हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों (रेअर अर्थ एलीमेंट्स) को लेकर सहमति बनी है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। भारत जल्द ही अमेरिका की अगुवाई वाले खनिज सुरक्षा साझेदारी या ‘मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप’ (एमएसपी) का हिस्सा बन जाएगा। यह अमेरिका की अगुवाई वाली बहुराष्ट्रीय साझेदारी है, जिसका मकसद ऊर्जा और खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करना है।
हालांकि, इस दिशा में अभी बातचीत की लंबी प्रक्रिया चलेगी। दरअसल, पूरे विश्व में दुर्लभ खनिज तत्वों का सामरिक क्षेत्र में इस्तेमाल बढ़ने की संभावना है। नए मारक हथियार विकसित करने में दुनिया की महाशक्तियां जुट गई हैं। इस तरह के नीतिगत प्रयासों की वकालत की जा रही है, जिससे हथियार क्षेत्र में काम करने वाले उद्यमियों को पर्याप्त प्रोत्साहन मिले।
‘एमएसपी’ से क्या होगा
भारत और अमेरिका के बीच खनिज सुरक्षा साझेदारी ‘मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप’ (एमएसपी) का उद्देश्य पूरी दुनिया में अहम खनिजों की आपूर्ति शृंखला को मजबूत करने का है। अमेरिका ने ये महत्त्वाकांक्षी पहल जून 2022 में शुरू की थी। इस साझेदारी के घोषित मकसद यह है कि अहम पृथ्वी तत्वों का, ‘उत्पादन, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रीकरण’ इस तरह से की जानी चाहिए, जिससे हर देश को अपने आर्थिक विकास की संपूर्ण संभावना का लाभ उठाने में मदद मिले और वो अपने भूगर्भीय संसाधनों का फायदा उठा सकें।
‘एमएसपी’ में शामिल होकर भारत 12 अन्य साझीदार देशों और यूरोपीय संघ के समूह का हिस्सा बन सकेगा। दुर्लभ खनिजों की तलाश से लेकर खनन, प्रसंस्करण और उत्पादन तक इस क्षेत्र को सामरिक दर्जा दिए जाने की जरूरत ये देश महसूस कर रहे हैं और इसी दिशा में काम हो रहा है। 17 धात्विक तत्वों वाले ये बेहद दुर्लभ खनिज इस बदलाव की धुरी बदलते जा रहे हैं। इनमें आवर्त सारिणी (पीरियोडिक टेबल) में दर्ज 15 लैंथेनाइड्स के साथ स्कैंडियम और यिट्रियम शामिल हैं।
विश्व स्तर पर क्या है हाल
दुनिया भर में सेमीकंडक्टर का निर्माण इन पृथ्वी तत्वों पर बहुत अधिक निर्भर है। ये तत्व, ज्यादातर इलेक्ट्रानिक्स उपकरण बनाने में अहम भूमिका अदा करते हैं। चीन ने इन खनिजों के उत्पादन में लगभग एकाधिकार स्थापित कर लिया है। दुनिया के कुल दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में 2008 में चीन की हिस्सेदारी 90 फीसद थी, और 2011 तक चीन का हिस्सा बढ़कर 97 फीसद हो गया था।
चीन और अमेरिका के व्यापारिक विवादों के चलते, इन खनिजों की कीमत बहुत बढ़ गई है। स्वतंत्र रूप से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, चीन में हर साल एक लाख चार हजार टन दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की खपत होती है, जो पूरी दुनिया के कुल खपत का लगभग 67 फीसद है। उत्पादन की इतनी विशाल क्षमता के कारण, वैश्विक स्तर पर दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की कीमत में हेरा-फेरी से इजाफा करने और इन तत्वों के निर्यात को नियंत्रित किया जा सकता है। 24,000 टन वार्षिक उत्पादन क्षमता वाले दुनिया के चौथे सबसे बड़े दुर्लभ पृथ्वी तत्व उत्पादक आस्ट्रेलिया को इसकी मांग में तीव्र वृद्धि से सबसे अधिक फायदा हुआ है। हालांकि यह उत्पादन चीन के 1,68,000 टन के मुकाबले काफी कम है।
कहां खड़ा है भारत
दुर्लभ खनिजों के दुनिया भर के भंडारों में भारत की हिस्सेदारी छह फीसद है। इस मामले में भारत पांचवां बड़ा देश है। खनिजों की तलाश का काम अब तक मोटे तौर पर सरकार के जिम्मे रहा है। ब्यूरो आफ माइंस और परमाणु ऊर्जा विभाग ये काम करते रहे हैं। खनन और शोधन का काम ‘इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड’ के पास रहा है।
एक नीतिगत कदम के तौर पर खनन मंत्रालय ने 2021 में खनन अधिनियम में संशोधन किया था, ताकि खनिजों का उत्पादन बढ़ाया जा सके। इसके लिए तकनीक की जरूरत है और विशेषज्ञ इसी जरूरत के लिए भारत की ‘मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप’ (एमएसपी) में भागीदारी को अहम मान रहे हैं। भारत में इसे ‘सामरिक क्षेत्र’ के तौर पर मान्यता देने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है। चिप और दूसरे अहम इलेक्ट्रानिक उपकरण भविष्य में भारत में ही बनाने के उच्च तकनीक में तरक्की के ख्वाब को पूरा करने के लिए इसे जरूरी बताया जा रहा है।
भविष्य की संभावनाएं
आने वाले समय में अमेरिका की अगुवाई वाले एमएसपी के जरिए यह क्षेत्र लगभग उसी तरह का दर्जा हासिल कर लेगा, जैसा परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) है। इसकी स्थापना 1974 में हुई थी। साझीदार के रूप में उभर रहे आस्ट्रेलिया और भारत दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति शृंखला को मजबूत कर सकते हैं ओर लचीलापन ला सकते हैं।
वर्ष 2030 तक दुर्लभ धातुओं की वैश्विक मांग 3,15,000 टन तक पहुंचने की संभावना है, जिसकी मुख्य वजह इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों की तरफ वैश्विक झुकाव है। आरईई की आपूर्ति श्रृंखला में चीन का प्रभुत्व होने के चलते कई देश आपस में सहयोग करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
क्या कहते हैं जानकार
आरईई की घरेलू मांग में वृद्धि मुख्यत: रक्षा और पर्यावरण तकनीक में प्रयोग होने वाले स्थायी चुंबकों की मांग के कारण है। भारत के पास दुर्लभ पृथ्वी तत्व उद्योग के लिए रणनीतिक योजना की कमी है, लेकिन फिर भी सरकार उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है।
- पीवी सुंदर राजू, नेशनल जिओग्राफिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ वैज्ञानिक
भारत में निम्न परत के प्रसंस्करण की क्षमताओं को इसलिए नहीं बढ़ाया जा पा रहा है क्योंकि 2019 में भारतीय सरकार ने खनिज अनुसंधान को निजी कंपनियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया था, इसकी वजह बताई गई थी उनका अवैध खनन, निर्यात और भ्रष्टाचार।
- पिनाक रंजन चक्रवर्ती, पूर्व राजनयिक