अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को ज्यादा महत्व न देते हुए यहां आधिकारिक मीडिया ने कहा है कि ओबामा और प्रधानमंत्री मोदी के बीच के ‘रोमांस’ को ज्यादा आंकने की जरूरत नहीं है क्योंकि दोनों ही पक्षों के सामने मुश्किल वार्ताएं हैं, जहां जाकर दोनों पक्षों की अपेक्षाएं टकरा सकती हैं।
सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के एक लेख के अनुसार, ‘‘अमेरिका और भारत का जो उत्साहपूर्ण रवैया और दोनों नेताओं के बीच जो प्रेम दिख रहा है, उससे दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में किसी स्थायी सुधार का संकेत नहीं मिलता।’’
सत्ताधारी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के अखबार ने ओबामा की दूसरी बार भारत की अभूतपूर्व यात्रा पर चीन की चिंता जताते हुए पिछले कुछ दिनों में कई लेख प्रकाशित किए थे। चीनी विश्लेषकों ने जोर देकर कहा था कि इसका उद्देश्य चीन और भारत के सुधरते संबंधों को नुकसान पहुंचाना है।
लेख में लिखा गया, ‘‘बड़ी-बड़ी बातों और संधियों को अक्सर अमेरिका और भारत के बीच के उच्चस्तरीय दौरों में पेश किया जाता है लेकिन जब यात्राएं खत्म होती हैं तो उनपर क्रियांवयन काफी पीछे रह जाता है और शब्दों का प्रत्यक्ष कार्यों के रूप में रूपांतरण नहीं हो पाता। हालिया यात्रा में भी संभवत: इसी तरीके को दोहराया जाएगा।’’
लेख में कहा गया, ‘‘वाशिंगटन हमेशा महज एक रणनीतिक साझेदार यानी भारत जैसे देशों और लंबे समय के सहयोगियों यानी जापान एवं दक्षिणी कोरिया के बीच एक स्पष्ट सीमा खींचकर रखता है।’’
इसमें कहा गया, ‘‘अमेरिका अपनी ‘एशिया की धुरी’ रणनीति के तहत भारत को दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में एक क्षेत्रीय साझेदार के रूप में देख रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच नयी दिल्ली के बढ़ते प्रभाव के चलते अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत के सहयोग की भी जरूरत है।’’
लेख में कहा गया, ‘‘भारत का इरादा अमेरिका के साथ अपने महत्वपूर्ण संबंध से ज्यादा से ज्यादा लाभ लेने का है लेकिन उसे अपनी रणनीतियों का पालन करना है और चीन जैसी अन्य बड़ी ताकतों के साथ अपने महत्वपूर्ण संबंधों का सावधानीपूर्वक आकलन करना है।’’
इसमें कहा गया कि भारत जहां विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को महत्व देता है, वहीं अमेरिका भारत को एक ऐसे बड़े बाजार के रूप में देखता है, जो उसे निवेश का एक बड़ा भंडार और व्यापार के अपार अवसर दे सकता है। लेकिन वह साझा शोध और अत्याधुनिक हथियारों जैसी चीजें भारत को देने में आनाकानी कर रहा है, जबकि नयी दिल्ली सबसे ज्यादा इन्हीं चीजों को चाहता है।
इसमें कहा गया, ‘‘दोनों ही पक्षों की अपेक्षाओं के एकरूप होने से पहले इनके समक्ष मुश्किल समझौते और वार्ताएं हैं।’’ इसमें कहा गया, ‘‘मोदी द्वारा बीते वर्ष मई में पदभार संभाले जाने के बाद से भारत वॉशिंगटन के साथ अपने पेंचदार संबंधों को सुधारने की कोशिश में लगा रहा और इसी बीच वह विश्व की अन्य ताकतों के साथ संबंध विकसित करने में जुटा रहा।’’