25 अगस्त को रोहिंग्या मुसलमानों के सामूहिक पलायन को तीन साल हो जायेंगे। 2017 में इसी तारीख को बड़ी संख्या में म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान सांप्रदायिक हिंसा की वजह से बांग्लादेश पलायन कर गए थे। रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार के सैनिक पर प्रताड़ना, बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया था। जिसके बाद कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने भी यह कहा था कि म्यांमार की आर्मी जान बुझ कर निर्दोष लोगों को मार रही है और इन लोगों पर हमले के लिए हेलिकाप्टर का भी इस्तेमाल कर रही है।
बांग्लादेश पलायन करने के बाद भी रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। ये लोग अभी भी बाँस और प्लास्टिक से बने शेड में रहते हैं। अभी पिछले दिनों बांग्लादेश और म्यांमार की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों की वापसी को लेकर वार्ता की थी। लेकिन सांप्रदायिक हिंसा की वजह से इन शरणार्थियों ने वापस म्यांमार जाने से मना कर दिया। जिसके चलते रोहिंग्या मुसलमान अब सुरक्षित जीवन की चाह में पश्चिम देशों की तरफ रुख करना चाहते हैं।
इन शरणार्थियों का मानना है कि अगर हम कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में पुनर्वासित हो जाएंगे तो जीवन यापन करने में कोई समस्या नहीं आएगी। असल में शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने कई पश्चिमी देशों के साथ मिलकर इस अभियान को शुरू किया है। इस अभियान के तहत 2006 से लेकर 2010 तक करीब 920 रोहिंग्या मुसलमानों को ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में बसाया गया था। इसी उम्मीद के चलते कई रोहिंग्या मुस्लिम युवा शादी भी नहीं कर रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर हमारा परिवार बड़ा होगा तो हम पश्चिमी देशों में नहीं बस पाएंगे।
रोहिंग्या मुस्लिम पिछले कई समय से बांग्लादेश से भी पलायन कर रहे हैं। इस चक्कर में ये लोग कई बार बिना अपने जान की परवाह किए हुए नाव से हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय करके पश्चिमी एशियाई देशों में भी जा रहे हैं। इतनी लंबी दूरी तय करने के चक्कर में इनमें से कई लोग अकाल मौत के गले में भी समा जाते हैं। कभी कभी तो ये कई दिनों तक भूखे और प्यासे ही मलेशिया जैसे देशों तक पहुँचना चाहते हैं। लेकिन पिछले ही दिनों मलेशिया की सरकार ने भी इन लोगों को अपने यहाँ आने से मना कर दिया है।
रोहिंग्या मुसलमान मूल रूप से म्यांमार के रखाइन प्रान्त के रहने वाले वाले है। इन मुसलमानों को म्यांमार के स्थानीय लोग अवैध बंगलादेशी प्रवासी भी कहते हैं। म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है। म्यांमार की सरकार इन मुसलमानों को नागरिकता देने से हमेशा से इनकार करती रही है। हालांकि ये म्यामांर में कई पीढ़ी से रह रहे हैं। असल में रखाइन स्टेट में 2012 से ही सांप्रदायिक हिंसा जारी है। इस हिंसा में काफी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और करीब एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं।
म्यांमार में बचे हुए रोहिंग्या मुसलमान आज भी वहां के जर्जर कैंपों में रह रहे हैं। वहां रोहिंग्या मुसलमानों को भयंकर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। 1970 से ही म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी के रूप में बांग्लादेश आते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से बांग्लादेश ने भी इन रोहिंग्या मुसलमानों को शरणार्थी के रूप में स्वीकारना बंद कर दिया है।