अफगानिस्तान और ईरान के बीच सबकुछ ठीक नहीं दिखाई दे रहा है। पिछले हफ्ते दोनों मुल्कों की सीमा पर सुरक्षा में तैनात गार्ड्स के बीच हिंसक झड़पें हुई थीं। इसके बाद दोनों ओर से गोलीबारी के आरोप लगाए गए। इन झड़पों के दौरान दो ईरानी और एक अफगानी गार्ड मारे गए हैं। सोशल मीडिया पर कुछ वीडियोज़ साझा कर यह  दावा किया जा रहा है कि अफगानी सेना अमेरिकी हथियारों के साथ ईरानी बॉर्डर की ओर बढ़ रही है। यह वही हथियार हैं जिन्हें अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से जाते वक़्त छोड़ गयी थी। 

ईरान की मीडिया एजेंसी Islamic Republic News Agency (IRNA) ने बताया कि सीमा पर हिंसा के बाद ईरानी अधिकारियों ने Milak-Zaranj border post  को बंद कर दिया है जो कि एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक क्रॉसिंग है। 

हेलमंद नदी के पानी के बंटवारे पर 1973 से एक संधि होने के बावजूद दोनों मुल्क दशकों से उलझे हुए हैं। नदी अफगानिस्तान से पूर्वी ईरान की ओर बहती है।

क्या है इस विवाद की असल वजह? 

दोनों मुल्कों के बीच जारी इस संघर्ष वजह अभी भी नामालूम ही है लेकिन अफगानिस्तान के निमरोज प्रांत और ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत के बीच सीमा चौकी पर गोलीबारी के बीच ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने इस महीने की शुरुआत में अफगानिस्तान के तालिबान शासकों पर ईरान के पूर्वी क्षेत्रों में पानी के प्रवाह को बंद करने का आरोप लगाया था। उन्होने कहा था कि यह 1973 की संधि का उल्लंघन है। 

ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने 18 मई को एक बयान जारी करते हुए कहा था, ‘हम अपने लोगों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होने देंगे’

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने इन आरोपों से इनकार किया है और 1973 की संधि के मुताबिक समस्या को हल करने का गुजारिश की है। तालिबान ने कहा है कि वह तेहरान के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं। ईरानी अधिकारियों ने दो साल पहले अफगानिस्तान के अधिग्रहण के बाद से अंतरराष्ट्रीय कानूनों और सीमा प्रोटोकॉल की अवहेलना के लिए बार-बार तालिबान को दोषी ठहराया है। कई मौकों पर झड़पें हुईं हैं। 

ताज़ा बॉर्डर विवाद से एक दिन पहले  ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीरबदोलहियान ने तालिबान से जल विवाद को हल करने के लिए कानूनी नियमों के पालन का अनुरोध किया था। Al Jazeera के साथ बातचीत में अमेरिका स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिसी (CIP) एक रिसर्च फ़ेलो Sina Toossi का कहना है कि हाल के वर्षों में तालिबान सहित अफगानिस्तान के शासकों द्वारा इस संधि का पालन नहीं किया गया है।  उन्होंने कहा, “ईरान की बिगड़ती सूखे की स्थिति ने इसे और बढ़ा दिया है, जिससे पानी का मुद्दा तेजी से गंभीर हो गया है।  तालिबान ने एक बयान जारी कर कहा कि वह अपने पड़ोसियों के साथ लड़ाई नहीं करना चाहता।

क्या है 1973 की जल संधि

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक  पिछले 30 वर्षों से ईरान में सूखा एक बड़ी समस्या रही है, जो पिछले एक दशक में और भी बदतर हो गई है। ईरान मौसम विज्ञान संगठन का कहना है कि अनुमानित 97 प्रतिशत देश अब किसी न किसी स्तर के सूखे का सामना कर रहा है।

ईरान को इस समस्या से निकाले जाने के लिए आधी सदी पहले अफगानिस्तान और ईरान द्वारा हस्ताक्षरित हेलमंद  जल संधि के मुताबिक  अफगानिस्तान को  हेलमंद नदी (Helmand River)  से सालाना 850 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ईरान के साथ साझा करना है। इस दौरान हेलमंद नदी (Helmand River)  जो 1,000 किमी (621-मील) से अधिक लंबी है और सीमा के पार बहती है, बिजली पैदा करने और कृषि भूमि की सिंचाई के लिए अफगान की ओर से क्षतिग्रस्त की जा रही है। ईरान ने अफगानिस्तान पर कई मौकों पर संधि का पालन करने में विफल रहने का आरोप लगाया है और नदी पर बांध बनाने के फैसले का विरोध किया है।