रूस और यूक्रेन के बीच में भीषण युद्ध कई महीनों बाद में जारी है। स्थिति सिर्फ इतनी बदली है कि एक बार फिर रूस कमजोर पड़ा है और यूक्रेन फिर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहा है। यानी कि रूस और यूक्रेन में जोरदार टक्कर जारी है। अब एक तरफ रूस को यूक्रेन का मुकाबला करना है, दूसरी तरफ उसे अपने देश में भी बगावत का सामना करना पड़ रहा है।

पुतिन के फेलियर का सिर्फ एक हिस्सा वागनर

वागनर आर्मी ने रूस और रूसी सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। वो तेजी से मॉस्को की तरफ बढ़ गई है। वागनर आर्मी इसे बगावत से ज्यादा न्याय की लड़ाई बता रही है। लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी? आखिर ऐसा क्या हुआ कि वागनर आर्मी को पुतिन के खिलाफ भी आवाज उठानी पड़ गई? सवाल ये भी कि क्या राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू कर कोई बड़ी गलती कर दी है? क्या उनके तमाम आकलन अब गलत साबित हो रहे हैं?

सबसे पहले वागनर आर्मी वाले विवाद को समझने की कोशिश करते हैं। असल में रूस में एक उसकी आधिकारिक सेना है जिसका सरकार से सीधा कनेक्शन है, जो सामने युद्ध लड़ती है। जिसके सैनिक अगर मारे जाएं तो उन्हें शहीद का दर्जा भी दिया जाता है। लेकिन दूसरी है ये वागनर आर्मी, जिसे प्राइवेट मिलिट्री आर्मी भी कहा जा सकता है। ये आधिकारिकत तौर पर ना सरकार से जुड़ी है ना रूस से इसका कोई वास्ता है। लेकिन फिर भी काम ये रूस के लिए करती है, रूस के लिए इसके सैनिक मरते हैं।

वागनर आर्मी कौन है, रूस को कैसे फायदा?

यहां ये समझना जरूरी है कि रूस के लिए ये प्राइवेट आर्मी बहुत काम की है। इस आर्मी वो कोई भी सीक्रेट मिशन करवा सकती है, किसी भी युद्ध में उन्हें भेज सकती है, और फिर भी रूस की कोई जवाबदेही नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि वागनर एक प्राइवेट आर्मी है, उसके किसी भी एक्शन की रूस जिम्मेदारी नहीं लेगा। बड़ी बात ये भी है कि रूस में कितने सैनिकों की मौत हुई, इसका एक डेटा रखा जाता है। लेकिन वागनर आर्मी के कितने सैनिक मरे, इसका कोई आंकड़ा जारी नहीं करना होता, रखने की जरूरत भी नहीं पड़ती। इसी वजह से रूस की सरकार के लिए ये एक वैगनर आर्मी बड़ी मदद है।

अब बताया जा रहा है कि इसी वागनर आर्मी के कई जवान रूस-यूक्रेन जंग में मारे गए हैं। यूक्रेन को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने में भी इस वागनर आर्मी का ही हाथ है। लेकिन एक ऑडियो मैसेज जो सामने आया है, उसके मुताबिक वागनर आर्मी ने आरोप लगाया है कि यूक्रेन में रूस के मिसाइल हमलों ने असल में उन्हीं के कई सैनिकों को मार दिया है। इसी वजह से वागनर के सैनिक अब वापस रूस लौट आए हैं। उनका कहना है कि न्याय के लिए रूसी सरकार के खिलाफ भी विरोध किया जाएगा।

पुतिन की रणनीति कर गई बैकफायर

वैसे वागनर की ये बगावत तो पुतिन के लिए सिर्फ एक सियासी झटका है। असल में जब से यूक्रेन के साथ युद्ध छिड़ा है, पुतिन की रणनीति कई मौकों पर फेल साबित हुई है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जो पुतिन पहले दावे के साथ कह रहे थे कि 72 घंटों में यूक्रेन को घुटनों पर ला दिया जाएगा, अब ये युद्ध कई महीने पुराना हो चुका है, रूस को बड़ा नुकसान हुआ है और यूक्रेन ने कई इलाकों पर फिर अपना कब्जा भी जमाना शुरू कर दिया है। यानी कि व्लादिमीर पुतिन की हर रणनीति जमीन पर फेल हुई है।

कीव पर कब्जे की कोशिश विफल

जरा याद कीजिए पुतिन युद्ध की शुरुआत में क्या कहा था, उन्होंने साफ कर दिया था कि सबसे पहले यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा किया जाएगा। उन्हें पूरा भरोसा था कि उनके लड़काे कुछ ही घंटों में उस कार्रवाई को अंजाम दे देंगे। लेकिन ये सिर्फ एक ख्याली पुलाव था, क्योंकि हकीकत में तो रूसी सैनिकों को कीव में घुसने में ही तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अभी तक हालत ये है कि कीव पूरी तरह यूक्रेन के कब्जे में है।

