चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की पहचान एक ऐसे जज की है जो दो टूक अपनी बात रखते हैं और फैसला सुनाते हैं। भले ही उन्हें अपने पिता के फैसले को क्यों न पलटना पड़ा हो। दो मौके ऐसे आए जब जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने ही पिता और पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को पलट दिया। पहला निजता का अधिकार पर और दूसरा एडल्ट्री यानी व्यभिचार से जुड़ा फैसला।

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने IPC की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया था और एडल्ट्री को अपराध के दायरे से खत्म कर दिया था। उच्चतम न्यायालय की जिस बेंच ने यह फैसला सुनाया था, उसमें जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी थे।

साथी जज ने किया था आगाह

The Week की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब जस्टिस चंद्रचूड़ एडल्ट्री पर अपने पिता और पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ का फैसला पलटने वाले थे, तब उनके एक साथी जज ने उन्हें ऐसा करने से रोका भी था। सोनी मिश्रा अपनी रिपोर्ट में लिखती हैं कि ‘बताया जाता है कि साल 2018 में एडल्ट्री पर फैसला देने से पहले जस्टिस चंद्रचूड़ को एक साथी जज ने इसको लेकर चेताया था और कहा था कि उनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ ने साल 1985 में एडल्ट्री पर जो फैसला दिया था, वह बहुत सोच समझकर दिया था। हालांकि जस्टिस चंद्रचूड़ इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे कि उस फैसले में खामी थी।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एडल्ट्री पर क्या कहा था?

साल 2018 में सेक्शन 497 के खिलाफ फैसला देने के बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि हमें अपने फैसलों को आज के हिसाब से देखना चाहिए और प्रासंगिक बनाना चाहिए। कई ऐसे मामले आते हैं जिनमें कामकाजी महिलाओं के साथ उनके पति मारपीट करते हैं। यदि वो किसी दूसरे पुरुष के प्यार में स्नेह और सांत्वना ढूंढती हैं तो क्या इससे वंचित रखा जा सकता है?

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि यदि दो लोगों में कोई भी किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखता है तो क्या उसे धारा 497 के तहत दंडित किया जाना चाहिए? यौन स्वायत्तता के सम्मान पर जोर देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि विवाह, स्वायत्तता की सीमा को सुरक्षित नहीं करता है। धारा 497 विवाह के बाद महिला की यौन स्वायत्तता को अपराध करार देता है, जो प्रासंगिक नहीं है।

लेकिन बिल्कुल अलग थी पिता की राय

हालांकि साल 1985 में तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाईवी चंद्रचूड़, जस्टिस आर एस पाठक, जस्टिस एएन सेन ने धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा था और इसके तहत एडल्ट्री को एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के खिलाफ अपराध के रूप में परिभाषित किया था। तब तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ ने कहा था कि सेक्शन 497 के तहत कुछ मामलों में अनुचित यौन संबंध के लिए सजा का प्रावधान जरूर होना चाहिए।