Trump Tariffs News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा दुनिया के 60 देशों पर लगाए गए टैरिफ के चलते शेयर बाजारों में जबरदस्त उथल-पुथल का माहौल है। इस बीच, सोमवार को एशिया के शेयर बाजारों में तो जबरदस्त गिरावट देखने को मिली ही भारत के शेयर मार्केट पर भी इसका असर हुआ। ट्रंप ने 2 अप्रैल को ये “Reciprocal Tariffs” टैरिफ लगाया और इसे अमेरिका का “Liberation Day” बताया था।
बताना होगा कि अमेरिका ने भारत पर 26% टैरिफ लगाने के अलावा, चीन पर 34%, यूरोपीय यूनियन पर 20%, साउथ कोरिया पर 25%, जापान पर 24%, वियतनाम पर 46% और ताइवान पर 32% टैरिफ लगाने का ऐलान किया था।
बाजारों में हो रहे इस जबरदस्त हाहाकार के बीच यह चिंता जताई जा रही है कि इसका भारत और दुनिया के बाकी देशों पर कितना असर होगा? सवाल यह भी है कि भारत को ट्रंप के टैरिफ के इस दबाव से कैसे निपटना चाहिए? अगर अमेरिका में महंगाई बढ़ी तो इसका भारत और दुनिया के बाकी देशों पर क्या असर होगा। दुनिया के बाकी देश ट्रंप के टैरिफ बम को लेकर किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे।
यह भी समझना होगा कि ट्रंप ने टैरिफ की दरों में बढ़ोतरी क्यों की है?
अमेरिका का व्यापार घाटा
अमेरिका का व्यापार घाटा लगभग 1.2 ट्रिलियन डॉलर है। व्यापार घाटा वह अंतर है जो अमेरिका द्वारा निर्यात किए गए सामानों की कीमत और आयात किए गए सामानों की कीमत के बीच होता है। एक ट्रिलियन डॉलर से अधिक के व्यापार घाटे का मतलब यह है कि अमेरिका अपने निर्यात की तुलना में एक ट्रिलियन डॉलर मूल्य का अधिक सामान आयात करता है। राष्ट्रपति ट्रंप इस स्थिति को ठीक करने के लिए बड़ा बदलाव करना चाहते हैं।
अब बात करते हैं भारत पर लगाए गए टैरिफ को लेकर। अमेरिका ने भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। ट्रंप ने हाल ही में अमेरिकी व्यापार विभाग की एक रिपोर्ट शेयर की थी जिसमें यह बताया गया था कि किसी देश पर टैरिफ क्यों लगाया गया है? इस रिपोर्ट में भारत सरकार की 2014 के बाद से संरक्षणवादी नीतियों (Protectionist Stance) की आलोचना की गई थी।
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क्या कहा गया था रिपोर्ट में?
इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के विश्व व्यापार संगठन का कृषि उत्पादों को लेकर टैरिफ दुनिया में सबसे ज्यादा है। यह औसतन 113.1% से अधिकतम 300% तक है। भारत कृषि और गैर कृषि उत्पादों पर कभी भी टैरिफ की दरें बदल सकता है और इस वजह से अमेरिकी मजदूरों, किसानों, जानवर पालने वालों और निर्यातकों के लिए अनिश्चितता की स्थिति बनती है।
रिपोर्ट में कहा गया था कि 2020-21 के बजट में भारत ने सोलर इनवर्टर और सोलर लालटेन सहित 31 उत्पादों की श्रेणियों पर अपना टैरिफ बढ़ा दिया था। 2021-22 के बजट में भारत ने हेडफोन, लाउडस्पीकर और स्मार्ट मीटर पर टैरिफ की दरें बढ़ाई थी। इसके अलावा 2014 से भारत ने कुछ दूरसंचार उपकरणों पर बार-बार टैरिफ लगाया है। इस तरह कई बातें इस रिपोर्ट में कही गई थी।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अमेरिका ने भारत की घरेलू नीतियों के साथ ही नियामक वातावरण (Regulatory Environment) पर भी सवाल खड़े किए थे। इसका सीधा मतलब क्या है?
