भारत और जापान ने दक्षिणी चीन सागर (एससीएस) में सीमा संबंधी विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान करते हुए शुक्रवार (11 नवंबर) को कहा कि मामले से जुड़े पक्षों को ‘धमकी अथवा ताकत का इस्तेमाल’ नहीं करना चाहिए। दोनों देशों की इन टिप्पणियों से चीन नाराज हो सकता है। समग्र बातचीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके भारतीय समकक्ष शिंजो आबे ने समुद्र से जुड़े कानून (यूएनक्लोस) को लेकर संयुक्त राष्ट्र संधि पर आधारित नौवहन और उड़ान भरने तथा निर्बाध कानूनी वाणिज्य की स्वतंत्रता का सम्मान करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। दोनों नेताओं की बातचीत के बाद जारी बयान में कहा गया है, ‘इस संदर्भ (एससीएस) में उन्होंने सभी पक्षों से आग्रह किया कि वे धमकी या ताकत का इस्तेमाल किए बगैर, शांतिपूर्ण ढंग से विवादों का निपटारा करें तथा गतिविधियों को लेकर आत्म-संयम दिखाएं और तनाव बढ़ाने वाले कदमों से बचें।’ ये टिप्पणियां चीन को नागवार गुजर सकती हैं जो यह कहता रहा है कि दूसरे देश दक्षिण चीन सागर के विवाद में ‘दखल देने’ से बचें।

मोदी की जापान यात्रा से पहले चीन के आधिकारिक मीडिया ने बुधवार को चेतावनी दी थी कि भारत अगर एससीएस के मामले में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले का पालन करने के लिए चीन का आह्वान करने में जापान का साथ देता है उसे द्विपक्षीय व्यापार में ‘बड़ा नुकसान’ झेलना पड़ सकता है। यूएनक्लोस के पक्षकार देशों के नेताओं के तौर पर मोदी और आबे ने इस बात को दोहराया कि सभी पक्षों को यूएनक्लोस के प्रति पूरा सम्माल दिखाना चाहिए। चीन का रुख एससीएस के क्षेत्र में काफी आक्रामक रहा है। इस पूरे क्षेत्र वह अपना दावा करता है, जबकि वियतनाम, फिलिपीन, ताइवान, मलेशिया और ब्रुनेई भी अपने दावे करते हैं। मोदी और आबे ने उत्तर कोरिया से कहा कि वह कोरिया प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने की दिशा में अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं का पालन करे। उत्तर कोरिया ने इसी साल सितम्बर में पांचवें परमाणु परीक्षण का दावा किया था।

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