पोलैंड की कंजरवेटिव सरकार पर विपक्ष का आरोप है कि वह लोकतांत्रिक और कानूनी राज्य की संरचनाओं को कमजोर कर रही है, लेकिन रविवार को होने वाले संसदीय चुनावों से पहले हुए सर्वे बताते हैं कि देश का बहुमत सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी पीआईएस के साथ है। ये चुनाव खुद पोलैंड के लिए और यूरोपीय संघ के साथ उसके रिश्तों के लिए महत्वपूर्ण हैं। अगर पीआईएस चुनावों से मजबूत होकर निकलती है तो वह देश के अंदर अपनी मनपसंद संरचना कायम कर सकती है और पिछले चार साल से ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के साथ शरणार्थी जैसे मुद्दों पर उसकी तनातनी जारी रहेगी।
कानून और न्याय पार्टी (पीआईएस) के नेता यारोस्लाव काचिंस्की की समस्या लोगों का समर्थन नहीं, लोगों को मतदान केंद्रों पर लाना है। सर्वे में समर्थन इतना तगड़ा दिख रहा है कि पार्टी के मैनेजरों की चिंता है कि कहीं जीत से आश्वस्त उसके समर्थक वोट देने ही न जाएं। पीआईएस का चुनाव अभियान अच्छा चल रहा है। चार साल से वह देश में अकेले शासन कर रही है। अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी है। यूरोपीय संघ और जर्मनी जैसे देशों की बचत की नीति के विरोध में सरकार का अरबों यूरो का सामाजिक कल्याण कार्यक्रम जनता को पसंद आ रहा है। पोलैंड को अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर अमेरिका का समर्थन मिल रहा है और देश में भारी विदेशी निवेश भी हो रहा है।
पोलैंड की संसद दुनिया की सबसे पुरानी संसदों में शामिल है और 1493 से नियमित रूप से उसकी बैठक हो रही है। वह 1991 से अपने वर्तमान रूप में है जब पहली बार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए। निचले सदन सेम के 460 सदस्यों का चुनाव आनुपातिक पद्धति से होता है। इसका मतलब जिस पार्टी या गठबंधन को जितने प्रतिशत वोट मिलते हैं उतने ही प्रतिशत सीटें मिलती हैं। संसद में पहुंचने के लिए पार्टियों को कम से कम 5 प्रतिशत और गठबंधनों को कम से कम 8 प्रतिशत वोट पाना जरूरी होता है। सेम के अधिकार भी दूसरी संसदों की तरह ही हैं, लेकिन उसे मंत्रियों की राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति के दो हफ्ते के अंदर अनुमोदन करने का भी अधिकार है। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय समझौतों का भी संसद द्वारा अनुमोदन जरूरी होता है।
विपक्ष के पास नेतृत्व का अभाव: इस समय पोलैंड में जो राजनीतिक स्थिति है, वह विपक्ष के लिए आसान नहीं। न उनके पास कोई कद्दावर नेता है और न हीं उनका चुनाव अभियान सरकार को घेरने में कामयाब हुआ है। लोगों के बीच खराब लोकप्रियता के कारण विपक्षी नेता ग्रेगोर्स शेटिना ने चुनाव का नेतृत्व पूर्व संसद प्रमुख मागोर्साटा किदावा ब्लोंस्का को सौंप दिया है जिनका नाम देश के कई इलाकों में मतदाता भी नहीं जानते। इसीलिए हाल में हुए सर्वे में पीआईएस 42 प्रतिशत समर्थन के साथ आगे हैं जबकि सबसे करीबी उदारवादी विपक्षी मोर्चा नागरिक गठबंधन 22 प्रतिशत समर्थन के साथ सत्ताधारी पार्टी से बहुत ही पीछे है। पीआईएस की लोकप्रियता में यूरोपीय संघ के साथ शरणार्थी, पर्यावरण संरक्षण और न्यायिक सुधारों पर हुए विवादों का बड़ा हाथ है। इसी बीच अमेरिका ने पोलैंड के लोगों के लिए वीजा मुक्त यात्रा की अनुमति दे दी है। पोलैंड के लोगों को इसका सालों से इंतजार था। वैचारिक तौर पर पोलैंड को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के रूप में अपना साथी मिला है।
पोलैंड के चुनावों में मुख्य मुद्दा लोकतांत्रिक और कानूनी संरचनाओं की रक्षा है। लेकिन विपक्ष अपने नारों से मतदाताओं को नहीं समझा पा रहा है कि पीआईएस लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है। ये सही है कि पीआईएस सरकार ने महत्वपूर्ण स्थानों पर अपने लोगों को बिठा दिया है, जजों की रिटायरमेंट उम्र घटाकर अदालती संरचना को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की है, लेकिन विपक्ष के पास भी लोकतांत्रिक संरचनाओं में सुधार का कोई प्रस्ताव नहीं है। यूरोपीय अदालत द्वारा सरकार के न्यायिक सुधारों के एक हिस्से को गैरकानूनी ठहराए जाने के बाद अदालती संरचना में असमंजस के हालात हैं। लेकिन लोगों में इस मुद्दे पर कोई दिलचस्पी नहीं है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विपक्ष के नेताओं को भी नहीं पता कि वे कंजरवेटिव सरकार द्वारा फैलाई गई अव्यवस्था को कैसे दूर करेंगे।
