सिडनी की घटना को वहां के सुरक्षा तंत्र ने काफी होशियारी से संभाला। लेकिन उसके बाद पेशावर की घटना ने दुनिया के लोगों को हिला दिया है। यह सोचे-समझे आतंकवाद की घिनौनी करतूत है।
अगर अभी भी दुनिया के सभी देश आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिये एकजुट नहीं हुए और इसको संबंधित देश का आंतरिक मामला कह कर पल्ला झाड़ते रहे तो ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।
केवल दो मिनट का मौन रख कर या राष्ट्रीय शोक घोषित करके ही हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होते रहे तो ऐसे लोग एक दिन अपना वर्चस्व स्थापित कर लेंगे। आतंकवाद को किसी जाति और धर्म से न जोड़ें। धर्म ,राजनीति और सेना- तीनों ही अपना अपना काम देखे। एक दूसरे के क्षेत्र मे हस्तक्षेप करने से अनेक समस्याओं का जन्म हो रहा है।
यश वीर आर्य, नई दिल्ली
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