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इसका मतलब यह है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संरक्षणवाद (Protectionism) की एक ऐसी लहर खड़ी कर दी है जो 1930 के दशक में अमेरिका में आई महामंदी की लहर से भी खराब है। उस समय Smoot-Hawley Act ने घरेलू उद्योगों और किसानों को बचाने के लिए आयात टैरिफ बढ़ाया था लेकिन इससे आर्थिक मंदी के हालात और खराब हो गए थे।
ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट का बयान
यहां पर अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट के मीडिया को दिए गए एक बयान का जिक्र करना जरूरी होगा। स्कॉट बेसेंट ने कहा था कि जिन देशों पर टैरिफ लगाया गया है, अगर वे “घबराए नहीं” तो ये टैरिफ की अधिकतम सीमा होगी। इसका मतलब है कि अगर ऐसे देश प्रतिक्रिया देते हैं और जवाबी टैरिफ लगाते हैं, तो अमेरिका अपने टैरिफ और बढ़ा सकता है, क्योंकि यह reciprocal logic पर चल रहा है।
अब बात करते हैं कि ट्रंप के टैरिफ के भारत और दुनिया की इकनॉमी पर कैसे असर हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत के मामले में, टैरिफ से राहत पाने के लिए भारत को अपनी संरक्षणवादी नीतियों में सुधार करना पड़ सकता है।
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आर्थिक वृद्धि पर पड़ेगा असर
अगर कोई भी देश जवाबी कार्रवाई नहीं करता है तो इन टैरिफ की वजह से वैश्विक व्यापार में मुश्किलें आएंगी और सीधे तौर पर इससे आर्थिक वृद्धि धीमी हो जाएगी। अगर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती तो शेयर बाजारों में गिरावट आएगी और इससे कंपनियों के मुनाफे और इकनॉमी पर असर पड़ेगा। लेकिन अगर जवाबी कार्रवाई होती है तो स्थिति और खराब होगी और रेटिंग एजेंसियां अमेरिका में मंदी आने की संभावना बढ़ा सकती हैं।
ऐसे में अमेरिकी लोग मुद्रास्फीति से तभी बच सकते हैं जब डॉलर का मूल्य अन्य मुद्राओं की तुलना में टैरिफ की दर जितना बढ़ जाए। उदाहरण के लिए, भारत के मामले में अगर डॉलर 26% मजबूत होता है यानी रुपया 85 से 108 प्रति डॉलर हो जाता है तो अमेरिकी कंज्यूमर को भारतीय सामानों के लिए अधिक कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी। लेकिन इसका असर भारत पर होगा, जहां रुपया कमजोर हो जाएगा और लोगों की सामान खरीदने की ताकत घटेगी।
रुपये के कमजोर होने से कच्चे तेल की कीमत बढ़ेगी और भारत में घरेलू मुद्रास्फीति यानी महंगाई भी बढ़ेगी। लेकिन अगर रुपया 85 पर बना रहता है तो अमेरिकी नागरिकों को भारत से आयात पर 26% अधिक कीमत चुकानी होगी। इसी तरह, आयात होने वाले सामान की कीमतें टैरिफ के स्तर तक बढ़ेंगी, जिससे अमेरिका में मुद्रास्फीति के हालात बनेंगे और महंगाई बढ़ जाएगी।
Stagflation वाले हालात बनेंगे?
अगर अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ती है तो वहां स्टैगफ्लेशन (Stagflation) हो सकता है। यह ऐसी स्थिति होती है जहां पर ग्रोथ रुक जाती है और महंगाई ऊंचाई पर बनी रहती है। निश्चित तौर पर इसका असर दुनिया के बाकी देशों पर भी होगा और वहां पर कीमतें बढ़ेंगी लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे देश अमेरिका की इकनॉमी पर कितने निर्भर हैं और वे अपने नए व्यापारिक साझेदार और सप्लाई चैन वाले पार्टनर तलाश पाते हैं या नहीं।
इसके साथ ही बाकी दुनिया का भविष्य इस बात पर भी निर्भर करता है कि यूरोप इस मामले में कैसे प्रतिक्रिया देता है। वैश्विक व्यापार में अमेरिका की हिस्सेदारी सिर्फ़ 13% है, जबकि यूरोप की हिस्सेदारी लगभग 38% है। अगर यूरोप एशिया (जो वैश्विक व्यापार का 35% हिस्सा है) के साथ अपने संबंध मजबूत करता है तो अमेरिका पर निर्भरता कम हो सकती है। यहां बताना होगा कि अमेरिका वैश्विक बाज़ार में सबसे बड़ा ग्राहक है।
इस ट्रेड वॉर से दुनिया भर में काफी आर्थिक नुकसान हो सकता है।
कुछ सवाल भारत को लेकर मुंह सामने खड़े हैं। जैसे- भारत को ट्रंप के टैरिफ के इस दबाव से कैसे निपटना चाहिए? क्या भारत को अपनी घरेलू नीतियों की रक्षा करनी चाहिए या फिर बाहरी दबाव का इस्तेमाल कर अपनी नीतियों को अमेरिका की इच्छा के हिसाब से बनाना चाहिए?