राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस वर्ष अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। 15 अगस्त को पीएम मोदी ने अपने संबोधन में RSS को दुनिया का सबसे बड़ा NGO बताया था। मगर दुनिया में शायद ही कोई ऐसा दूसरा एनजीओ हो जिसके दो पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को भारत जैसे विशाल देश का प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला हो। RSS खुद को एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन मानता है, लेकिन भारतीय राजनीति में उसके असर की चर्चा देश-दुनिया में होती रहती है। राजनीति हो या संस्कृति, आरएसएस से जुड़े हर विमर्श के केन्द्र में होता है- हिन्दुत्व। आखिर क्या है ये हिन्दुत्व? क्या है आरएसएस की हिन्दुत्व की परिभाषा? भारतीय राजनीति में हिन्दुत्व की एंट्री कब और कैसे हुई? जनसत्ता विशेष की खास सीरीज ‘आरएसएस के 100 साल’ के पहले अंक में हम आपको इन्हीं सवालों के जवाब देंगे।

आरएसएस के लिए हिंदुत्व का क्या मतलब है, यह जानने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि हिंदुत्व का शाब्दिक अर्थ क्या होता है। बाबू श्याम सुंदर दास द्वारा संपादित हिंदी शब्दसागर में हिंदुत्व का अर्थ खोजने पर इसका मतलब आता है- हिंदू का भाव…. या फिर हिंदूपन। लेकिन यह तो हुआ हिन्दुत्व का डिक्शनरी मीनिंग। अब हिंदुत्व अपने शाब्दिक अर्थ तक सीमित नहीं रह गया है। इसके राजनीतिक और सामाजिक मतलब भी हैं।

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इतिहासकारों के मुताबिक हिंदुत्व शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल बंगाली साहित्यकार ने किया था। उनका नाम था- चंद्रनाथ बसु। उन्होंने किताब लिखी थी- हिंदुत्व: हिंदूर प्राकृत इतिहास। 1892 में लिखी गई इस किताब ने कहा था कि मानवता के जरिए ही आप देवताओं तक पहुंच सकते हैं। बसु मानते थे कि जो हिंदू समाज है, असल में वही spiritual consciousness यानी कि आध्यात्मिक चेतना पा सकता है। अब बसु ने हिंदुत्व की जो परिभाषा बताई थी, वो राजनीतिक नहीं थी, लेकिन आगे चलकर हिंदुत्व का राजनीतिकरण हुआ और इसके मायने भी बदलते गए।

जानकारों की माने तो वीर सावरकर ने सबसे पहले हिंदुत्व का सियासी मतलब बताया था। वे कहते हैं- मेरे लिए हिंदू वही शख्स है जिसकी पितृभूमि और पुण्यभूमि एक है। यहां भी सावरकर जब पुण्यभूमि की बात करते थे। उनका धार्मिक से ज्यादा सांस्कृतिक मतलब था। अब यहां तक चर्चा में RSS नहीं आई थी, लेकिन फिर 1925 में डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने RSS की स्थापना की और हिंदुत्व के मायने बदल गए।

वॉल्टर के एंडरसन की किताब में भी हेडगेवार की हिंदुत्व परिभाषा बताई गई है। हेडगेवार ने कहा था कि जो भी इस भारत भूमि में रहता है, वो हमारे लिए हिंदू है। हमारे लिए दूसरे धर्म के वो लोग भी हिंदू हैं जो हिंदू मान्यताओं को मानेंगे। हेडगेवार तो मानते थे कि भारत में हर कोई रह सकता है, लेकिन उन्हें इस बात का अहसास जरूर रहना चाहिए कि वे उस हिंदुस्तान में रह रहे हैं जो हिंदुओ का है।

RSS की अगर वेबसाइट का भी हम रुख करेंगे वहां भी हिंदुत्व को लेकर हेडगेवार के विचार स्पष्ट होते हैं। ये भी पता चलता है कि संघ का असल उदेश्य है क्या। हेडगेवार का एक QUOTE कहता है- हिंदुस्तान की रक्षा तभी हो सकती है… जब हिंदू संस्कृति को बचाया जाएगा… अगर हिंदू संस्कृति ही खत्म हो गई… तो सिर्फ भौगोलिक इलाके को हिंदुस्तान बोलने का कोई मतलब नहीं।

