चौंका देने वाले नतीजे में श्रीलंका के मतदाताओं ने राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के 10 साल के शासन का अंत कर दिया और कभी उनके सहयोगी रहे मैत्रीपाल सिरीसेना को नया राष्ट्रपति चुना जिन्होंने अपने वादे के मुताबिक देश में बदलाव लाने का संकल्प जताया है। नतीजों की घोषणा के कुछ घंटे बाद 63 वर्षीय सिरीसेना ने नए राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। सत्ता के इस शांतिपूर्ण तरीके से हस्तांतरण में नए प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने भी शपथ ली जो अब तक विपक्ष के नेता थे।
सिरीसेना और विक्रमनायके दोनों ने ही इंडिपेंडेंस स्क्वायर में पद व गोपनीयता की शपथ ली। सिरीसेना को सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति के श्रीपावन ने शपथ दिलाई। नए राष्ट्रपति ने कहा, ‘मैं सुनिश्चित करूंगा कि जिस बदलाव का मैने वादा किया है वह लाऊं। मैं श्रीलंका के दूसरे देशों के साथ संबंध मजबूत करूंगा ताकि सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते रहें।’ उन्होंने स्पष्ट कहा कि वह दूसरा कार्यकाल नहीं मांगेंगे।
उन्होंने कहा ‘हमारे पास एक विदेश नीति होगी जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय और सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ हमारे संबंधों को मजबूत करेगी ताकि हम हमारे लोगों को अधिकतम लाभ दिला सकें।’ चुनाव में सिरीसेना (63) को 6,217,162 वोट (51.2 फीसद) मिले, जबकि राजपक्षे को 5,768,090 (47.6 फीसद) वोट मिले। चुनाव आयुक्त महिंदा देशप्रिया ने चुनाव के नतीजे घोषित करते हुए कहा, ‘मैं घोषणा करता हूं कि मैत्रीपाल सिरीसेना श्रीलंका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं।’
राजपक्षे ने तीसरी बार निर्वाचित होने की इच्छा रखते हुए संविधान में संशोधन कर तय समय से दो साल पहले चुनाव कराए। चुनाव नतीजों की घोषणा से काफी पहले राजपक्षे (69) ने सुबह में ही हार स्वीकार कर ली और राष्ट्रपति भवन (टेंपल ट्री) खाली कर गए। सिरीसेना ने चुनाव में जीत मिलने पर निष्पक्ष चुनाव के लिए राजपक्षे का शुक्रिया अदा किया।
ऐसा लगता है कि बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक तमिलों और मुसलमानों ने राजपक्षे के खिलाफ वोट डाला। वर्ष 2009 में एलटीटीई के खिलाफ युद्ध के आखिरी चरण में हुए मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों को लेकर और सत्ता के विकेंद्रीकरण के वादे के मुताबिक संविधान संशोधन नहीं करने पर तमिल उनसे नाराज हो गए थे। सिरीसेना कुछ ही समय पहले विपक्षी खेमे में शामिल हुए थे। उन्हें मुख्य विपक्षी युनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) और बौद्ध राष्ट्रवादी जेएचयू (हेरीटेज पार्टी) और अन्य तमिल व मुसलिम पार्टियों का समर्थन मिला था।
वह चुनाव की घोषणा की पूर्व संध्या पर दलबदल करने से पहले तक राजपक्षे नीत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री व सत्तारूढ़ श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के महासचिव थे। सत्तारूढ़ गठबंधन के 26 सांसद चुनाव प्रचार के दौरान राजपक्षे का साथ छोड़ गए थे। राजपक्षे ने अपनी छवि परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली बना ली थी। उन्होंने अपने कई सगे संबंधियों को शीर्ष पदों पर बिठा दिया और पार्टी के पुराने नेताओं को किनारे कर दिया, जिससे असंतोष बढ़ा।
अपने पराजित प्रतिद्वंद्वी की तरह सिरीसेना भी कट्टर बौद्ध हैं। उनकी एक ग्रामीण पृष्ठभूमि है। वह अंग्रेजी नहीं बोलते और सार्वजनिक रूप से हमेशा ही श्रीलंका के राष्ट्रीय परिधान में नजर आते हैं। हालांकि, नव निर्वाचित राष्ट्रपति निवर्तमान राष्ट्रपति की नीतियों को दरकिनार नहीं कर सकते हैं। तमिल इलाकों में चुनाव प्रचार के दौरान सिरीसेना ने स्पष्ट कर दिया था वह राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन मिलने के बदले तमिल कट्टरपंथियों के प्रति नरमी नहीं बरतेंगे और न ही उत्तरी क्षेत्र से सेना वापस बुलाएंंगे।
सिरीसेना ने कहा था, ‘मेरा इरादा उत्तरी क्षेत्र से सेना वापस बुलाने का नहीं है। राष्ट्रपति के नाते राष्ट्रीय सुरक्षा मेरी जिम्मेदारी होगी।’ उन्होंने कहा था कि वह देश को विभाजित नहीं होने देंगे और न ही श्रीलंका में एलटीटीई को फिर से सिर उठाने देंगे। उन्होंने कहा था, ‘हमने शक्तियां विकेंद्रित करने का या देश को बांटने का तमिल नेशनल अलायंस के साथ या श्रीलंका मुसलिम कांग्रेस के साथ कोई समझौता नहीं किया है।’
