बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने 13 मार्च को बड़ी घोषणा की। पार्टी ने 11 सीटों पर लड़ने का ऐलान किया। इनमें किशनगंज और भागलपुर भी शामिल हैं। ये दो सीटें ऐसी हैं जो पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू के खाते में थीं। इस बार भी भाजपा-जदयू साथ लड़ रहे हैं तो संभावना है कि जदयू के खाते में ही जाए।
ये दो सीटें भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन की पसंदीदा सीट भी मानी जाती है। दोनों सीटों से वह सांसद रह चुके हैं। फिलहाल (मई तक) शाहनवाज बिहार विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) हैं, लेकिन पार्टी ने इस बार उन्हें दोबारा उम्मीदवार नहीं बनाया। ऐसे में उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर संशय की स्थिति पैदा हो गई है।
हुसैन केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भाजपा का चमकता हुआ मुस्लिम चेहरा बन कर उभरे थे। बाद में भी वह केंद्रीय स्तर पर पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिकाओं में रहे, लेकिन 2021 में उन्हें बिहार विधान परिषद भेज दिया गया था और राज्य की गठबंधन सरकार में उद्योग मंत्री भी बनाया गया था। नीतीश कुमार के राजद से जा मिलने के बाद वह सरकार चली गई। अब नीतीश कुमार फिर बीजेपी के साथ आए तो हुसैन को सरकार में जगह नहीं मिली और न ही विधान परिषद उम्मीदवार बनाया गया।
क्या शाहनवाज हुसैन को टिकट देगी भाजपा?
सुशील मोदी की खाली जगह को भरने वाले शाहनवाज शाहनवाज हुसैन 1999 में किशनगंज संसदीय सीट जीत कर केंद में मंत्री बने थे। इसके बाद भागलपुर लोकसभा सीट से 2006 के उपचुनाव में भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया। सुशील मोदी के इस्तीफा देने से यह सीट खाली हुई थी। हुसैन भागलपुर से जीते। फिर 2009 संसदीय चुनाव में भी बतौर भाजपा प्रत्याशी इनकी जीत हुई।
मगर 2014 चुनाव में भागलपुर संसदीय सीट पर इनकी पराजय के साथ इनके सितारे गर्दिश में आ गए थे। 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी ने इन्हें कहीं से टिकट नहीं दिया। 2021 में हुसैन को बिहार विधान परिषद की सदस्यता भी राज्यसभा भेजे जाने के चलते सुशील मोदी की सीट खाली होने पर ही मिली थी।
अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच हुसैन का राजनीतिक भविष्य बिहार की राजनीति में चर्चा का विषय बना है। लोग चुनावी चर्चा में हुसैन को टिकट मिलने की संभावनाओं और उनकी पसंदीदा सीट को लेकर चर्चा करते मिल जाते हैं। बताया जाता है कि हुसैन पिछले चुनावों में किशनगंज या भागलपुर में से ही किसी एक सीट से टिकट पाने की कोशिश करते रहे हैं। पर, इस बार इन सीटों का समीकरण कुछ अलग है।
क्या है इन सीटों का समीकरण?
भागलपुर सीट 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू के खाते में रही। जदयू के अजय मंडल ने पौने तीन लाख से अधिक मतों से जीत भी हासिल की। ऐसे में इस बार जदयू के यह सीट छोड़ने का अनुमान कम ही है। उल्टे, जदयू में ही इस सीट पर दावेदारी को लेकर दो नेताओं में बयानबाजी छिड़ी हुई है। मौजूदा सांसद अजय मंडल और जदयू विधायक गोपाल मंडल इस सीट पर अपनी-अपनी दावेदारी जता रहे हैं।
अगर किसी तरह भाजपा के खाते में सीट आ भी गई और शाहनवाज हुसैन को टिकट मिल भी गया तो ओवैसी की पार्टी की उम्मीदवार से उन्हें नुकसान ही होगा। भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी जो विधानसभा चुनाव के समय नजर आई थी, वह भी अभी तक खत्म नहीं हुई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का गुट इनका धुर विरोधी रहा है और शाहनवाज का राजनीतिक भविष्य धूमिल होने से खुश बताया जा रहा है। वैसे, शाहनवाज भागलपुर में लगातार अपनी मौजूदगी और सक्रियता दिखाते रहते हैं। हाल ही में उन्होंने भागलपुर आकर आस्था ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर अयोध्या के लिए रवाना किया था।
अब अगर किशनंगज की चुनावी संभावनाओं की बात करें तो वहां भी शाहनवाज के लिए कुछ अच्छा नहीं दिख रहा। 2019 में वहां से भी जदयू ही लड़ा था, भाजपा नहीं। कांग्रेस उम्मीदवार की जीत हुई थी और ओवैसी की पार्टी के अख्तर-उल-इमाम करीब तीन लाख वोट लाकर तीसरे नंबर पर थे। वह फिर से मैदान में होंगे।
किशनगंज बिहार की मुस्लिम (करीब 65 फीसदी आबादी) बहुल लोकसभा सीट है। यहां से मुसलमान ही जीतते रहे हैं और काफी कम वोट पाकर सांसद बनते रहे हैं। पिछले पांच चुनावों (1999-2019) की बात करें तो तीन बार 40 फीसदी से भी कम वोट पाकर उम्मीदवार जीते हैं। 2004 में तस्लीमुद्दीन और 2014 में कांग्रेसी असराउल हक 50 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर सांसद बने थे। 1999 में शाहनवाज हुसैन यहां से सांसद बने थे। तब उन्हें 35.96 फीसदी वोट मिले थे। 2009 से लगातार यहां कांग्रेस जीतती रही है। 2009 को छोड़ (जब 52 फीसदी ही मतदान हुआ) यहां मतदान का प्रतिशत 63 से 66 फीसदी के बीच रहा है।