स्थाई मध्यस्थता न्यायालय (PCA) ने साउथ चाइना सी पर चीन के प्रभुत्व को नकार दिया है। इस फैसले से विशाल समुद्र में चीन का कथित एकाधिकार समाप्त हो जाएगा। भारत को इस फैसले से फायदा होता दिख रहा है। हालांकि इससे व्यापारिक रिश्तों या कारोबार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। आइए, जानते हैं इस फैसले का भारत पर क्या असर होगा।
स्थाई मध्यस्थता न्यायालय (PCA) द्वारा दक्षिणी चीनी समुद्र पर दिए गए फैसले में 2013 के किशनगंगा प्रोजेक्ट का भी जिक्र है। इस मामले में, PCA ने भारत को जम्मू और कश्मीर में किशनगंगा नदी पर एक हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बनाने को आंशिक रूप से हरी झंडी दे दी थी। प्रोजेक्ट से अपने क्षेत्र में पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर पाकिस्तान ने न्यायालय की शरण ली थी। फिलीपींस के तर्क कि ‘चीन ने एक कृत्रिम द्वीप का निर्माण कर कोरल रीफ पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है’, को PCA ने सही ठहराया है। PCA ने कहा कि United Nations Convention on the Law of the Sea (UNCLOS) के आटिकल 192 के तहत सामान्य दायित्व यह कहता है कि ”देशों के न्यायक्षेत्र में होने वाली गतिविधियां अन्य राज्यों व क्षेत्रों के पर्यावरण का सम्मान सुनिश्चित करें।’ ‘
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अब नहीं देनी होगी जंगी जहाजों की जानकारी :
हालांकि यह भारत के लिए इकलौता सीधा संदर्भ है, फिर भी यह हमारे देश के लिए महत्वपूर्ण है। दक्षिणी चीनी समुद्र पर चीन के दावे को PCA द्वारा खारिज किए जाने के बाद, भारतीय नौसेना जहाज UNCLOS के तहत बिना चीन को खबर किए इस रास्ते से आ-जा सकते हैं। समुद्र के 80 फीसदी हिस्से पर दावा करने वाला चीन इन शिपिंग लेन्स में भारत के जंगी जहाजों के मूवमेंट की जानकारी देने की बात भारत से कई बार कह चुका है। चीनी नौसेना ने भारतीय जंगी जहाजों का हल्का शोषण कर अपनी मंशा साफ करनी शुरू की थी। जुलाई 2011 में दक्षिणी चीनी समुद्र से गुजर रहे INS ऐरावत को चीनी नौसेना के जहाजों ने यह कहते हुए रोक लिया था कि भारतीय जहाज चीनी सीमा क्षेत्र में है। भारतीय नौसेना आधिकारिक रूप से चीन को अपने मूवमेंट की जानकारी नहीं देती। सूत्रों के अनुसार, किसी तरह की असहज स्थिति से बचने के लिए सेना अनौपचारिक तौर पर उन्हें खबर करती है। सूत्रों का यह भी कहना है कि PCA के फैसले के बाद चीन समुद्र में अपना हक और मजबूती से जताने की कोशिश करेगा। वह भारत पर जंगी जहाजों की जानकारी यथावत देते रहने का दबाव बनाएगा। हालांकि इससे व्यापारिक जहाजों के मूवमेंट पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि UNCLOS के नेविगेशन की स्वतंत्रता मिली हुई है।
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PCA का फैसला है भारत के लिए मौका:
भाजपा सरकार की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत, भारत ने दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी भूमिका बड़ी की है। PCA का फैसला नई दिल्ली के लिए एक मौका है अपने दोस्तों और सहयोगियों को यह बताने का कि वह अंतर्राष्ट्रीय जल पर नेविगेशन की स्वतंत्रता के सिद्धांत में यकीन रखता है। यह भारत सरकार द्वारा 2014 के बाद अमेरिका के साथ दिए गए फैसलों के साथ भी मेल खाता है। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान, भारत-अमेरिका के साझा बयान में ‘क्षेत्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता बनाए रखना, खासकर दक्षिणी चीनी समुद्र में’ पर जोर दिया गया था। PCA के फैसले पर चीन की नाखुशी, बांग्लोदश के साथ समुद्री सीमा के विवाद में PCA के फैसले पर भारत की सहमति के ठीक उलट है। जुलाई 2014 में PCA ने विवादित समुद्री क्षेत्र का 4/5 हिस्सा बांग्लादेश को दे दिया था। भारत ने वैश्विक नियमों के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए फैसले को मान लिया था।