विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को यहां कहा कि 21वीं सदी की दुनिया बहुत तेजी से बहुध्रुवीय होता जा रही है और इसके फिर से द्विध्रुवीय होने की संभावना नहीं है। उन्होंने भविष्यवाणी की कि उभरते वैश्विक परिदृश्य में रणनीतिक भागीदारी भारत और अमेरिका को और करीब लाएगी। जयशंकर ने वाशिंगटन में ‘‘प्रिपेयरिंग फोर ए डिफरेन्ट एरा’’ विषय पर विदेश नीति संबंधी एक प्रमुख भाषण में कहा कि अधिक प्रतिस्पर्धी और जटिल युग के लिए तैयार होने की खातिर एक अलग मानसिकता की आवश्यकता होगी। मंत्री एक शीर्ष अमेरिकी थिंक-टैंक ‘सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज’ में सभा को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि एक व्यापक दृष्टिकोण के रूप में, यह अल्पकालिक गणनाओं की जगह दीर्घकालिक सोच की प्रधानता पर जोर देगा। उन्होंने कहा कि यह गहरे संरचनात्मक परिवर्तनों और ऐसी महत्वाकांक्षी सामाजिक-आर्थिक पहलों को बढ़ावा देगा जो आदतों और दृष्टिकोण दोनों को बदल सकती हैं।
जयशंकर ने इस दृष्टिकोण के उदाहरण के तौर पर जम्मू-कश्मीर में हालिया घटनाक्रम का हवाला देते हुए कहा, ‘‘मुश्किल समझी जाने वाली चुनौतियों को इस दुनिया में टालने के बजाए उनसे निपटना होगा।’’ एक बहुध्रुवीय वैश्विक परिदृश्य के उद्भव पर जोर देते हुए जयशंकर ने कहा कि चीन और पश्चिमी देशों के बीच टकराव बढ़ने के बावजूद भी ‘‘द्विध्रुवीय दुनिया में लौटने का अनुमान लगाना’’ मुश्किल है।

उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि परिदृश्य अब अपरिवर्तनीय रूप से बदल गया है। जयशंकर ने कहा कि भारत सहित अन्य राष्ट्र स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ रहे हैं। दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से आधी अब गैर-पश्चिमी हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि पश्चिम द्वारा खाली की गई जगह के कारण वैश्विक बहुध्रवीयता की उत्त्पति हुई है। जयशंकर ने कहा, ‘‘वास्तविकता यह है कि पश्चिम द्वारा खाली किये गये स्थान को चीन ने ही नहीं, बल्कि कई देशों ने भरा है। इसके अलावा, अमेरिका और चीन दोनों को किसी तीसरे पक्ष की जरुरत है और आगे की राजनीति अब बहुध्रुवीयता को और भी तेज करेगी।’’

भारत के अग्रणी रणनीतिक विचारक माने जाने वाले जयशंकर ने कहा कि इस घटना के लाभार्थी जी20 और उस स्तर के देश होंगे। उन्होंने कहा कि पहले से ही लाभ की स्थिति वाली रूस, फ्रांस और ब्रिटेन जैसी शक्तियों को फिर गति मिलेगी। जयशंकर ने कहा, ‘‘भारत जैसे कुछ देश बेहतर स्थिति की आकांक्षा कर सकते हैं। जर्मनी जैसे अन्य देश सामूहिक प्रयासों से अपनी ताकत और अधिक बढ़ा पाएंगे।’’ उन्होंने कहा कि उभरती वैश्विक बहुध्रुवीय व्यवस्था की एक जटिल संरचना होने के साथ साथ उसके अपने लाभ भी होंगे।