अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने धार्मिक आजादी पर सालाना अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट (2023 Report on International Religious Freedom) जारी कर दिया है। इसमें धर्मांतरण विरोधी कानूनों, नफरती भाषणों और अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों व मकानों को गिराए जाने जैसी घटनाओं का जिक्र किया गया है।
रिपोर्ट जारी करते हुए ब्लिंकन ने भारत के संदर्भ में इन घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि ये चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका में भी नफरती अपराधों और मुसलमानों व यहूदियों को निशाना बनाने की घटनाएं नाटकीय रूप से बढ़ी हैं।
इससे पहले कि हम जानें इस रिपोर्ट में भारत के बारे में क्या अहम बातें हैं, हम यह जानते हैं कि इस रिपोर्ट की कितनी अहमियत है। असल में इस रिपोर्ट का मकसद विभिन्न देशों में हो रही घटनाओं की जानकारी एक जगह समेटने और इन घटनाओं के प्रति अमेरिकी सरकार को आगाह रखने तक सीमित लगता है। यह न तो अमेरिकी सरकार का आधिकारिक स्टैंड होता है और न इसके आधार पर संबंधित देशों के रिश्ते तय होते हैं।

अमेरिकी दूतावास के इनपुट्स पर आधारित होती है रिपोर्ट
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक मंत्रालय इस वार्षिक रिपोर्ट को 1998 के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (पी.एल. 105-292) की धारा 102(बी) के तहत तैयार करता है अमेरिकी कांग्रेस में पेश किया जाता हे। यह रिपोर्ट 1 जनवरी से 31 दिसंबर, तक की होती है।
रिपोर्ट मुख्य रूप से अमेरिकी दूतावास के इनपुट्स पर आधारित होती है। दुनिया भर में अमेरिकी दूतावास के अधिकारी संबंधित देशों की सरकार के अधिकारियों, धार्मिक समूहों, गैर सरकारी संगठनों, पत्रकारों, मानवाधिकार संगठनों व कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, मीडिया आदि से मिली जानकारी के आधार पर ड्राफ्ट तैयार करते हैं।
वाशिंगटन स्थित अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कार्यालय अमेरिकी दूतावासों में तैयार रिपोर्ट लेता है। वह इसका विश्लेषण करता है और अपने इनपुट भी जोड़ता है। उसके इनपुट का आधार विदेशी सरकारी अधिकारियों, घरेलू और विदेशी धार्मिक समूहों और गैर सरकारी संगठनों, अन्य अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों, पत्रकारों, शैक्षणिक विशेषज्ञों, समुदाय के नेताओं और अमेरिकी सरकार के संस्थानों से हुई बातचीत होता है।
किसी इनपुट को रिपोर्ट में शामिल करने से पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय अपनी ओर से स्वतंत्र पुष्टि नहीं करता है। हां, उसकी यह कोशिश जरूर रहती है कि जहां तक संभव हो, रिपोर्ट को किसी तरह के पक्षपात या गलत जानकारी से दूर रखा जाए। इसके लिए वह कई स्रोतों से मिली मिलती-जुलती जानकारी पर भरोसा करता है।

मुद्दे और समाज का रुख बताती है रिपोर्ट
एक बात यह भी है कि रिपोर्ट में किसी पक्ष का इनपुट शामिल हो जाने का मतलब यह नहीं है कि यह अमेरिकी सरकार का मत है। न ही, यह समझा जाए कि रिपोर्ट में किसी मुद्दे का जिक्र हो गया तो वह अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिक्र नहीं हुआ तो अमेरिका उस मुद्दे को अहमियत नहीं देता।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय का साफ कहना है कि यह सालाना रिपोर्ट उदाहरणों के जरिए सिर्फ इस बात को जाहिर करना है कि किस देश में क्या मुद्दा गरम है और सरकार-समाज आदि का उस पर क्या रुख है।
रिपोर्ट का मकसद केवल यह बताना है कि किसी गतिविधि से धार्मिक स्वतंत्रता किस हद तक प्रभावित हो सकती है।
देखिए, इस विषय पर वीडियो-
धार्मिक आजादी पर अमेरिकी रिपोर्ट में भारत के बारे में क्या है
भारत का संविधान धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन इसके अभ्यास के बारे में चिंताएं हैं।
10 राज्यों में धार्मिक रूपांतरण को प्रतिबंधित करने वाले कानून मौजूद हैं। अल्पसंख्यक समूह (ईसाई, मुस्लिम) हिंसा, उत्पीड़न और अपने धर्म को स्वतंत्र रूप से अभ्यास करने में कठिनाई की रिपोर्ट करते हैं। सरकारी कार्रवाइयों को विरोधाभासी माना जाता है, कुछ अधिकारी सहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं जबकि अन्य भेदभावपूर्ण बयान देते हैं।

