रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले हफ्ते यूएई में मुलाकात कर सकते हैं। हालांकि अभी तक तारीख की पुष्टि नहीं हुई है। पुतिन ने गुरुवार को संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के साथ बैठक के बाद कहा कि ट्रंप के साथ उनकी बैठक के लिए UAE एक संभावित स्थल है। इस सबके बीच बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इस बार दोनों नेताओं की मीटिंग के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर कोई हल निकलेगा और क्या अमेरिका-रूस के बीच चल रहे तेल विवाद का भी कोई समाधान निकलेगा?

रूस-यूक्रेन युद्ध के वर्तमान हालात कि बात करें तो दोनों नेता इस बैठक में बिल्कुल अलग-अलग उम्मीदों के साथ उतरेंगे। ट्रंप पुतिन से किसी न किसी तरह का वादा ज़रूर करवाना चाहेंगे,कम से कम युद्धविराम का तो वादा जिससे लड़ाई रुक जाए। ट्रंप का मानना है कि उनके पास पुतिन से अपनी मनचाही बात मनवाने के लिए व्यक्तित्व और क्षमता है। वहीं, दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति के किसी भी समझौते पर सहमत होने की संभावना कम है जब तक कि उन्हें यह गारंटी न दी जाए कि यूक्रेन कभी नाटो का सदस्य नहीं बनेगा और उसे पश्चिम से कोई सुरक्षा गारंटी नहीं मिलेगी। इसके अलावा पुतिन इस बात पर ज़ोर देंगे कि क्रीमिया सहित उनकी सेना द्वारा कब्ज़ा किए गए क्षेत्रों को रूसी क्षेत्र माना जाए।

क्या पुतिन को कोई गारंटी मिलने की संभावना है?

अपने राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान और अपने कार्यकाल के शुरुआती महीनों में ट्रंप ने संकेत दिया था कि वह रूस की कई मांगों पर विचार करने को तैयार हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति रूस- यूक्रेन युद्ध को जारी रखना नहीं चाहते। चूंकि, यूक्रेन अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से उतना महत्वपूर्ण नहीं है इसलिए ट्रंप यूक्रेन को रूस की मांगों को मानने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहे थे, जैसा कि व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ उनके सार्वजनिक विवाद से स्पष्ट हो गया। लेकिन, तथाकथित शांति समझौते पर सहमति न बन पाने से खुद को एक महान शांतिदूत मानने वाले ट्रंप चिढ़ गए हैं।

वहीं, दूसरी ओर रूसी प्रशासन ने कहा है कि ट्रंप के दूत स्टीव विटकॉफ ने 6 अगस्त को पुतिन के साथ अपनी बातचीत के दौरान शांति के लिए एक स्वीकार्य प्रस्ताव पेश किया था। यह इस बात का संकेत है कि अमेरिका यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर रूस की चिंताओं पर गंभीरता से विचार कर रहा है।

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क्या ट्रंप के प्रतिबंध पुतिन को किसी समझौते के लिए मजबूर कर सकते हैं?

डोनाल्ड ट्रंप रूस पर सेकेंडरी बैन का इस्तेमाल रूस को बातचीत तक लाने के लिए एक ज़रिया के रूप में कर रहे हैं। रूस के लिए समस्या यह है कि ये प्रतिबंध चीन और भारत जैसे अन्य देशों को भी प्रभावित करते हैं। रूस कई प्रतिबंधों से बच निकला है और एक तरह से प्रतिबंधों से सुरक्षित अर्थव्यवस्था का निर्माण किया है लेकिन रूस को नुकसान होगा अगर वह अपने प्राकृतिक संसाधनों को बेचने या दुनिया के साथ व्यापार करने में असमर्थ है। उसके बजट का एक बड़ा हिस्सा तेल और गैस सहित निर्यात किए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों पर करों से बना है।

इस लक्ष्य को देखते हुए यह संभावना कम है कि रूस आर्थिक दबाव के कारण समझौता करेगा। पुतिन युद्धविराम के लिए सहमत हो सकते हैं लेकिन वह ऐसा तभी करेंगे जब यह रूस के हितों के अनुकूल हो।

भारत के लिए ट्रंप-पुतिन मुलाकात का क्या मतलब है?

भारत रूस पर दबाव बनाने की ट्रंप की कोशिशों में फंस गया है। उनके एक्स्ट्रा टैरिफ ने भारत को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। यह उन गिने-चुने देशों में से एक है जिनके साथ भारत का व्यापार है जो चीन और रूस के साथ भारत के घाटे की कम से कम आंशिक रूप से भरपाई करता है। ऐसे में भारत को यह तय करना होगा कि क्या रूस से सस्ता तेल खरीदना बंद करना अमेरिकी टैरिफ से होने वाले नुकसान के लायक है।

रूस और अमेरिकी राष्ट्रपति की मुलाकात का यूक्रेन पर क्या होगा असर?

यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को उम्मीद थी कि अमेरिका के साथ महत्वपूर्ण खनिज समझौते पर हस्ताक्षर करने से अमेरिकी इस समझौते के अंतर्गत आने वाले खनिजों में अपने हितों की रक्षा के लिए युद्ध में उतरने के लिए मजबूर हो जाएंगे लेकिन पुतिन के साथ ट्रंप की संभावित मुलाकात इस बात का संकेत है कि सिर्फ़ यह समझौता अमेरिका के युद्ध के लिए प्रतिबद्ध होने के लिए पर्याप्त नहीं है।

यूक्रेनी राष्ट्रपति विभिन्न यूरोपीय नेताओं को फ़ोन कर रहे हैं और ट्रंप-पुतिन बैठक में खुद को आमंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें चिंता है कि पुतिन ट्रंप को उन कुछ रुख़ों को स्वीकार करने के लिए राजी कर सकते हैं जो रूस युद्ध की शुरुआत से ही व्यक्त करता रहा है जिनके ख़िलाफ़ खुद अमेरिकी राष्ट्रपति भी नहीं दिखते।

यूरोप के लिए मीटिंग के क्या मायने हैं?

यूरोप मंदी का सामना कर रहा है। यूरोपीय संघ के देश खासकर चीन को बेचने के लिए उत्पाद बनाने हेतु रूस से सस्ती ऊर्जा खरीद रहे थे। अब उन्हें दोनों तरफ से दबाया जा रहा है। युद्ध ने यूरोप में रूसी गैस के प्रवाह को रोक दिया है और अमेरिकी यूरोपीय संघ पर चीन के साथ अपने संबंधों को सीमित करने का दबाव बना रहे हैं। जैसे-जैसे यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष कर रही हैं, यूरोप के अभिजात वर्ग वास्तव में फंस गए हैं। वे यूक्रेन को युद्ध जीतने में मदद नहीं कर सकते लेकिन रूसी मांगों को मानकर इसे समाप्त करना एक अस्वीकार्य हार होगी। पढ़ें- सटैरिफ पर डोनाल्ड ट्रंप के दबाव के सामने भारत अड़ा