पश्चिमी देश एकजुट, प्रतिबंधों की बौछार

वैसे पुतिन की फेल रणनीति का एक कारण ये भी रहा कि वे पश्चिमी देशों के जवाबी एक्शन का आकलन ही नहीं कर पाए। असल में इससे पहले जब क्रीमिया और डोनबास पर रूस ने साल 2015 में हमला किया था, तब पश्चिमी देशों ने कोई ज्यादा हो हल्ला नहीं किया। अब पुतिन इसी गलतफहमी में बैठ गए कि अगर वे यूक्रेन पर हमला कर भी देंगे, पश्चिमी देश शांत बैठ जाएंगे। लेकिन हुआ इसके उलट है, ये युद्ध का एक निर्णायक पहलू बन गया है।

अपनों का विरोध और कम होता विश्वास

अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक, कई देशों ने इस समय रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। कई देश अब रूस का तेल नहीं ले रहे हैं। कई देशों ने विदेशों में मौजूद रूस की प्रॉपर्टी को फ्रीज कर दिया है। इसी तरह ट्रैवल बैन भी लगया गया है। यानी कि आर्थिक मोर्चे पर रूस को पूरी तरह घेरने की तैयारी हुई है। इसका असर वहां की अर्थव्यवस्था पर साफ दिख रहा है। लोगों में आक्रोश है, पहली बार पुतिन के खिलाफ भी नारेबाजी हुई है। कई लोगों को हिरासत में लिया गया है, धमकियां जारी की गई हैं।

अब जिस यूक्रेन युद्ध में रूस इतनी विफलातों से जूझ रहा है, उसी की एक कड़ीये वागनर आर्मी भी है जो इस समय बगावत पर उतर आई है। वो यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ने से मना नहीं कर रही, लेकिन जिस अंदाज में रूस द्वारा काम किया जा रहा है, वो उसे अखर रहा है। इसी वजह से अब युद्ध के बीच में ही एक और युद्ध शुरू हो चुका है जो पुतिन और वागनर आर्मी के बीच चल रहा है।

पुतिन के करीबी थी वागनर चीफ, सरकार तक पहुंच

यहां ये समझना जरूरी है कि एक समय पुतिन और वागनर के चीफ प्रिगोझिन येवगेनी अच्छे दोस्त थे, भरोसा भी काफी ज्यादा था। लेकिन बताया जाता है कि इस यूक्रेन युद्ध ने जमीन पर सबकुछ बदल दिया। वागनर सेना का आरोप है कि उन्हें ना समय पर कोई हथियार मिलते हैं, ना दूसरी जरूरी चीजें। ये आरोप ही बताने के लिए काफी हैं कि रूस ने इस प्राइवेट मिलिट्री का सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है।

प्रिगोझिन येवगेनी की बढ़ती ताकत से परेशान थे पुतिन?

लेकिन इस पूरे विवाद की एक और थ्योरी जो कुछ तथ्यों पर आधारित मानी जा सकती है। असल में पिछले कुछ समय में वागनर सेना काफी ताकतवर बन गई है। उसके रूसी सरकार के साथ भी सीधे तार रहे हैं। कई रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि व्लादिमीर पुतिन खुद वागनर के ऑपरेशन्स में दिलचस्पी दिखाते हैं। इस आर्मी का जो मेन दफ्तर है, वो भी रूस की सबसे बड़ी इंटेलिजेंस एजेंसी GRU के काफी करीब है, यहां तक कहा जाता है कि इस प्राइवेट आर्मी के सैनिकों के लिए पासपोर्ट भी ये GRU ही जारी करती है। रूसी हथियारों, उनके मिलिट्री बेस भी वागनर सेना के पहुंच में रहते हैं।

हत्या के डर से बगावत करने की प्लानिंग?

रूस के सियासी गलियारों में थ्योरी ये चल रही है कि सरकार किसी तरह से वागनर के चीफ प्रिगोझिन येवगेनी को मरवाना चाहती है। कारण सिंपल है, उसकी ताकत बढ़ती जा रही है, रूसी सेना में दखल, सरकार तक पहुंच, ये सारे वो कारण हैं जिस वजह से सरकार को अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिख रहा है। माना जा रहा है कि इसी वजह से प्रिगोझिन येवगेनी अपनी जान के लिए खतरा मान रहे थे और उनकी तरफ से ये बगावत कर दी गई है।