गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में यहां आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए भारत ने रविवार (18 सितंबर) को कहा कि आतंकवाद से लड़ने के लिए ‘ठोस कार्रवाई’ जरूरी है। इसके साथ ही भारत ने 120 देशों के समूह से कहा कि वह आतंकवाद से निपटने के लिए प्रभावी सहयोग सुनिश्चित करे। 17वें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गैर मौजूदगी में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि आतंकवाद ‘आज मानवाधिकारों के उल्लंघन के सबसे प्रबल स्रोतों में से’ एक है और इसका इस्तेमाल सरकारी नीति के एक अस्त्र के तौर पर किया जाना भी समान रूप से निंदनीय है। अंसारी ने ब्लॉक की समग्र बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि अब वक्त आ गया है कि ‘हमारा आंदोलन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ठोस कदम उठाने की जरूरत को रेखांकित करे।’

उन्होंने कहा, ‘हमें हमारे आंदोलन के भीतर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करनी है जो सुरक्षा, संप्रभुता एवं विकास पर मंडराने वाले प्रमुख खतरे यानी आतंकवाद से मुकाबले में प्रभावी सहयोग सुनिश्चित करे।’ अंसारी की ये टिप्पणियां एक ऐसे समय पर आई हैं, जब भारत पाकिस्तान द्वारा सीमा पार से आतंकवाद को सहयोग दिए जाने से जुड़ी अपनी चिंता को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने हांग्झोउ में हुए जी20 सम्मेलन में, हांग्झोउ में हुई ब्रिक्स बैठक में और लाओ पीडीआर में हुए आसियान एवं पूर्वी एशिया सम्मेलनों में पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही उसके द्वारा आतंकवाद को दिए जाने वाले सहयोग की ओर इशारा किया था।

अंसारी ने अपने संबोधन में संयुक्त राष्ट्र सुधार का मुद्दा भी पुरजोर तरीके से उठाया। उन्होंने कहा, ‘आज हमें यह पूछने की जरूरत है कि 1945 में महज 51 सदस्य देशों के साथ गठित हुआ संगठन क्या वाकई उस अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपयुक्त है, जिसमें इस समय 193 स्वतंत्र संप्रभु देश हैं और अपने नागरिकों की कुशलता एवं सुरक्षा के समक्ष चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।’ वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र में अपने सम्मेलन में वैश्विक नेताओं ने सुरक्षा परिषद के तत्काल सुधार की अपील की ताकि संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी के लिए उपयुक्त बनाया जा सके। इस संदर्भ में अंतर-सरकारी वार्ता प्रक्रियाएं जारी हैं।

अंसारी ने कहा, ‘हमें संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें सत्र का इस्तेमाल यह सुनिश्चित करने के लिए करना चाहिए कि अंतर सरकारी चर्चाओं का यह कदम आगे बढ़े।’ उन्होंने कहा कि 1961 में इस समूह के गठन के बाद से वैश्विक परिदृश्य बदला है। अंसारी ने इस बात पर जोर दिया कि ‘संप्रभुता के लिए सम्मान’, ‘विवादों के शांतिपूर्ण निपटान’ और ‘अंतरराष्ट्रीय सहयोग’ के मूल्यों एवं सिद्धांतों की नींव पर आंदोलन खड़ा किया गया था और ये मूल्य एवं सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे पहले सम्मेलन के दौरान थे। उन्होंने कहा, ‘अगले तीन साल के लिए हमारी थीम शांति, संप्रभुता एवं विकास के लिए एकजुटता है और यह हमारी स्थापना के सिद्धांतों के अनुरूप है।’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि एजेंडा 2030 में सतत विकास लक्ष्यों के सफलतापूर्वक लागू हो जाने पर सभी नागरिकों के जीवन में सुधार आएगा।

शांति और संप्रभुता को विकास के लिए पूर्वापेक्षित बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि विकास एवं सहयोग के लिए शांतिपूर्ण वैश्विक माहौल जरूरी है। अपने संबोधन को पूरा करते हुए अंसारी ने कहा कि विश्व के सबसे बड़े शांति आंदोलन के रूप में गुटनिरपेक्ष आंदोलन को राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों पर होने वाली अंतरराष्ट्रीय बहसों के पुरोधा की भूमिका में होना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन को अपने कामकाज के तरीके को आधुनिक बनाना चाहिए।

अंसारी ने कहा, ‘हमने 1995 में कार्टाजेना सम्मेलन में इस पर चर्चा शुरू की थी और यह चर्चा जारी रहनी चाहिए तथा इससे परिणाम भी आने चाहिए ताकि गुटनिरपेक्ष आंदोलन अपनी पूर्ण क्षमता हासिल कर सके।’ संकट से जूझ रहे वेनेजुएला ने गुटनिरपेक्ष देशों के 120 सदस्यों वाले इस समूह की अध्यक्षता शनिवार को शुरू की थी। वेनेजुएला ओपीईसी का सदस्य है और दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडारों वाला देश है। इसे इस समूह की चक्रीय अध्यक्षता मिली है।