ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टॉर्मर ने अमेरिका और इजरायल के कड़े विरोध के बावजूद रविवार को ब्रिटेन की ओर से फिलिस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने की घोषणा की। उन्होंने इन संबंध में कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के बाद यह घोषणा की। इस कदम को राष्ट्रमंडल देशों की पहल के रूप में देखा जा रहा है। कीर स्टॉर्मर इजरायल के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने के लिए अपनी सत्तारूढ़ लेबर पार्टी में भारी दबाव का सामना कर रहे थे।
फिलिस्तीनियों और इजराइलियों के बीच शांति की उम्मीदों को जिंदा रखना है- ब्रिटिश प्रधानमंत्री
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टॉर्मर ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य फिलिस्तीनियों और इजराइलियों के बीच शांति की उम्मीदों को जिंदा रखना है। हालांकि उन्होंने कहा कि यह हमास के लिए कोई तोहफा नहीं है। कीर स्टॉर्मर ने कहा कि फिलीस्तीन में भविष्य के शासन में हमास की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें एकजुट होकर शांतिपूर्ण भविष्य के लिए प्रयास करने होंगे। बंधकों की रिहाई, हिंसा के अंत, पीड़ा के अंत और दो राष्ट्र समाधान की ओर लौटना होगा, जो सभी पक्षों के लिए सर्वोपरि है।”
हालांकि यह कदम मोटे तौर पर सांकेतिक है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व भी है, क्योंकि ब्रिटेन ने ही इजरायली राष्ट्र की स्थापना के लिए 1917 में जमीन तैयार की थी। उस समय के फिलीस्तीन पर ब्रिटेन का नियंत्रण था। जुलाई में स्टॉर्मर ने कहा था कि अगर इजरायल गाजा पट्टी में संघर्ष-विराम के लिए सहमत नहीं होता है, तो ब्रिटेन फलस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देगा।
इजरायल ने गाजा शहर से लोगों के निकलने के लिए एक और रास्ता खोला, युद्ध में अब तक 65 हजार मारे गए
140 से अधिक देश दे चुके हैं मान्यता
अकेले ब्रिटेन ने फिलीस्तीन राष्ट्र को मान्यता नहीं दी है। 140 से अधिक देश पहले ही इस दिशा में कदम उठा चुके हैं और इस सप्ताह के अंत में संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सत्र के दौरान फ्रांस समेत कई और देश ऐसा कर सकते हैं। ब्रिटेन ने अमेरिका के विरोध को दरकिनार करते हुए यह कदम उठाया है। कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटेन की यात्रा के दौरान इस योजना से असहमति जताई थी। ट्रंप ने कहा था, “इस मामले पर मैं प्रधानमंत्री (स्टॉर्मर) से असहमत हूं।” अमेरिका और इजराइल सरकार के साथ-साथ विभिन्न आलोचकों ने इस योजना की निंदा करते हुए कहा है कि यह हमास और आतंकवाद को बढ़ावा देगी।
स्टॉर्मर ने इस बात पर जोर दिया है कि फिलीस्तीन में भविष्य के शासन में हमास की कोई भूमिका नहीं होगी और उसे सात अक्टूबर 2023 के हमलों के दौरान अगवा किए गए इजराइली बंधकों को रिहा करना होगा। पिछले 100 वर्षों में पश्चिम एशिया की राजनीति में फ्रांस और ब्रिटेन की ऐतिहासिक भूमिका रही है। प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद दोनों देशों ने इस क्षेत्र का विभाजन किया था। इस विभाजन के कारण तत्कालीन फिलीस्तीन पर ब्रिटेन का शासन स्थापित हुआ।
क्या है बैल्फोर घोषणापत्र?
ब्रिटेन ने ही 1917 में बैल्फोर घोषणापत्र भी तैयार किया था, जिसमें ‘यहूदी लोगों के लिए एक राष्ट्र’ की स्थापना का समर्थन किया गया था। इससे पहले ब्रिटेन के उप-प्रधानमंत्री डेविड लैमी ने जुलाई में गाजा युद्ध के बारे में कहा था कि यह ऐतिहासिक अन्याय है, जो लगातार जारी है। लैमी इस महीने की शुरुआत तक विदेश मंत्री थे। वह इस सप्ताह के अंत में संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व करेंगे। उन्होंने स्काई न्यूज से कहा, “अगर आज फिलीस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने का कोई भी फैसला लिया जाए, तो इससे रातोंरात फिलीस्तीन राष्ट्र नहीं बन जाएगा। मान्यता से दो राष्ट्र समाधान की संभावना को जीवित रखने में मदद मिलेगी। फलस्तीनी लोगों को हमास के साथ जोड़ना गलत है।”
ब्रिटेन में फिलीस्तीन मिशन के प्रमुख हुसम जोमलोट ने बीबीसी से कहा कि मान्यता देने से औपनिवेशिक काल की एक गलती सुधर जाएगी। हुसम जोमलोट ने कहा, “मुझे लगता है कि आज ब्रिटेन के लोगों को इतिहास में की गई गलती को सुधारे जाने का जश्न मनाना चाहिए। गलतियां सुधारी जा रही हैं, अतीत की गलतियों को स्वीकार किया जा रहा है।”