विकास को भारत की समस्याओं के समाधन की ‘जड़ी बूटी’ करार देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा यह बात देश के सवा सौ करोड़ लोगों तक पंहुचाना और इसके लिए उन्हें जोड़ना बहुत कठिन काम है पर वह ‘मक्खन नहीं, पत्थर पर लकीर खींचना जानते हैं’ ।
मोदी ने यहां क्यूंग ही यूनिवर्सिटी में भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले 30-35 साल में चीन और दक्षिण कोरिया विकास की राह पर चल कर पूरी तरह से बदल गए। इसके लिए उनके सामने समस्याएं आईं लेकिन उन समस्याओं का समाधान खोज लिया और विकास के रास्ते पर हिम्मत से चल पड़े।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि सवा सौ करोड़ देशवासियों तक इस बात को पहुंचाना, इस काम के लिए हरएक को जोड़ना, कठिन काम है। लेकिन मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो मक्खन पर लकीर खींचते हैं। मैं पत्थर पर लकीर करना जानता हूं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसकी जड़ी-बूटी मुझे नजर आ रही है, और जो जड़ी-बूटी लेकर मैं चल पड़ा हूं उस जड़ी-बूटी का नाम है-विकास। इसलिए विकास पर ही हमने सर्वाधिक ध्यान केंद्रित रखा है। नतीजतन एक साल के भीतर हम दुनिया में सबसे तेज विकास करने वाले देश के रूप में उभर कर खड़े हो गए।’’
भारत में आए बदलाव का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा, एक समय था जब लोग कहते थे, पता नहीं पिछले जन्म में क्या पाप किए कि हिन्दुस्तान में पैदा हो गये, ये कोई देश है… ये कोई सरकार है… ये कोई लोग हैं… चलो छोड़ो, चले जाओ कहीं और। और लोग निकल पड़ते थे। कुछ वर्ष पहले उद्योगजगत के लोग कहते थे कि अब तो यहां व्यापार नहीं करना चाहिए, अब यहां नहीं रहना है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘मैं इसके कारणों में नहीं जाता और न ही कोई राजनीतिक टीका-टिप्पणी करना चाहता हूं। लेकिन यह धरती की सच्चाई है कि लोगों में एक निराशा थी, आक्रोश भी था। और मैं आज विश्वास से कह सकता हूं कि अलग-अलग जीवन क्षेत्रों के लोग आज भारत वापस आने के लिए उत्सुक हो रहे हैं।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि वह राजनीतिक लाभ के लिए कुछ नहीं करना चाहते। एक साल में बदलाव हुआ। देश का युवा परिवर्तन चाहता है और हम उस दिशा में लगे हुए हैं। हर क्षेत्र में हमें विकास की नई ऊंचाई को पार करना है।
मोदी ने कहा कि वह दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए भारत को विनिर्माण केंद्र बनना चाहते हैं। उन्होंने विदेशों में बसे भारतीयों को स्वदेश लौटने और देश में निवेश करने का निमंत्रण देते हुए कहा कि पिछले एक साल में भारत के बारे में लोगों का मूड और धारणा बदल चुकी है।
उन्होंने कहा, ‘‘आज लोग भारत आने को लेकर काफी उत्साहित हैं। यह मूड में बदलाव का प्रतीक है। अखिर यह जनता ही है जो राष्ट्र का निर्माण करती है। दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी को भारत आना चाहिए।’’
मोदी ने पूर्ववर्ती संप्रग सरकार पर उसकी पूरब की ओर देखों यानी ‘लुक ईस्ट’ नीति पर चुटकी लेते हुए कहा कि हमने इसे बहुत देख लिया और अब वक्त है पूरब पर काम करने यानी ‘एक्ट ईस्ट’ का। उन्होंने कहा कि यह भू-भाग, अड़ोस-पड़ोस के सारे देश तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं।
मोदी ने कहा कि अब हिन्दुस्तान का सूर्य उदय हो चुका है, अब हिन्दुस्तान विश्व के अन्दर अपनी एक बहुत बड़ी अहम भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा 21वीं सदी एशिया की सदी बन कर रहेगी और हिंदुस्तान बड़ी भूमिका निभाएगा। साल भर में दुनिया के लोगों का भारत के प्रति नजरिया बदला। इंडिया के बिना ब्रिक्स संभव नहीं है। पिछले दो-तीन महीनों में दुनिया की सभी मंचों पर चर्चा हुई है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।
विश्व के अर्थशास्त्रियों का हवाला देते हुए मोदी ने कहा कि दुनिया के सामने एक नया शब्द दिया गया ‘ब्रिक्स’… ब्राजील, रूस, इंडिया, चाइना, साउथ अफ्रीका। तब कहा गया था कि ब्रिक्स देशों का समूह, विश्व के आर्थिक जीवन का संचालन करेगा। ये 20वीं सदी के आखिरी दिनों में और 21वीं सदी के प्रारंभ में कहा जाता था।
उन्होंने कहा कि लेकिन पिछले 10 साल, 15 साल के भीतर-भीतर दुनिया के स्वर बदल गये। आर्थिक विशेषज्ञों के स्वर बदल गये हैं और वो कहने लगे कि लगता है कि ब्रिक्स में ‘‘आई’’ (इंडिया) लुढ़क रहा है, ‘आई’ तो नीचे जा रहा है, सब तरफ चिंता हो रही थी कि जो सपना ब्रिक्स के रूप में पूरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था के लिए देखा था वो अब क्यों लुढ़क रहा है, क्योंकि ‘आई’ लुढ़क रहा है।’’
मोदी ने कहा कि लेकिन पिछले एक वर्ष में दुनिया के स्वर बदले हैं। दुनिया का नजरिया भी बदल गया है। दुनिया को अब लगने लगा है कि आई (इंडिया) ब्रिक्स के बिना संभव नहीं होगा। पिछले 2-3 महीने में, चाहे आईएमएफ हो, विश्व बैंक हो, रेटिंग एजेंसी हो या मूडी हो सबने अलग-अलग मंचों पर एक स्वर से कहा है कि भारत दुनिया की सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है।
उन्होंने कहा कि आज एशिया को लगता है कि हिन्दुस्तान जिस तरह से उठ खड़ा हुआ है, 21वीं सदी एशिया की सदी बनकर रहेगी।