राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H1B वीजा आवेदन पर करीब 88 लाख रुपए की फीस लगाने का ऐलान किया है। शुक्रवार को इसे लेकर एक लेटर भी जारी किया गया। उसके बाद से ही इस मुद्दे पर बहस छिड़ चुकी है। कई देशों के लोग, जो अमेरिका में इस समय नौकरी कर रहे हैं और H1B वीजा के धारक हैं, उनमें कन्फ्यूजन की स्थिति देखने को मिल रही है। हालांकि ट्रंप प्रशासन ने अपने इस फैसले को पूरी तरह सही बताया है। उनका तर्क है कि अभी तक H1B वीजा की वजह से अमेरिकी नौकरियों को नुकसान पहुंच रहा था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी चुनौती बढ़ रही थी।
क्यों बदले गए H1B वीजा के नियम?
ट्रंप प्रशासन के मुताबिक, अमेरिका में मौजूद कई कंपनियां इस समय H1B वीजा का गलत इस्तेमाल कर रही हैं। उनकी तरफ से एक तय रणनीति के तहत अमेरिकी कर्मचारियों को मौका नहीं दिया जा रहा। कम सैलरी पर विदेशी लोगों को तवज्जो दी जा रही है। इसी वजह से अमेरिका के बाहर से आने वाले सभी H1B आवेदनों के लिए फीस बढ़ा दी गई है।
एक आंकड़े में ट्रंप प्रशासन ने जानकारी दी है कि 2003 में H1B धारकों के पास 32% आईटी नौकरियां थीं। लेकिन 2025 तक यह आंकड़ा बढ़कर करीब 65% के आसपास हो चुका है। माना जा रहा है कि इस वजह से अमेरिका की सबसे अहम कंपनियों में विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
क्या खतरे में अमेरिकियों की नौकरी?
अपने फैसले को सही ठहराते हुए ट्रंप प्रशासन ने यहां तक कहा है कि वर्तमान में अमेरिका की कई कंपनियां छंटनी के नाम पर अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रही हैं। दावा किया गया है कि इस वजह से अब तक 16,000 प्रतिभाशाली अमेरिकियों की नौकरी जा चुकी है। यह भी कहा गया है कि इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में जब से विदेशी लोगों पर निर्भरता बढ़ी है, तब से अमेरिका की आत्मनिर्भरता वाली विचारधारा कमजोर पड़ चुकी है।
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