हारमूज जलडमरूमध्य क्षेत्र या हारमूज की खाड़ी दुनिया का सबसे महत्त्वपूर्ण और सामरिक महत्त्व का समुद्री रास्ता है। ईरान और अमेरिका के बीच इन दिनों बढ़ रहे तनाव के कारण यह समुद्री नौवहन क्षेत्र चर्चा में है और दुनिया भर के देशों की निगाहें इस इलाके के घटनाक्रमों पर हैं। दरअसल, हारमूज जलडमरूमध्य क्षेत्र में हालात ज्यादा बिगड़े तो दुनिया भर में तेल की कीमतों पर असर पड़ेगा और अर्थव्यवस्था में भूचाल आ जाएगा।
इसका संकेत पिछले महीने मिला, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर हमले का आदेश दिया। वे हमले से पीछे हट गए, लेकिन दुनिया भर में कच्चे तेल के बाजार में जबरदस्त उछाल आ गया था। अब शुक्रवार को अमेरिका ने दावा किया कि उसके युद्धपोत ने खाड़ी क्षेत्र में एक ईरानी ड्रोन को मार गिराया है। हालांकि ईरान ने इसका खंडन किया। दूसरी तरफ, उसी दिन ईरान ने हारमूज क्षेत्र में एक ब्रितानी तेल टेंकर ‘स्टेना इंपरो’ को जब्त कर लिया। इस जहाज के चालक दल के सदस्यों में 18 भारतीय हैं। उन्हें छुड़ाने के मिशन में भारत सरकार जुटी है। दरअसल, इसी महीने जिब्राल्टर में ब्रितानी सैन्य बलों ने एक ईरानी तेल टैंकर को कब्जे में ले लिया था। माना जा रहा है कि इसी के बदले की कार्रवाई में ईरान ने ब्रितानी तेल टैंकर को पकड़ा।
इस तनाव की शुरुआत बीते साल हुई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से बाहर करने का ऐलान किया। समझौता तोड़ने के बाद ट्रंप ने बीते साल नवंबर में ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इसके बाद से लगातार दोनों देशों के रिश्तों में तनाव लगातार बढ़ा। ट्रंप ने ईरान को आतंकी राष्ट्र बताया। दूसरी ओर, ईरानी धर्म गुरु अयातोल्लाह खमेनई ने कहा कि हम अमेरिका पर न भरोसा करते हैं न करेंगे।
अमेरिका ने अपना युद्धपोत ‘अब्राहम लिंकन’ हारमूज की खाड़ी के पास भेज दिया, जिससे सैन्य गतिविधियां बढ़ीं। ईरान के द्वारा ब्रितानी तेल टैंकर को जब्त किए जाने के बाद ब्रिटेन और ईरान भी आमने-सामने आ गए हैं। इन हालात में भारत एक तो ‘स्टेना इंपरो’ के चालक दल के 18 सदस्यों को लेकर ईरान के संपर्क में है। दूसरा मोर्चा अर्थव्यवस्था का है। तेल की कीमतें स्थिर रहने से सरकार की सहूलियतें बनी रहेंगी। अगर जंग के हालात बनते हैं और कच्चे तेल के बाजार में खलबली देखी जाती है तो तेल के दाम बढ़ेंगे और ऐसे में सरकार के खजाने पर बोझ बढ़ेगा और इसका असर आम लोगों पर भी होगा। रेटिंग एजंसियों के मुताबिक, कच्चे तेल की कीमतें अगर 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ती हैं तो जीडीपी पर इसका 0.4 फीसद असर होता है और इससे चालू खाता घाटा 12 अरब डॉलर या इससे भी ज्यादा बढ़ सकता है।
इन हालात के मद्देनजर भारत ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से संपर्क किया है और तेल व एलपीजी की अबाध आपूर्ति का भरोसा मिला है। दरअसल, ईरान और यूएई के बीच संकरे समुद्री मार्ग (हारमूज जलडमरूमध्य) के रास्ते दुनिया के 20 फीसद कच्चे और परिशोधित तेल उत्पादों की आवाजाही होती है। इसी रास्ते से 25 फीसद एलएनजी की आपूर्ति भी होती है। भारत अपनी तेल जरूरतों का 83 फीसद आयात करता है और यह पूरी तरह से तेल और एलपीजी की ढुलाई के लिए इसी रास्ते पर निर्भर है।
हारमूज के एक ओर अमेरिकी समर्थक अरब देश हैं और दूसरी ओर ईरान। ओमान और ईरान के बीच के कुछ हिस्सों में तो यह खाड़ी सिर्फ .21 मील चौड़ी है। यहां दो समुद्री रास्ते हैं। एक जहाजों के जाने के लिए और एक आने के लिए। यह खाड़ी बेहद संकरी है, लेकिन इतनी गहरी है कि यहां से दुनिया के सबसे बड़े जहाज और तेल टैंकर आसानी से गुजर सकते हैं। मध्य-पूर्व से निकलने वाला तेल हारमूज के रास्ते ही एशिया, यूरोप, अमेरिका सहित अन्य बाजारों में पहुंचता है।