स्विट्जरलैंड की जनता ने सभी को प्रति महीने 2500 स्विस फ्रेंक‍ यानि 1.7 लाख रुपये देने के प्रस्‍ताव को खारिज कर दिया है। प्रस्‍ताव यह था कि देश के प्रत्‍येक वयस्‍क को हर महीने 2500 स्विस फ्रेंक और बच्‍चे को 625 फ्रेंक दिए जाए। इसके समर्थकों का कहना था कि यह रकम इसलिए दी जाए क्‍योंकि कामकाज में रोबोट के उपयोग और ग्‍लोबलाइजेशन के चलते लोगों की नौकरियां छिन रही हैं। इसके चलते लोगों को जिंदगी जीने में तकलीफ ना हो। सरकार इस प्रस्‍ताव के खिलाफ थी और उसका कहना था कि इससे बहुत खर्चा आएगा और अर्थव्‍यवस्‍था कमजोर हो जाएगी।

प्रस्‍ताव पर हुए जनमत संग्रह में सामने आया कि 76.9 प्रतिशत लोगों ने इसे नकार दिया। प्रस्‍ताव के पीछे बासेल के रहने वाले एक कैफे मालिक डेनियल हायनी का दिमाग था। हायनी ने हार मान ली है। उन्‍होंने बताया, ”एक कारोबारी के रूप में मैं यथार्थवादी हूं और मुझे 15 फीसदी समर्थन मिला।” इस प्रस्ताव के समर्थन में कहा गया था कि सरकार की ओर से हर महीने तय रकम मिलने के बाद लोग अपने रूचि का काम कर सकेंगे और उन्‍हें जीवनयापन के लिए काम नहीं करना पड़ेगा। विरोधियों का कहना था कि रोबोट और मशीनों द्वारा इंसानों की नौकरियां खा जाने की बात अभी भी साबित नहीं हुई है। ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी।

स्विट्जरलैंड के अलावा फिनलैंड में भी इस तरह के प्रस्‍ताव पर विचार किया जा रहा है। भारत के संदर्भ में देखें तो इस तरह का फैसला चौंकाने और आंखें खोल देने वाला है। भारत में जीडीपी का 26 प्रतिशत सरकारें खर्च करती हैं। चुनावों के दौरान लगभग सभी दल कुछ न कुछ फ्री देने का वादा करते हैं। इसमें बिजली-पानी से लेकर कपड़े, सिलाई मशीन, लैपटॉप तक शामिल है।