विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने धर्म को आतंकवाद से अलग करने की मांग करते हुए रविवार को कहा कि भारत और अरब जगत को समस्या के खात्मे के लिए हाथ मिलाना चाहिए। उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि जो चुपचाप आतंकी समूहों को बढ़ावा देते हैं वे अंत में उनके लिए इस्तेमाल हो सकते हैं। सुषमा ने अरब लीग देशों के विदेश मंत्रियों से कहा, ‘जिनका मानना है कि इस तरह के आतंकी समूहों के मूक प्रायोजन से उन्हें फायदा पहुंचेगा, उन्हें महसूस करना चाहिए कि उनका अपना खुद का एजेंडा है और प्रायोजक ने उनका जिस तरह इस्तेमाल किया है, वे उससे कहीं ज्यादा प्रभावशाली तरीके से संरक्षकों का इस्तेमाल करने में माहिर हैं।’ अरब-भारत सहयोग मंच की पहली मंत्रिस्तरीय बैठक में धर्म को आतंकवाद से अलग करने की कड़ी वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों में अंतर केवल मानवता में विश्वास रखने वालों और विश्वास ना रखने वालों का है। उन्होंने मंच को अरब जगत के साथ भारत के संबंधों में एक नया मोड़ बताया। शनिवार को दो दिनों के दौरे पर यहां पहुंचीं सुषमा ने कहा, ‘आतंकी धर्म का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन सभी धर्म के लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं।’
उन्होंने ‘विविधता में एकता के भारत के मॉडल’ को धर्मांधता और कट्टरपंथ से निपटने के लिए दुनिया के लिए उदाहरण बताया। विदेश मंत्री का किसी विश्व मंच पर भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का हवाला देना महत्व रखता है क्योंकि भारत में कथित रूप से बढ़ती असहिष्णुता के विषय पर यह हाल में शुरू हुई बहस की पृष्ठभूमि में आया। सुषमा ने कहा,‘भारत में हर धर्म के लोग रहते हैं। हमारा संविधान धार्मिक समानता के मौलिक सिद्धांतों और ना केवल कानून के समक्ष बल्कि रोजाना व्यवहार में भी सभी धर्मों की समानता के लिए प्रतिबद्ध है। सुषमा ने कहा, ‘हमारे देश के हर कोने में अजान की आवाज से सुबह होती है जिसके बाद हुनमान मंदिर की घंटियों की आवाज गूंजती है, फिर गुरुद्वारे से गं्रथियों के गुरू ग्र्रंथ साहिब के पाठ की आवाज आती है और फिर हर रविवार को चर्च की घंटी के गूंजने की आवाज आती है।’ उन्होंने कहा, ‘यह दर्शन 1950 में स्वीकार किए गए हमारे संविधान का हिस्सा भर नहीं है, बल्कि यह वसुधैव कुटुम्बकम के हमारे प्राचीन विश्वास का सार है।’ विदेश मंत्री ने कुरान का हवाला देते हुए कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव पवित्र कुरान का भी संदेश है। सुषमा ने जोर दिया कि धर्मांधता और कट्टरपंथ के खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होेंने कहा, ‘हमने बार बार देखा है कि आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं है। यह सभ्यताओं में टकराव के अपने हानिकारक सिद्धांत के जरिए समाजों को तबाह करना चाहता है।’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘इस हिंसक दर्शन का एकमात्र प्रतिकार शांति, सहिष्णुता और सौहार्द का रास्ता है, वह रास्ता जिसकी सदियों पहले बुद्ध और महावीर ने व्याख्या की थी और आधुनिक समय में जिसे हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी लेकर आए जब उन्होंने कहा था ‘एक आंख के बदले दूसरी आंख आखिर में पूरी दुनिया को अंधा बना देगी’ विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर समग्र प्रस्ताव के पारित किए जाने के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इससे इस समस्या के खिलाफ वैश्विक समुदाय की लड़ाई में ‘उल्लेखनीय कमी’ दूर हो जाएगी। सुषमा ने कहा, ‘हम स्थिर और सभ्य दुनिया का प्रतिनिधित्व करते हैं, हमें चुनौती से निपटना चाहिए नहीं तो हमारे अपने पूर्वजों की सबसे अनमोल विरासत खोने का खतरा है।’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन हमें न केवल आतंकवाद के सभी कृत्यों की निंदा करने की जरूरत है बल्कि हमें आतंकवाद की समस्या के पूरी तरह खात्मे के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक रूप से हाथ मिलाने की भी जरूरत है।’ विदेश मंत्री ने आज की बैठक को भारत-अरब संबंधों में एक ‘नया मोड़’ बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संयुक्त अरब अमीरात के दौरे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘राजग सरकार के साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से हमने अरब जगत के साथ अपने संबंधों को खास महत्व दिया है और हमारे बीच कई उच्च स्तरीय यात्राओं के साथ विस्तृत संपर्क भी हुआ है।’ मोदी की यह यात्रा पिछले 34 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा था।
सुषमा ने कहा कि मंत्रिस्तरीय बैठक का मकसद भारत और अरब जगत के बीच सदियों पुराने संबंधों को नया आकार, दिशा और ऊर्जा देना है। उन्होंने कहा, ‘आज हमारे पास भारत-अरब एकजुटता की दृष्टि को सहयोग के ठोस रास्ते में बदलने का मौका है।’
सुषमा ने कहा कि आतंकवाद की साझा चुनौती का सामना करने के अलावा भारत-अरब संबंधों के दायरे में अब कई क्षेत्र आ गए हैं। उन्होंने कहा कि व्यापार, निवेश, ऊर्जा और सुरक्षा के क्षेत्रों में हमारे महत्वपूर्ण हित हैं। द्विपक्षीय व्यापार 180 अरब डालर पार करने के साथ आज अरब जगत सामूहिक रूप से भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। अपने तेल और गैस की जरूरत का करीब 60 फीसद हिस्सा पश्चिम एशिया से पूरा करते हैं जिससे यह क्षेत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा का एक आधार है।
