भारत में मोबाइल क्रांति की शुरुआत 31 जुलाई 1995 से मानी जाती है। इसी दिन देश में मोबाइल से पहला कॉल किया गया था। इस कॉल पर पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु और संचार मंत्री सुखराम ने बातचीत की थी। यह कॉल नोकिया के मोबाइल फोन से किया गया था। बसु कोलकाता की रॉयटर बिल्डिंग में बैठे थे और सुखराम दिल्ली स्थित संचार भवन में मौजूद थे। आज 27 साल बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टेलिकॉम मार्केट है।
कैसे हुई थी शुरुआत?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दूरसंचार मंत्री के रूप में जापान की यात्रा पर सुखराम ने अपने चालक को अपनी जेब में एक मोबाइल फोन रखते देखा था। सुखराम ने सोचा कि अगर अगर जापान के पास यह तकनीक हो सकती है, तो भारत के पास क्यों नहीं। वह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी श्रेय देते हैं, जो चाहते थे कि कंप्यूटर और टेलीफोन भारत के घर-घर पहुंचाना चाहते थे।
साल 1980 में देश के भीतर मोबाइल टेक्नोलॉजी पर काम शुरू हुआ। उद्योगपति भूपेंद्र कुमार मोदी ने मोदी कॉर्प नाम से एक कंपनी बनाई। इस कंपनी ने 1993 में ऑस्ट्रेलियाई कंपनी टेलस्ट्रा के साथ साझेदारी कर मोदी टेलस्ट्रा कंपनी बनाई। साल 1994 में भूपेंद्र कुमार मोदी ने मुख्यमंत्री ज्योति बसु से मुलाकात कर कलकत्ता में मोबाइल नेटवर्क लगाने की इच्छा जताई। बसु मान गए और कल कलकत्ता मोबाइल नेटवर्क वाला पहला शहर बन गया।
‘मोबाइल में कैमरा होगा, सोचा नहीं था’
सुखराम की कोरोना की दूसरी लहर में मौत हो गई। उन्होंने कभी अनुमान भी नहीं लगाया था कि मोबाइल फोन से एक कैमरा भी जोड़ा जा सकता है। वैसे बता दें कि शुरुआत में किसी को कॉल करने पर 16.80 रुपए प्रति मिनट और कॉल रिसीव करने पर 8.40 रुपए प्रति मिनट की दर से भुगतान करना पड़ता था। थे। यानी तब मोबाइल पर एक मिनट बात करने के लिए 24 से 25 खर्च करना होता था। यही वजह रही कि आम लोगों के बीच मोबाइल सेवा बहुत देर से प्रचलित हुई।
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