बीजिंग। दुनिया के शीर्ष कार्बन उत्सर्जक देशों अमेरिका और चीन ने आज जलवायु परिवर्तन पर एक अप्रत्याशित समझौते पर पहुंचते हुए ग्रीनहाउस गैसों को सीमित करने की महत्वाकांक्षी कार्रवाई का आह्वान किया। यह कदम भारत को भविष्य में वैश्विक जलवायु वार्ताओं में चीन से खुद को अलग करने की दिशा में बढ़ा सकता है। बड़ी सफलता अर्जित करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और उनके अमेरिकी समकक्ष बराक ओबामा ने यहां व्यापक बातचीत के दौरों के बाद जलवायु परिवर्तन के संबंध में 2020 के बाद के लक्ष्यों की घोषणा की।
यहां बातचीत के बाद जारी साझा बयान के अनुसार इस समझौते के तहत अमेरिका 2025 में उत्सर्जन का स्तर 2005 के स्तर से 26 से 28 फीसदी तक कम करने के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है और अपना उत्सर्जन 28 प्रतिशत तक कम करने के हरसंभव प्रयास करेगा।
बयान के अनुसार वहीं चीन ने लक्ष्य तय किया है कि उसका कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओ2) का उत्सर्जन 2030 के आसपास शीर्ष पर हो और वह इसे यथासंभव जल्दी शीर्ष स्तर पर पहुंचाने के लिए प्रयासरत रहेगा। वह 2030 तक वह अपनी प्रारंभिक ऊर्जा खपत में गैर-जीवाश्म ईंधन की साझेदारी करीब 20 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहता है।
अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि पहली बार चीन ने अपने सीओ2 उत्सर्जन के अधिकतम स्तर पर पहुंचने की सहमति जताई है।
दुनिया के दो सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक देशों के बीच यह अप्रत्याशित समझौता ऐसे समय में हुआ है जब भारतीय अधिकारियों में जलवायु के मुद्दों पर चीन के साथ पुरानी साझेदारी से खुद को अलग करने की भारत की जरूरत को लेकर बहस चल रही है।
2012 के एक सर्वेक्षण के अनुसार सर्वाधिक जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन करने वाले देशों में चीन (27 प्रतिशत), अमेरिका (14 प्रतिशत), यूरोपीय संघ (10 प्रतिशत) और भारत (6 प्रतिशत) हैं।
नये रेल मंत्री और जी-20 देशों की शिखरवार्ता में भारत के ‘शेरपा’ सुरेश प्रभु ने भारत और चीन से मांग की है कि वे जलवायु के मुद्दों पर अपने रास्तों पर चलें।
प्रभु ने पिछले दिनों मीडिया से बातचीत में दलील दी थी कि सामाजिक संकेतकों के संदर्भ में भारत और चीन में कुछ समानताएं हो सकती हैं लेकिन चीन इस मामले में भारत से आगे है। उन्होंने कहा था कि भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन चीन से काफी कम है।
भारत फिलहाल जलवायु परिवर्तन वार्ताओं में बेसिक समूह का हिस्सा है। इसके अन्य सदस्यों में चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील हैं।
प्रभु की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि उनका मंत्रालय इस संबंध में रुख तय करेगा और दिसंबर में लीमा में जलवायु वार्ता से पहले अगले दो हफ्ते तक इस विषय पर चर्चा की जाएगी।
ओबामा ने शी के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘विश्व की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, ऊर्जा उपभोक्ताओं और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जकों के नाते, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों की अगुवाई करने की हमारी विशेष जिम्मेदारी है।’’
ओबामा ने उम्मीद जतायी कि इस घोषणा से जलवायु परिवर्तन से निपटने में अन्य देश प्रेरित होंगे। उन्होंने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि इससे सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं भी महत्वाकांक्षी बनेंगी, सभी देश, विकसित और विकासशील, ताकि हम अगले साल एक मजबूत वैश्विक जलवायु समझौता संपन्न कर सकें।’’
इस मौके पर चीनी राष्ट्रपति शी ने कहा, ‘‘हम यह सुनिश्चित करने पर सहमत हुए कि पेरिस में अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता किसी समझौते पर पहुंचेगी।’’
ग्रेट हॉल ऑफ दी पीपुल में औपचारिक वार्ता से पूर्व शी ने ओबामा का शानदार स्वागत किया जो 22वीं एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपेक) आर्थिक नेताओं की बैठक में भाग लेने के लिए सोमवार को बीजिंग पहुंचे थे। कल दोनों नेताओं ने अपनी बैठक में दोनों देशों के संबंधों को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जतायी थी।