Aravalli Hills Controversy: देश में अरावली पहाड़ियों को बचाने को लेकर एक नई बहस छिड़ चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया एक फैसले के बाद यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है। कोर्ट ने कहा है कि अरावली क्षेत्र में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को जंगल के रूप में क्लासिफाई नहीं किया जाएगा।

इस आदेश के सामने आते ही पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर भी बड़ी संख्या में युवा ‘सेव अरावली’ को लेकर अभियान चला रहे हैं।

अरावली का पूरा विवाद क्या है?

असल में, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) ने अपनी एक रिपोर्ट में अरावली क्षेत्र की लगभग 10 हजार पहाड़ियों को अरावली पर्वतमाला का हिस्सा बताया था। साथ ही यह सिफारिश भी की गई थी कि इन इलाकों में खनन गतिविधियों पर रोक लगाई जानी चाहिए। इस रिपोर्ट के बाद राजस्थान की भजनलाल सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची। राज्य सरकार ने दलील दी कि यदि इस रिपोर्ट को पूरी तरह लागू किया गया, तो प्रदेश में चल रही अधिकतर खनन गतिविधियां बंद हो जाएंगी। राज्य सरकार के तर्क सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पूरे मामले में नए सिरे से कानून बनाने की जरूरत है, और तब तक पुरानी व्यवस्थाओं को बनाए रखा जा सकता है।

अरावली को लेकर 100 मीटर वाला विवाद क्या है?

दरअसल, अरावली को परिभाषित करने के लिए एक नई सीमा तय की गई है। आसान शब्दों में कहें तो अब 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली की श्रेणी में माना जाएगा। जो पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंची होंगी, उन्हें जंगल के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा।

इस परिभाषा का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि आरोप है कि कई कंपनियां खनन के लिए 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची पहाड़ियों को भी 60 या 80 मीटर ऊंचा बताकर रिकॉर्ड में दर्ज कर रही हैं, ताकि वहां माइनिंग की अनुमति मिल सके।

अरावली पहाड़ कितनी जरूरी हैं?

अरावली पहाड़ियां पूरे उत्तर भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। अरावली का दक्षिण-पश्चिमी सिरा गुजरात में पालनपुर के पास स्थित है, जहां माउंट आबू मौजूद है। राजस्थान में अरावली का सबसे बड़ा हिस्सा फैला हुआ है, जो लगभग 13 से 15 जिलों जैसे उदयपुर, राजसमंद, अजमेर, जयपुर आदि को कवर करता है। राजस्थान में ही अरावली की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर है, जिसकी ऊंचाई 1,722 मीटर है। हरियाणा में अरावली की पहाड़ियां गुरुग्राम, फरीदाबाद, नूंह, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ तक फैली हैं। सरल शब्दों में कहें तो अरावली चार राज्यों में फैली हुई है और इसके संरक्षण के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं।

अरावली खतरे में तो दिल्ली पर क्या असर पड़ेगा?

जानकारों के मुताबिक, अगर अरावली को नहीं बचाया गया तो इसका असर सिर्फ पहाड़ियों तक सीमित नहीं रहेगा। पूरा इकोसिस्टम खतरे में पड़ सकता है, गर्मी और तापमान बढ़ सकता है, जल संकट गहरा सकता है, सांस संबंधी बीमारियां बढ़ेंगी और लोगों का पलायन भी हो सकता है। इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण और पानी की समस्या और गंभीर हो सकती है।

अरावली से आगे भी बड़ी समस्या: अवैध खनन

अरावली विवाद को समझने के बाद एक और बड़ी समस्या सामने आती है। यह समस्या सिर्फ एक-दो राज्यों तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश में फैली हुई है। विकास के नाम पर बड़े पैमाने पर अवैध खनन (Illegal Mining) चल रहा है। इससे राज्यों को भारी राजस्व नुकसान होता है, पर्यावरण का शोषण होता है और इसका फायदा कुछ गिनी-चुनी कंपनियों और उद्योगपतियों तक सीमित रह जाता है। अवैध खनन को लेकर कुछ भरोसेमंद आंकड़े भी मौजूद हैं, जो इस स्थिति की गंभीरता को साफ तौर पर दिखाते हैं।

अवैध खनन पर क्या कहते हैं आंकड़े?

राज्यसभा में साल 2020 में अवैध खनन को लेकर एक विस्तृत डेटा पेश किया गया था। नीचे दी गई तालिका से यह समझने की कोशिश की जाएगी कि किस राज्य में अवैध खनन के कितने मामले दर्ज हुए, कितने मामलों में एफआईआर लिखी गई, कितने केस अदालत तक पहुंचे और राज्य सरकारों ने अवैध खनन करने वाली कंपनियों से कितना जुर्माना वसूला।

क्रम संख्याराज्यअवैध खनन के मामले (2022–23)दर्ज की गई एफआईआर (संख्या)अदालत में दायर मामले (संख्या)जब्त किए गए वाहन (संख्या)राज्य सरकार द्वारा वसूला गया जुर्माना (₹ लाख)
1आंध्र प्रदेश4296002327312.55
2गोवा10000
3गुजरात4886281335517656.69
4हिमाचल प्रदेश19340189350.08
5जम्मू और कश्मीर266723582828620.01
6झारखंड16265692531187312.15
7कर्नाटक29603841503401546.18
8केरल36710006840.16
9मध्य प्रदेश390141584027343.25
10महाराष्ट्र360719004834323.98
11ओडिशा70017.75
12राजस्थान76458563955118147.56
13सिक्किम28124521101722.4
14तमिलनाडु4495000743.12
15तेलंगाना1793817567407221.83
16उत्तर प्रदेश757000256.26
सोर्स: राज्यसभा डेटा (1 अप्रैल 2022 से 30 सितंबर 2022 की अवधि)

अब ऊपर दी गई टेबल से पता चलता है कि अवैध खनन के सबसे ज्यादा मामले तेलंगना में सामने आए हैं, वहीं सबसे कम केस गोवा में दर्ज किए गए हैं। सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि कई राज्यों को इस अवैध खनन की वजह से राजस्व का भारी नुकसान हुआ है। यहां भी उत्तर प्रदेश सरकार को तो सीधे-सीधे 408.68 करोड़ रुपये की चपत लगी है। कर्नाटक का हाल तो और बुरा चल रहा है। कर्नाटक सरकार की ही एक कमेटी ने इस साल बताया है कि राज्य ने 78 हजार 245 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा रहा है।

अरावली के अलावा और कौन से पहाड़ खतरे में?

अब ऐसा नहीं है कि सिर्फ अरावली के पहाड़ ही बड़े संकट में हैं, देश में कुछ और ऐसी प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएं जहां अवैध खनन का काम चल रहा है। पश्चिमी घाट इसका एक बड़ा उदाहरण है, महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक, गोवा, तमिलनाडु और केरल तक इसकी चोटियां मौजूद हैं। आयरन, मैंगनीज़, लाइमस्टोन, और बालू का सबसे ज्यादा खनन इन्हीं पश्चिमी घाटों में किया जाता है। नियमगिरि पहाड़ियों का भी शोषण कई सालों से चल रहा है, ओडिशा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित यहां सबसे ज्यादा बॉक्साइट का खनन होता है। ओडिशा में स्थित निशिंता हिल्स भी अवैध खनन का शिकार है।