न्यूनतम मजदूरी दोगुना करने का वादा: चुनाव में सत्ताधारी पार्टी न्यूनतम मजदूरी को दोगुना करने का वादा कर रही है। शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से कम मजदूरी को आर्थिक उन्नति का महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता रहा है। यह विदेशी पूंजी निवेश को आकर्षित करने की अहम दलील होती है। लेकिन अब पीआईएस पार्टी के नेता यारोस्लाव काचिंस्की कह रहे हैं कि पोलैंड को कम वेतन वाला देश नहीं रहना चाहिए। कंजरवेटिव सरकार का मानना है कि उद्यमी तकनीकी विकास में तभी पूंजी लगाएंगे जब काम महंगा होगा। काचिंस्की का कहना है कि पोलैंड के उद्यमों के पास 200 अरब स्लोटी जमा है जिसका इस्तेमाल शुरू होना चाहिए।
काचिंस्की की कंजरवेटिव पार्टी की सफलता छोटी पार्टियों को मिलने वाले समर्थन पर भी निर्भर करेगी। यदि वामपंथी मोर्चे को दस प्रतिशत तक वोट मिलता है, या धुर दक्षिणपंथी कंफेडरेशन पार्टी संसद में पहुंचती है तो पीआईएस की सफलता छोटी पड़ सकती है। लेकिन पिछले चुनावों में उसे मिले 38 प्रतिशत वोट ही पूर्ण बहुमत के लिए काफी थे, इस बार तो उसे 40 से ज्यादा प्रतिशत मिलने की संभावना व्यक्त की जा रही है। पिछले चार सालों में पोलैंड उदारवादी और कंजरवेटिव धड़े में बंट गया है। हर कोई इस तैयारी में लगा मिलता है कि जैसे ही मौका मिले देश छोड़ कर चले जाए। स्कूलों में बच्चों को प्रतिस्पर्धा सिखाई जा रही है, कॉलेजों में छात्र अंग्रेजी सीख रहे हैं। ब्रेक्जिट की वजह से बहुत से पोलैंडवासियों का मोहभंग हुआ है लेकिन अमेरिका में बिना वीजा बिना जा सकने से उनकी उम्मीदों को नए पंख लगे हैं।
भारतीय संबंधों पर भी होगा असर: पोलैंड में होने वाले चुनावों का भारत के साथ संबंधों पर भी असर होगा। दोनों देशों के राजनीतिक संबंध हमेशा ही अच्छे रहे हैं लेकिन आर्थिक संबंधों में उतना जोर नहीं रहा है। पारस्परिक संबंधों के संवेदनात्मक शुरुआत द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हुई जब वर्तमान में गुजरात के नवानगर के महाराजा जाम साहेब ने अपने परिवारों से बिछड़े करीब 600 अनाथ पोलिश बच्चों को पनाह दी। युद्ध खत्म होने के बाद उनके परिवारों को खोजा गया और वे इंग्लैंड, अमेरिका या पोलैंड में अपने परिवारों के पास चले गए। आज पोलैंड की राजधानी वारसा में स्क्वायर ऑफ गुड महाराजा है। दोनों देशों के बीच व्यापार बहुत ज्यादा नहीं है। 2018 में भारत ने पोलैंड को 180 करोड़ यूरो का माल बेचा जबकि करीब 70 करोड़ यूरो का माल खरीदा। 2000 से 2019 तक पोलैंड ने भारत में कुल 60 करोड़ यूरो का सीधा निवेश किया है जो इस अवधि में हुए निवेश का 0.16 प्रतिशत है।
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार में संबंधों को बेहतर बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई है। भारत के विदेश मंत्री ने हाल में पोलैंड का दौरा किया है जो किसी भारतीय विदेश मंत्री का 32 साल बाद पहला दौरा था। भारत यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने की पूरी संभावना को देखते हुए विजेग्राद ग्रुप के देशों को ज्यादा महत्व देता दिख रहा है जिसमें पोलैंड के अलावा हंगरी, चेक गणतंत्र और स्लोवाकिया शामिल हैं। ये देश अभी यूरोपीय संघ में विपक्ष की भूमिका में हैं। पोलैंड भी एशिया में भारत के महत्व को समझता है और उसने पिछले ही साल मुंबई में वाणिज्य दफ्तर खोला है। पोलैंड की एयरलाइंस लॉट ने पिछले ही महीने वारसा और नई दिल्ली के बीच सीधी उड़ान भी शुरू की है। पोलैंड इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य है और वह सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का समर्थक है। अगले साल अस्थाई सदस्य के लिए होने वाले चुनाव में उसने भारत का समर्थन करने की बात कही है। कश्मीर पर वह भारत के रुख का समर्थन करता है और कहता है कि दोनों देशों को इस मुद्दे को आपसी बातचीत के जरिए सुलझाना चाहिए।