बांग्लादेश में पिछले दिनों हुए तख्ता पलट की वजह से देश में कत्लेआम मचा हुआ है। इसी मुद्दे पर दक्षिण एशिया संस्थान के निदेशक माइकल कुगेलमैन ने बीते शनिवार को विल्सन सेंटर से अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा है कि वहां गठित हुई अंतरिम सरकार जितने समय तक सत्ता में रहेगी। देश में सेना की भूमिका और भी निर्णायक होती चलेगी जाएगी। कुगेलमैन ने शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के हाशिये पर होने की भी बात कही। हालांकि उन्होंने ये भी दावा किया कि आने वाले समय में लीग फिर से लोकप्रियता हासिल कर सकती है।

कुगेलमैन कहते हैं, ‘यह एक परेशान करने वाली स्थिति है। अंतरिम सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता कानून और व्यवस्था बहाल करने में विश्वास बनाए रखना चाहिए। देश में अभी पूरी तरह अस्थिरता है और जब तक हिंसा और अशांति कम नहीं हो जाती, तबतक देश सही दिशा की ओर नहीं बढ़ सकता। शांतिपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन को प्रभावित करने के लिए सार्थक प्रयास करना बहुत कठिन होगा। इसके लिए बहुत अधिक काम और बहुत अधिक जांच करना होता है। जमीन पर पुलिस की कोई बड़ी उपस्थिति नहीं है। वहीं बांग्लादेश की सेना कानून और व्यवस्था लागू करने की कोशिश की भूमिका निभाने के लिए में कोई इच्छा नहीं दिखा रही है।’

इसके साथ ही कुगेलमैन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि बांग्लादेश में ऐसी कुछ कहानियां चल रही हैं जो विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों और धमकियों के इस मुद्दे की तुलना में अधिक जांच के लायक हैं। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि हम लोग जानते हैं कि हिंदू समुदाय के सदस्यों पर हमले या धमकी दिए जाने के दस्तावेजी मामले सामने आए हैं।’

बीते दिन हिंदूओं की सुरक्षा को लेकर ढाका में हुआ प्रदर्शन

‘बीते दिन ढाका में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था। जिसमें लोग हिंदूओं की सुरक्षा की मांग कर रहे थे। लेकिन स्पष्ट रूप से कुछ हो रहा है। तो भले ही कोई फर्जी खबर हो, हम जानते हैं कि हमलों और धमकियों के घटनाओं की पुष्टि की गई हैं। मुझे लगता है कि बांग्लादेश के लिए शांतिपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में सार्थक प्रगति करना बहुत मुश्किल होगा। जब तक कानून और व्यवस्था की स्थिति, धार्मिक अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से हिंदुओं पर हमले और धमकियां का पूरी तरह से समाधान नहीं किया जाता है।’

जन आंदोलन हो गया हिंसक

‘यह बहुत स्पष्ट है कि आपके पास एक जन आंदोलन था जो बड़ा तो हुआ साथ ही हिंसक भी हो गया। जो मूल रूप से एक शांतिपूर्ण विरोध था। यह बिल्कुल साफ हो गया कि शेख हसीना जनता का समर्थन खो रही थीं और फिर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सेना ने अनिवार्य रूप से उनके द्वारा दिए गए लॉकडाउन आदेश को लागू करने से इनकार कर दिया था। मुझे लगता है कि हसीना के नजरिए से बांग्लादेश में रहना और उस भूमिका में काम करना असंभव हो गया था। खासकर जब बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी ढाका में उनके आवास के करीब आ रहे थे। ऐसे में उनके बेटे ने उन्हें बताया कि अब देश छोड़ने का समय आ गया है और हसीना देश छोड़ें।’