध्यम से लेखन भारत के कई भागों में पहुंच गया था।

अशोक की लिपि को ब्राह्मी क्यों कहा जाता है?

अशोक की लिपि को ब्राह्मी लिपि क्यों कहा जाता है? क्या मौर्य काल में इसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता था? हमें नहीं पता। प्रारंभिक विद्वानों ने इसे पिन-मैन लिपि, फिर लाट लिपि इंडियन पाली और मौर्य लिपि कहा। हम बस इतना जानते हैं कि सदियों बाद रचित बौद्ध कथाओं, जैसे कि संस्कृत ग्रंथ, ललितविस्तर सूत्र (300 ईस्वी) में, राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ने लेखन की कई विधाएं सीखीं। इन कथाओं में लिपियों की एक लिस्ट दी गई है। पहली लिपि ब्राह्मी थी, इसलिए विद्वानों ने अशोक की लिपि को ब्राह्मी घोषित कर दिया। इसका ब्रह्मा या ब्राह्मणों से कोई लेना-देना नहीं था।

ब्राह्मी दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाने वाली ज्यादातर लिपियों की जननी है। इसका प्रसार बौद्ध धर्म के साथ हुआ। यह एक अनूठी लिपि है, जो लैटिन वर्णमाला और सेमिटिक लिपि से अलग है। लैटिन में व्यंजन और स्वर एक के बाद एक अलग-अलग इकाइयों के रूप में उपयोग किए जाते हैं। यह बाएं से दाएं लिखा जाता है। सेमिटिक लिपियां दाएं से बाएं लिखी जाती हैं और उनमें केवल व्यंजन होते हैं, स्वर नहीं। ब्राह्मी को बाएं से दाएं और एक अनोखे गोलाकार तरीके से लिखा जाता है। व्यंजन (अक्षर) बीच में होते हैं और स्वर (मात्रा) इसके चारों ओर विशेषक चिह्नों के रूप में दिखाई देते हैं: ऊपर, नीचे, बाएं या दाएं। व्यंजन और स्वर संकेंद्रित वृत्तों में स्थित होते हैं।

लिपि हमें भारतीय संस्कृति और विश्व पर भारतीय संस्कृति के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ बताती है। अशोक के काल में गांधार क्षेत्र में एक अबुगिडा-शब्दांश लिपि का प्रयोग होता था, जिसे खरोष्ठी कहा जाता था। खरोष्ठी को दाएं से बाएं लिखा जाता था (जो फ़ारसी लोगों के अरामी प्रभाव को दर्शाता है) जबकि ब्राह्मी को बाएं से दाएं लिखा जाता था (जो स्वतंत्र उत्पत्ति को दर्शाता है)। समय के साथ, ब्राह्मी के प्रमुखता प्राप्त करने के साथ खरोष्ठी का प्रचलन कम होता गया।

चीनी प्रतीक लिपि

चीनी लिपि प्रतीक लिपि है। इसमें कई ऐसे अक्षर हैं जिन्हें याद रखना मुश्किल है। विभिन्न चीनी बोलियां एक ही मंदारिन अक्षर का उच्चारण अलग-अलग करती हैं, लेकिन शब्दों का अर्थ एक ही होता है। यह देश को एकीकृत करता है, इसलिए इसे प्राथमिकता दी जाती है। जब बौद्ध धर्म चीन में फैला, तब भी बौद्ध मंत्र चीनी लिपि में लिखे जाते थे।

जापानियों के पास एक प्रतीक लिपि (कांजी) है, जिसमें 50,000 अक्षर होते हैं, और एक शब्दांश (काना) लिपि भी है, जिसमें लगभग 50 प्रतीकों का प्रयोग होता है। यह 1000 साल पहले हुआ था, क्योंकि वे बौद्ध ग्रंथों में प्रयुक्त ब्राह्मी लिपि से प्रभावित थे। वास्तव में, जापानी बौद्ध मंत्रों में पूर्वी भारत की सिद्ध लिपि का प्रयोग करते हैं।

कुलीन कोरियाई लोगों द्वारा प्रयुक्त चीनी प्रतीक लिपि सीखना बहुत कठिन था। इसलिए, 500 साल पहले, कोरियाई राजा ने आम आदमी को साक्षर बनाने के लिए एक नई लिपि विकसित की। उनके दरबारी ब्राह्मी से विकसित तमिल लिपि से प्रेरित थे। तमिल और कोरियाई में कई समान शब्द हैं जो व्यापारिक संबंधों को दर्शाते हैं। तमिल व्यापारियों ने 1300 के दशक के आसपास चीन के क्वानझोउ में कैयुआन मंदिर भी बनवाया था।

कोरिया की हंगुल लिपि

ब्राह्मी लिपि में स्वरों के चारों ओर व्यंजन होते हैं। कोरिया की हंगुल लिपि भी इसी सिद्धांत पर चलती थी, लेकिन अपने अनूठे अंदाज़ में। हालांकि, यह ब्राह्मी अबुगिडा लिपि से प्रेरित थी, फिर भी इसे सीखना और भी आसान था। ब्राह्मी लिपियों का कोई विशेष तर्क नहीं होता। लेकिन हंगुल लिपि का तर्क स्पष्ट था, इसे उसी तरह लिखा जाता था जैसे व्यंजन और स्वर का उच्चारण करते समय जीभ मुंह में रखी जाती है। इससे इसे याद रखना आसान हो जाता है। हंगुल में 15 व्यंजनों और 10 अक्षरों के लिए अलग-अलग चिह्न थे। स्वर को व्यंजन के दाईं ओर या नीचे रखा जा सकता था। इससे इसे सीखना आसान हो गया। और इसने कोरियाई लोगों को बहुत जल्दी साक्षर होने में मदद की।

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भारत में, लेखन का लंबे समय तक विरोध किया गया। 300 ईसा पूर्व और 100 ईस्वी के बीच, सारा लेखन प्राकृत भाषाओं में होता था। 400 साल बाद ही संस्कृत लेखन शुरू हुआ। फिर, संस्कृत प्रमुख दरबारी भाषा बन गई, जिसका इस्तेमाल 300 ईस्वी से 1300 ईस्वी तक, अफ़गानिस्तान से वियतनाम तक, शाही घोषणाओं में किया जाता था। इस्लाम के उदय के साथ यह परंपरा समाप्त हो गई। नई अरबी और फारसी लिपियों के साथ-साथ, स्थानीय भारतीय भाषाओं के लिए स्थानीय भारतीय लिपियां भी उभरीं।

लेख से जुड़े प्रश्न

लिपि हमें भारतीय संस्कृति और विश्व पर भारतीय संस्कृति के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ बताती है। ब्राह्मी लिपि के संदर्भ में चर्चा करें।

ब्राह्मी लिपि में स्वरों की व्यवस्था इसे कैसे विशिष्ट बनाती है?

ब्राह्मी लिपि हिंदू धर्म और जैन पौराणिक कथाओं, दोनों से कैसे जुड़ी है? दिगंबर जैन पौराणिक कथाएँ ब्राह्मी के बारे में क्या कहती हैं?

ब्राह्मी वर्णमाला (लैटिन) और व्यंजन (सेमिटिक) लिपियों से किन मायनों में भिन्न है, और यह एक अबुगिडा के रूप में इसकी विशिष्टता के बारे में क्या बताता है?

(देवदत्त पटनायक एक प्रसिद्ध पौराणिक कथाकार हैं जो कला, संस्कृति और विरासत पर लिखते हैं।)