Rebel Leader Abu Mohammad Al-Jolani: दुनिया भर के मीडिया चैनलों और अखबारों में सीरिया के राष्ट्रपति बसर अल-असद की हार की खबर छाई हुई है। सीरिया में 2011 में शुरू हुआ गृह युद्ध 13 साल बाद अब थम सकता है। विद्रोहियों और सरकार के बीच चली इस लड़ाई के चलते सीरिया में बड़े पैमाने पर तबाही हो चुकी है। लाखों लोग इस लड़ाई में मारे गए और एक करोड़ से ज्यादा लोगों को घरों से बेदखल होना पड़ा।

इस मामले में विदेश मंत्रालय ने भी सोमवार को बयान जारी किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा, “हम तमाम घटनाक्रमों के बीच सीरिया में स्थिति पर नज़र रख रहे हैं। हम सभी पक्षों द्वारा सीरिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने की दिशा में काम करने की जरूरत पर बल देते हैं। हम सीरिया के समाज के सभी वर्गों के हितों का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण और समावेशी नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया का समर्थन करते हैं।”

सीरिया की सत्ता में हुए इस बड़े बदलाव का क्या कोई असर भारत पर भी हो सकता है। भारत में विदेश मामलों के जानकार इसे लेकर क्या कहते हैं, इस बारे में जानना जरूरी होगा। सीरिया के गृह युद्ध को लेकर कई और अहम बातों को भी जानना जरूरी है।

सीरिया में 2011 में शुरू हुई लड़ाई वास्तव में बसर अल-असद की सरकार के खिलाफ भड़के गुस्से का नतीजा थी। असद ने सिर्फ 35 साल की उम्र में ही सत्ता संभाल ली थी। दिसंबर, 2009 में उन्हें CNN ने सबसे लोकप्रिय नेता का खिताब दिया था। असद आंखों के डॉक्टर थे और वह किसी भी रेस्तरां या पब्लिक प्लेस में आम लोगों से बातचीत कर लेते थे।

Abu Mohammad al-Jolani: कौन है अबू मोहम्मद अल-जोलानी जिसने सीरिया में बशर अल-असद की सरकार को उखाड़ फेंका?

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हयात तहरीर अल-शाम का प्रमुख है जोलानी। (Source-)

आवाज दबाने का फैसला पड़ा भारी

असद ने जब सरकार संभाली तो उन्होंने अपने मुल्क में उदारीकरण यानी लिबरलाइजेशन को बढ़ावा दिया लेकिन उन्होंने इसमें सामाजिक न्याय का ध्यान नहीं रखा। उदारीकरण से सीरिया तो आधुनिक बन गया लेकिन वहां के निचले तबके आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं हो सके। असद सरकार के खिलाफ नाराजगी आर्थिक मामलों को लेकर भी थी। अरब स्प्रिंग की आवाज सीरिया में भी सुनाई दी थी और 2011 में असद सरकार के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए थे लेकिन असद की सरकार को लोगों की आवाज को दबाने का फैसला भारी पड़ा।

सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर ताकत का इस्तेमाल किया तो देश में गृह युद्ध शुरू हो गया। इस गृह युद्ध को लेकर हालत तब बिगड़े जब विदेशी ताकतें भी इस युद्ध में कूद पड़ीं। रूस, ईरान और हिजबुल्लाह असद के साथ मजबूती से खड़े रहे। उस दौरान हालत तब भी बिगड़े थे जब ISIS ने सीरिया के कुछ हिस्सों पर कब्जा जमा लिया था।

कैसे शुरू हुआ गृह युद्ध, क्या है सीरिया में चल रहा पूरा झगड़ा, क्यों हार गए बशर अल-असद?

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2011 से सीरिया में चल रही है लड़ाई। (Source-AP)

कमजोर पड़ गए सीरिया के सहयोगी

सीरिया में हुए इस गृह युद्ध के सबसे बड़े चेहरे हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के प्रमुख अबू मोहम्मद अल-जोलानी के लड़ाकों ने पिछले दो सप्ताह से भी कम समय में राजधानी दमिश्क सहित कई शहरों पर कब्जा कर लिया। असद की सरकार के गिरने के बीच इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि पिछले छह महीनों में असद के तीन मुख्य सहयोगी – रूस, ईरान और हिजबुल्लाह कमजोर पड़ गए हैं और इस वजह से विद्रोही गुटों को यह कामयाबी मिली है। रूस यूक्रेन के साथ और ईरान इजरायल के साथ युद्ध लड़ रहा है। हिजबुल्लाह को भी इजरायल के साथ लड़ाई में नुकसान हुआ है। इस तरह असद की सेना अकेले ही विद्रोहियों के खिलाफ नहीं लड़ सकती थी। तुर्की ने भी HTS और विद्रोही गुटों का समर्थन किया था।

कई विश्लेषक इस बात को मानते हैं कि HTS अब जिहाद के रास्ते पर आगे बढ़ने के बजाय सीरियाई राष्ट्रवाद के रास्ते पर चल रहा है लेकिन आने वाले दिनों में HTS का क्या रुख रहेगा, इसे लेकर भारत सरकार काफी सतर्क है। नई दिल्ली में विदेश मामलों के एक्सपर्ट याद करते हैं कि गद्दाफी की सरकार के गिरने के बाद लीबिया में किस तरह अराजकता वाले हालात बन गए थे। मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था।

इसलिए भारत सरकार इस बात को लेकर अलर्ट है कि असद की सरकार के गिरने के बाद सीरिया में हालात कैसे होंगे।

HTS के लड़ाके बोले- दमिश्क अब “आजाद” है

HTS ने सीरिया के सरकारी टेलीविजन पर जारी किए गए एक बयान में कहा है कि दमिश्क अब “आजाद” है और उन्होंने “अत्याचारी अल-असद” को उखाड़ फेंका है। इसके साथ ही जेलों में बंद सभी बंदियों को रिहा कर दिया गया है। HTS के प्रमुख अबू मुहम्मद अल-जोलानी ने सीरिया के अल्पसंख्यकों और बाकी समुदायों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि उनकी सरकार में किसी का कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन भारत और दुनिया भर के कई और देश अल-जोलानी और उनके संगठन पर उसी तरह नजर रखेंगे, जैसे वे अफगानिस्तान में तालिबान की कार्रवाइयों पर नजर रख रहे हैं।

अबू मोहम्मद अल-जोलानी ने बशर अल-असद के देश छोड़कर जाने के बाद दमिश्क की एक ऐतिहासिक मस्जिद से जीत का ऐलान किया और इसे “ऐतिहासिक” बताया। उन्होंने कहा कि “सीरिया का शुद्धिकरण किया जा रहा है। यह जीत मेरे भाइयों और पूरे इस्लामी राष्ट्र की जीत है।”

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