मुख्य घटनाएँ:
धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि, जिसमें चर्चों, मस्जिदों और आराधनालयों पर हमले शामिल हैं।
हिंदू त्योहारों के सार्वजनिक उत्सवों ने कभी-कभी सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया, खासकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में।
प्रधान मंत्री मोदी ने धार्मिक स्वतंत्रता पर कुछ सकारात्मक बयान दिए, लेकिन कुछ ईसाई समूहों ने उनसे मुलाकात का बहिष्कार किया।
अंतर्राष्ट्रीय चिंताएँ:
अमेरिकी सरकार ने भारतीय अधिकारियों के साथ धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के बारे में चिंता व्यक्त की।
ह्यूमन राइट्स वॉच ने भारतीय सरकार की कार्रवाइयों की आलोचना की।
सकारात्मक घटनाक्रम:
2021 की तुलना में सांप्रदायिक हिंसा में कमी आई।
अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देने और हिंसा का समाधान करने के लिए सरकारी प्रयास।
कुल मिलाकर, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता एक जटिल मुद्दा है जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों विकास शामिल हैं।
US report on religious freedom में भारत के बारे में कुछ और बातें
- भारतीय संविधान धर्म की स्वतंत्रता और अंतःकरण की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- यह सभी धर्मों के प्रति निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है।
- धर्म के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- नागरिकों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य को प्रभावित किए बिना अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है।
- दस राज्यों में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने वाले कानून हैं, कुछ में विवाह के लिए जबरन धर्म परिवर्तन पर दंड है।
- धार्मिक अल्पसंख्यकों ने हिंसा और भेदभाव से सुरक्षा के लिए सरकार की भूमिका को चुनौती दी है।
- फरवरी में, 20,000 ईसाईयों ने नई दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया।
- मार्च में, 93 पूर्व वरिष्ठ सिविल सेवकों ने प्रधान मंत्री मोदी को ईसाइयों के उत्पीड़न के बारे में पत्र लिखा।
- ईसाईयों और मुसलमानों को धर्म परिवर्तन विरोधी कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया, उत्पीड़न के लिए इन कानूनों का दुरुपयोग होने का आरोप लगाया गया।
- ईसाइयों पर हमला करने वाले भीड़ को पुलिस का सहयोग करने की रिपोर्टें आई हैं।
- प्रधान मंत्री मोदी ने एक समान नागरिक संहिता को बढ़ावा दिया, अल्पसंख्यक नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा।
- कुछ सरकारी अधिकारियों ने धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन किया।
- एनसीएम ने ईसाइयों के खिलाफ उत्पीड़न के मामलों को दूर करने का वादा किया है।
- 2022 में सांप्रदायिक हिंसा के 272 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 में 378 से कम है।
- यूसीएफ ने 2023 में ईसाइयों पर 731 हमलों की सूचना दी, जो 2022 में 599 से अधिक है।
- मई में मणिपुर में जातीय हिंसा ने ईसाई और हिंदू धर्मस्थलों को प्रभावित किया।
- हिंसा को केवल धार्मिक के रूप में वर्गीकृत करना मुश्किल है, इसमें जातीय तनाव शामिल था।
- सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की प्रतिक्रिया की आलोचना की और जाँच का आदेश दिया।
- सार्वजनिक हिंदू त्योहारों के उत्सवों से सांप्रदायिक हिंसा हुई।
- भाजपा और संबद्ध समूहों ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जुलूस निकाले।
- हिंसा के संबंध में सैकड़ों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया।
- हरियाणा में मुस्लिम घरों और दुकानों को निशाना बनाने के आरोप लगे।
- सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण और आर्थिक बहिष्कार की निंदा की।