2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से पहले, शेवरॉन, शेल और एक्सॉन मोबिल की सहयोगी कंपनियों सहित पश्चिमी तेल दिग्गज कंपनियों ने न सिर्फ दाम बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए बजटों पर हस्ताक्षर किए, बोलियों में हेराफेरी की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और कजाकिस्तान के सहयोगियों को करोड़ों डॉलर के आकर्षक ऑफर दिए।
खोजी पत्रकारों के अंतर्राष्ट्रीय संघ Caspian Cabals द्वारा की गई जांच में यह खुलासा किया गया, जिसमें इंडियन एक्सप्रेस भी साझेदार है। यह जांच 1500 किलोमीटर लंबी कैस्पियन पाइपलाइन कंसोर्टियम (सीपीसी) के बारे में है, जो रूस और कजाकिस्तान दोनों द्वारा उपयोग की जाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कच्चे तेल की पाइपलाइन प्रणालियों में से एक है।
सीपीसी पश्चिमी कजाकिस्तान के बड़े तेल क्षेत्रों से और रूसी उत्पादकों से कच्चा तेल लेकर रूस के काला सागर बंदरगाह नोवोरोस्सिय्स्क तक ले जाती है, जहां से इसे टैंकरों के माध्यम से विश्व भर के खरीदारों तक पहुंचाया जाता है।
सीपीसी ने अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में 63.5 मिलियन टन तेल पहुंचाया
2023 में, सीपीसी ने अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में 63.5 मिलियन टन तेल पहुंचाया। सीपीसी कच्चे तेल का लगभग 10 प्रतिशत रूसी है, बाकी कजाकिस्तान के बड़े तेल क्षेत्रों काशागन और कराचागानक से आता है। 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से , सीपीसी ने रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनी ट्रांसनेफ्ट और रोसनेफ्ट के शेयरधारकों को कम से कम 816 मिलियन डॉलर का भुगतान किया है और रूसी अधिकारियों को टैक्स के रूप में 321 मिलियन डॉलर का भुगतान किया है।
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शेवरॉन कॉर्प के नेतृत्व में पश्चिमी कंपनियों ने उन उपठेकेदारों को भुगतान किया जिन्होंने काम नहीं किया। एक मामले में, उन्होंने काम के लिए 48 मिलियन डॉलर का अग्रिम भुगतान अधिकृत किया,जिसमें दक्षिणी रूस में एक नए पंपिंग स्टेशन के लिए बिजली की लाइनें बनाना शामिल था जो भुगतान होते ही गायब हो गया। पश्चिमी तेल कम्पनियां- शेवरॉन, एक्सॉनमोबिल, इटली की एनी स्पा और शेल की सहयोगी कम्पनियां भारी-भरकम ठेके देकर पुतिन के सहयोगियों और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली कजाख अभिजात वर्ग को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही थीं।
भारत सीपीसी-रूस तेल के लिए सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है
भारत 2022 की शुरुआत तक सीपीसी तेल, कजाखस्तान के साथ-साथ रूसी तेल के खरीददारों में शामिल नहीं था। अब, भारत सीपीसी-रूस (सीपीसी-आर) तेल के लिए सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है, जिसके बाद तुर्की और चीन का स्थान है।
कमोडिटी मार्केट एनालिटिक्स फर्म केप्लर के टैंकर डेटा से पता चलता है कि 2024 के पहले नौ महीनों में लगभग 67 प्रतिशत सीपीसी-आर क्रूड भारत पहुंच गया, जबकि 2023 के लिए यह आंकड़ा 83 प्रतिशत से भी अधिक है। जनवरी 2021 से फरवरी 2022 के बीच सीपीसी-आर ढोने वाले 72 टैंकरों में से सिर्फ़ 5 ही भारतीय बंदरगाहों तक पहुंचे थे।
भारत की यह कंपनियां हैं बड़ी खरीददार
टैंकर डेटासे पता चलता है कि भारत की निजी क्षेत्र की रिफाइनिंग दिग्गज रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) सीपीसी-आर कच्चे तेल की सबसे बड़ी खरीदार रही है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसीएल), हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (एचपीसीएल) और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स (एमआरपीएल) भी इस तेल को खरीद रही हैं।
आंकड़ों से पता चलता है कि 2024 के पहले नौ महीनों में, भारतीय रिफाइनरों ने संयुक्त रूप से 30 मिलियन बैरल से अधिक सीपीसी-आर कच्चे तेल का आयात किया और अभी भी हर महीने शिपमेंट आ रहा है। इस अवधि के दौरान दुनिया भर में कुल 45.56 मिलियन बैरल सीपीसी-आर कच्चे तेल का निर्यात किया गया। इस दौरान अन्य आयातक तुर्की और चीन थे जबकि कुछ मात्रा पाकिस्तान को भी भेजी गई।
इस अवधि के दौरान रूस से भारत के कुल तेल आयात में सीपीसी-आर का हिस्सा 6 प्रतिशत से अधिक था। भारत के कुल तेल आयात में रूस का हिस्सा 40 प्रतिशत से अधिक है। इसके विपरीत, भारतीय रिफाइनरियों द्वारा सीपीसी-कजाकिस्तान (सीपीसी-के) कच्चे तेल की खरीद बहुत कम रही है।
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