ब्रिटिश हाई कोर्ट ने 68 साल पुराने हैदराबाद फंड केस में भारत को झटका दिया है। तीन करोड़ पौंड या 300 करोड़ रुपये के इस केस में भारत की तरफ से याचिका डाली गई थी कि कोर्ट इस पैसे पर पाकिस्तान का हक जमाने की बात को निरस्त कर दे। वहीं, कोर्ट ने मंगलवार (21 जून) को अपने फैसले में कहा है कि इस पैसे में पाकिस्तान का भी हक हो सकता है। कोर्ट ने फिलहाल यह तय नहीं किया है कि यह पैसा किसको मिलेगा। इसके लिए ट्रायल चलेगा और उसके बाद फैसला होगा।

क्या है केस: यह विवाद और रकम हैदराबाद रियासत से जुड़ी है। 1948 में रियासत का एक खाता लंदन के नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक में हुआ करता था। भारत की आजादी के वक्त हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली ने भारतीय संघ का हिस्सा बनने से मना कर दिया था। लेकिन हैदराबाद पर भारतीय सेना के कब्जे के साथ ही 18 सितंबर, 1948 को वे इसके लिए तैयार हो गए। उस वक्त रियासत के वित्त मंत्री मोइन नवाज जंग लंदन में थे। उन्हें जैसे ही पता चला कि उस्मान अली भारतीय संघ के साथ हो गए हैं उन्होंने नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक से 1,007,940 पौंड और 9 शिलिंग को पाकिस्तानी उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहमतउल्लाह के खाते में जमा करवा दिया। पाकिस्तान के उच्चायुक्त का खाता भी इसी बैंक में था।

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इसके बाद निजाम को इस बात का पता चलते ही उन्होंने बैंक को संदेश भिजवाया कि सारी रकम फिर से उनके खाते में जमा की जाए। लेकिन बैंक ने ऐसा करने से मना कर दिया। इसपर निजाम अदालत पहुंच गए। दूसरी तरफ से पाकिस्तान ने भी इस पर मालिकाना हक जता दिया। आखिरकार मामला इंग्लैंड के कोर्ट में पहुंच गया। इधर भारत ने भी इस रकम पर दावा ठोक दिया। भारत का कहना था कि पैसा हैदराबाद की जनता का है और रियासत का विलय भारतीय संघ में हो चुका है इसलिए पूरी रकम भारत को मिलनी चाहिए।

अदालती कार्रवाई के कारण यह खाता फ्रीज हो गया। तबतक यह मामला ‘हैदराबाद फंड’ नाम से मशहूर हो चुका था। 1957 में यह विवाद हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पहुंचा। हाउस ऑफ लॉर्डस ने इसपर इम्युनिटी यानी ‘संप्रभु सुरक्षा’ लगा दी। इसके मुताबिक अब इस पर ब्रिटेन की अदालत में मुकदमा नहीं चल सकता था और खाता तभी अनफ्रीज हो सकता था जब तीनों पक्ष किसी सहमति पर पहुंच जाएं।

1967 में हैदराबाद के निजाम की मृत्यु के बाद से यह मामला लगभग शांत था। इसके बाद 2008 में भारत सरकार ने पाकिस्तान को प्रस्ताव दिया कि निजाम के वंशजों के साथ मिलकर इस फंड के बंटवारे पर सहमति बनाई जाए। लेकिन पाकिस्तान ने यह प्रस्ताव मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद उसने खुद 2013 में हैदराबाद फंड पर अपना अधिकार जताने के लिए लंदन हाईकोर्ट में एक अपील दाखिल करने की कार्रवाई शुरू कर दी।

नवंबर, 2013 में इस मामले की पहली सुनवाई होनी थी। लेकिन इससे पहले ही पाकिस्तान सुनवाई से हट गया। उसने अदालत में एक याचिका दाखिल कर कहा कि चूंकि वह भारत की तरफ से कूटनीतिक दबाव का सामना कर रहा है और सभी पक्षकारों के साथ बंटवारे की सहमति बनाने की कोशिश कर रहा है इसलिए फिलहाल सुनवाई स्थगित कर दी जाए।

इस मामले पर इसी जनवरी में अदालत ने पाकिस्तान की याचिका खारिज कर भारत और निजाम के वंशजों को सुनवाई का हिस्सा बनने को कहा था। दो दिन पहले उसने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान हैदराबाद फंड पर संप्रभु सुरक्षा का अधिकार खो चुका है और अब इस पर फैसला अदालत करेगी।

क्या है ताजा मामला: भारत कोर्ट में यह साबित करने में असमर्थ रहा कि पाकिस्तान का पैसों पर दावा सही नहीं है। वहीं कोर्ट की तरफ से कहा गया है कि उसको ऐसे कई सबूत मिलें हैं जिनसे पता लगता है इस पैसे पर पाकिस्तान का भी हक है।