विज्ञान ने बहुत प्रगति कर ली है लेकिन अभी भी इस ब्रह्मांड में बहुत सारी चीजें ऐसी हैं जिसकी गुत्थी अनसुलझी हैं। वो आज भी वैज्ञानिक समुदाय के लिए रहस्य बने हुए हैं। कुछ इसी तरह की एक रहस्यमयी घटना 11-12 अगस्त की आधी रात होने जा रही है। खगोलविदों के मुताबिक उस रात आसमान से धरती पर उल्का पिंडों की बारिश जैसी खगोलीय घटना होगी। हालांकि, ऐसी घटना हरेक साल जुलाई से अग्सत के बीच होती है लेकिन इस बार उल्का पिंड ज्यादा मात्रा में गिरेंगे, इसलिए कहा जा रहा है कि 11-12 अगस्त की रात आसमान में अंधेरा नहीं, बल्कि उजाला होगा।

ऐस्ट्रोनोमी-फिजिक्स डॉट कॉम की एक वायरल स्टोरी के मुताबिक, इस साल होने वाली उल्का पिंडों की बारिश इतिहास के उल्का पिंडों की बारिश से सबसे ज्यादा चमकीली और रोशनी वाली होगी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इसकी पुष्टि की है। Nasa.gov  की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल गिरने वाले उल्का पिंड की मात्रा पहले के मुकाबले ज्यादा होगी। नासा के मुताबिक इस साल 11-12 अगस्त की मध्यरात्रि में प्रति घंटे 200 उल्का पिंड गिर सकते हैं। नासा के मुताबिक उत्तरी गोलार्द्ध में इसे अच्छे तरीके से देखा जा सकता है।

गौरतलब है कि खगोल विज्ञान में आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर तेजी से पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (meteor) कहते हैं। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे ‘टूटते हुए तारे’ अथवा ‘लूका’ कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुंचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। अक्सर हरेक रात में अनगिनत संख्या में उल्काएं आसमान में देखी जा सकती हैं लेकिन इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या कम होती है।

खगोलीय और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत होते हैं। इनकी स्टडी से हमें यह पता चलता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएं होती हैं। इस प्रकार ये पिंड खगोल विज्ञान और  भू-विज्ञान के बीच संबंध स्थापित करते हैं।

क्या होता है उल्का पिंड?