अब हेडगेवार कहने को संघ के संस्थापक थे। उन्होंने भी हिंदुत्व का अपना मतलब समझाया। लेकिन फिर भी इस मामले में ज्यादा श्रेय एम एस गोलवलकर को दिया जाता है। गोलवोलकर ने कहा था कि सभी हिंदुओं को एक समान समझना चाहिए, सभी से प्यार करना चाहिए। हीन भावना कहीं नहीं होनी चाहिए।

गोलवलकर की विचारधारा के बारे में कुछ दूसरी किताबों से भी जानकारी मिलती है….उनकी एक किताब है- We, or Our Nationhood Defined। इसमें हिंदुत्व को लेकर तो काफी स्पष्टता से बताया ही गया है। गोलवलकर ने राष्ट्रवाद को लेकर भी बड़ी बातें कही हैं। उनका मानना था कि खून का एक-एक कतरा देश के लिए समर्पित होना चाहिए। वे हिंदुत्व की बात तो करते थे, लेकिन ये भी कहते थे कि बात जब देश सेवा की आए तो जाति-धर्म बीच में नहीं आ सकते। अब आज का RSS हिंदुत्व की बात तो करता है, लेकिन वो राष्ट्रवाद को साथ लेकर चलता है।

मोहन भागवत ने कई मौकों पर एक ऐसे हिंदुत्व की बात की है जहां पर सभी धर्मों को जगह दी गई, जहां पर विविधता पर जोर रहा। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि RSS का एक ही उदेश्य है- वो पूरे हिंदू समाज को एकजुट करना चाहता है, हिंदू समाज ही जिम्मेदार समाज है, जो लोग इस बात को नहीं समझ पाए, वो अलग हो गए। उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। अब अगर भावगत हिंदुओं को एकजुट करना चाहते हैं, उन्होंने ही खुलकर मुस्लिमों को साथ लाने की बात कही है।

असल में मोहन भागवत के हिंदुत्व में मुस्लिमों को भी जगह दी गई है। बात 2018 की है… एक प्रोग्राम में उन्होंने उन लोगों का मुंह बंद कर दिया था जो कहा करते थे कि हिंदू राष्ट्र में मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं। भागवत ने उस समय कहा था कि हिंदू राष्ट्र का ये मतलब ना निकाला जाए कि वहां मुस्लिमों के लिए कोई स्थान नहीं। हिंदुत्व मुसलमानों के बिना अधूरा है, ऐसा तो बिल्कुल नहीं है, जिस दिन ऐसा कहा जाएगा कि हमें मुस्लिमों की जरूरत नहीं है, तब हिंदुत्व का कंसेप्ट भी खत्म हो जाएगा।

कई जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि RSS अब गोलवलकर या हेडगेवार वाली नहीं रह गई है। हिंदुत्व को लेकर स्टैंड पहले जितना कट्टर हुआ करता था, अब उतना ही फ्लेक्सिबल हो चुका है। आज का RSS हिंदुत्व की बात। हिंदू राष्ट्र की बात तो करता है, लेकिन वो ये नहीं कहता कि मुस्लिमों को बाहर रखो। इसके ऊपर जो RSS जातिवाद के खिलाफ बात करता है उसने अब जातिगत जनगणना को अपना समर्थन दिया है। मैसेज दिया जा रहा है कि हिंदुत्व भी तभी संपन्न है जब सभी हिंदू जातियां संतुष्ट हों। इसी वजह से तो जब भागवत की पीएम मोदी से मुलाकात हुई, अगले ही दिन जातिगत जनगणना का ऐलान हो गया।

ऐसे में संघ का हिंदुत्व भी समय के साथ बदला है। जैसे कहते हैं….. परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है… RSS ने भी स्थिति के अनुसार… समीकरणों को साधते हुए… अपने हिंदुत्व में बदलाव किए हैं… और यही उसकी असल ताकत भी है।