पाकिस्तान के एक पूर्व खुफिया अधिकारी ने उसामा बिन लादेन के ठिकाने की जानकारी सीआइए को दी थी। उसने यह जानकारी अल-कायदा प्रमुख लादेन के सिर पर रखे 2.5 करोड़ डॉलर के इनाम के बदले में दी थी। उसामा आइएसआइ के संरक्षण में ऐबटाबाद शहर में एक बंदी के रूप में रह रहा था। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई है।

‘द डॉन’ ने अमेरिकी खोजी पत्रकार और लेखक सेमर एम हर्श के हवाले से कहा, ‘अगस्त 2010 में पाकिस्तान के एक पूर्व वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास में सीआइए के तत्कालीन स्टेशन प्रमुख जोनाथन बैंक से संपर्क किया। उसने सीआइए को बिन लादेन का पता बताने के प्रस्ताव दिया और इसके एवज में वह इनाम मांगा, जो कि वाशिंगटन ने 2001 में उसके सिर पर रखा था।’
हर्श ने कहा कि खुफिया अधिकारी सेना का सदस्य था, जो कि अब वाशिंगटन में रह रहा है। वह सीआइए के लिए एक सलाहाकार के रूप में काम कर रहा है। मैं आपको उसके बारे में इससे ज्यादा नहीं बता सकता।’

अमेरिका ने अधिकारी द्वारा उपलब्ध करवाई गई जानकारी की पुष्टि की और इस परिसर को उपग्रह की निगरानी में रखा। अमेरिकियों ने बाद में आइएसआइ को सूचित किया, जिसने कि गाजी, तरबेला में एक प्रकोष्ठ बनाया। वहां ‘द सील्स के एक व्यक्ति और दो अन्य लोगों ने इस अभियान को अंजाम देने से पहले हमला बोलने का अभ्यास किया।

उन्होंने कहा कि हालांकि यह एक मुश्किल फैसला था लेकिन पाकिस्तान को अंतत: राजी किया गया और उसे उसामा को मारने की योजना के बारे में बताया गया। हर्श ने कहा कि ओबामा प्रशासन ने उसामा को मारने के अभियान के बारे में जो कुछ भी बताया, वह काल्पनिक था और असल कहानी पूरी तरह अलग थी।

उन्होंने डॉन को बताया,‘सबसे जबरदस्त झूठ यह बोला गया था कि पाकिस्तान के दो सबसे वरिष्ठ सैन्य नेताओं जनरल अशफाक परवेज कियानी (तत्कालीन सेना प्रमुख) और जनरल अहमद शुजा पाशा (तत्कालीन आइएसआइ प्रमुख) को अमेरिकी अभियान के बारे में कभी नहीं बताया गया था।’ जब अमेरिकियों ने पाकिस्तानी सरकार से संपर्क किया और उसामा के बारे में पूछा तो आइएसआइ ने जोर देकर कहा कि उसे मार दिया जाए और उसकी मौत की घोषणा इस अभियान के एक सप्ताह बाद की जाए। हर्श ने कहा कि सऊदी सरकार को भी उसामा के ऐबटाबाद में मौजूद होने की जानकारी थी। उसने पाकिस्तानियों को सलाह दी थी कि वह उसे एक बंदी के रूप में रखें। उसामा आइएसआइ का बंदी था। वह उनकी निगरानी के बगैर कहीं नहीं गया।

अमेरिकियों का यह कहना था कि अल-कायदा प्रमुख हिंदुकुश पर्वत श्रृंखला में मिला था। ऐसा इसलिए कहा गया था ताकि पाकिस्तान या अफगानिस्तान पर उसे अपने यहां रखने का इल्जाम न लगे। हर्श ने कहा कि आइएसआइ उसे मारना चाहती थी क्योंकि वे कोई गवाह नहीं चाहते थे। हर्श ने कहा कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उसामा के मारे जाने की कवर स्टोरी जारी करने से पहले जनरल कियानी और जनरल पाशा से संपर्क नहीं किया था। उन्होंने यह खबर अपने देश के लोगों के साथ एक सीधे प्रसारण में साझा की थी।

हर्श ने कहा,‘इस खबर से पाकिस्तान को धक्का लगा। यह उनके लिए बहुत अपमानजनक था।’ उन्होंने कहा,‘पाकिस्तान के पास बुरी नहीं बल्कि एक अच्छी सेना है लेकिन, इस खबर ने उसे बुरी दिखने वाली छवि के साथ पेश किया।’ हर्श ने यह भी कहा कि उसामा के ठिकाने का पता लगाने में सीआइए की मदद करने के लिए पेशावर की जेल में बंद चिकित्सक डॉक्टर शकील अफरीदी सीआइए से ही जुड़े थे लेकिन वह इस अभियान के बारे में नहीं जानते थे। अफरीदी को असल कहानी छिपाने के लिए एक आवरण की तरह इस्तेमाल किया गया।

उसामा को दो मई 2011 की रात को ऐबटाबाद में अमेरिकी नेवी सील ने एक अभियान में मार गिराया था।