पाकिस्तान द्वारा तालिबान प्रमुख मुल्ला उमर की मौत के बाद आतंकवादी समूह के भीतर पैदा हुए सत्ता संघर्ष के चलते ठप पड़ी वार्ता को फिर से बहाल करने के लिए अफगानिस्तान पर दबाव बनाए जाने की संभावना है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा तथा विदेश मामलों पर सलाहकार सरताज अजीज दो दिवसीय ‘रीजनल को-ऑपरेशन कॉन्फ्रेन्स ऑन अफगानिस्तान’ (आरईसीसीए) में शामिल होने के लिए शुक्रवार को अफगानिस्तान जाने की योजना बना रहे हैं।

राजनयिक सूत्रों के अनुसार, समझा जाता है कि वह सम्मेलन से अलग, विदेश मंत्री सलाहुद्दीन रब्बानी सहित अफगान अधिकारियों के साथ मुलाकात करेंगे। सूत्रों ने बताया ‘हमारा मानना है कि आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता बातचीत है और अफगानिस्तान को आरोप-प्रत्यारोप में उलझने के बजाय तालिबान के साथ वार्ता बहाल करना चाहिए।’

पाकिस्तान ने कहा कि वह अफगानिस्तान की और अफगान नीत शांति प्रक्रिया का समर्थन करता है और इस संदर्भ में अपनी मदद की पेशकश करता है। शांति वार्ता की शुरुआत जुलाई में की गई थी जब दोनों पक्षों के बीच बातचीत का पहला दौर इस्लामाबाद के समीप मरी में हुआ था लेकिन 31 जुलाई को निर्धारित, बातचीत का दूसरा दौर होने से पहले ही अफगान अधिकारियों ने उमर अब्दुल्ला की मौत की खबर दे दी।

तालिबान ने इस सप्ताह माना कि उनके नेता की मौत दो साल से भी पहले हो गई थी लेकिन वह इस खबर को पश्चिमी सैनिकों की वापसी तक दबाए रखना चाहते थे। पिछले साल राष्ट्रपति अशरफ गनी के सत्ता संभालने के बाद अफगान पाकिस्तान संबंधों में सुधार हुआ था लेकिन हाल ही में हुई बमबारी की घटनाओं ने विश्वास बहाली को गहरा नुकसान पहुंचाया क्योंकि गनी ने अपने देश में उग्रवाद के लिए इस्लामाबाद पर दोष मढ़ा जबकि पाकिस्तान ने इस आरोप को खारिज कर दिया।

समझा जाता है कि पाकिस्तान के अफगान तालिबान के साथ संबंध हैं। वर्ष 2001 में अपना शासन ध्वस्त होने के बाद अफगान तालिबान ने पाकिस्तान के अशांत कबायली क्षेत्र में अपना ठिकाना बना लिया। विश्लेषकों का मानना है कि उग्रवादी गुट में कुछ सत्ता संघर्ष होने के बाद, गुट पर नये तालिबान प्रमुख मुल्ला अख्तर मंसूर का पूरा नियंत्रण है।