म्यांमार की नेता आंग सान सू की का भारत यात्रा से पहले चीन की यात्रा करना प्रमुख शक्तियों के बीच ‘संतुलन’ बनाने की उनकी इच्छा को दर्शाता है। सरकारी शिन्हुआ संवाद समिति ने मंगलवार (23 अगस्त) को इस बात की ओर इंगित करते हुए कहा कि चीन का म्यांमार के साथ व्यापक बुनियादी संबंध हैं और वह सिर्फ सेना पर भरोसा नहीं करता। जापान की मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए सरकारी ‘ग्लोबल टाइम्स’ के एक लेख में लिखा गया है कि सू की ने पिछले हफ्ते चीन की यात्रा की जो ‘यह दिखाता है कि म्यांमार की कूटनीति में चीन भारत की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण दिखता प्रतीत होता है।’ जापान की मीडिया रिपोर्ट में यह कहा गया था कि म्यांमार की कूटनीति में भारत की स्थिति अधिक अहम होगी।
इसके अनुसार, ‘जून में (राष्ट्रीय सलाहकार एवं विदेश मंत्री) सू की ने विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह से मुलाकात के दौरान भारत यात्रा की अपनी इच्छा जाहिर की थी।’ लेख में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की हाल में सम्पन्न म्यांमार यात्रा के संयोग का हवाला देते हुए कहा गया है, ‘सू की ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए ,संभवत: आसियान से बाहर अपनी यात्रा के लिए, चीन को चुना है और ऐसा उन्होंने इसलिए नहीं किया क्योंकि वह भावनात्मक रूप से चीन के करीब हैं, बल्कि इसलिए कि उन्हें म्यांमार की आंतरिक राजनीति और राष्ट्रीय हितों का ख्याल है। वह दो प्रमुख शक्तियों के बीच संतुलन की कोशिश करते हुए देश का नेतृत्व करेंगी।’
सू की की पांच दिवसीय यात्रा के दौरान चीन ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया और ठप पड़े 3.6 अरब डॉलर की लागत वाले मितसोन बांध के निर्माण कार्य में तेजी लाने का बात की। सू की ने म्यांमार में कई विद्रोही समूहों के साथ शांति प्रक्रिया में चीन की मदद मांगी, जिनमें से कुछ चीन के जातीय संगठन भी हैं और उन्हें सीमा पार से सहयोग मिलता है। सरकारी थिंक टैंक के लिखे इस लेख में कहा गया है, ‘चीन की ही तरह भारत ने भी म्यांमार में सैन्य शासन के दौरान म्यांमार सरकार से करीबी रिश्ते रखे। सू की कभी भी भारत की इस दोहरी नीति की प्रशंसक नहीं रहीं कि एक तरफ तो लोकतांत्रिक तत्वों का समर्थन किया जाए और दूसरी तरफ सैन्य शासन से करीबी संबंध रखे जाएं। उनका मानना है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसलिए म्यांमार के लोकतंत्रीकरण के दौरान भारत को म्यांमार के लोकतांत्रित बलों से दूरी नहीं बरतनी चाहिए।’
इसके अनुसार, ‘चीन की तुलना में म्यांमार से रिश्ते विकसित करने में भारत को कई फायदे हैं। उनकी संस्कृति, धर्म और लोकतांत्रिक मूल्यों में काफी हद तक समानता है और लंबे समय से उनके उच्च अधिकारियों के उनसे अच्छे संबंध रहे हैं।’ इसके अनुसार, ‘उदाहरण के लिए सू की की मां भारत में म्यांमार की दूत रह चुकी हैं। सू की ने देश में अपना बचपन बिताया है और इसके अलावा भी भारत ने कई अन्य लोकतांत्रिक गतिविधियों का समर्थन और संरक्षण किया है।’ भारतीय राजनीति में म्यांमार का काफी विशेष स्थान है। इसके अनुसार, म्यांमार बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारे के लिए काफी अहम है जो चीन की ‘सिल्क रोड’ योजना का हिस्सा है और वह तेल एवं प्राकृतिक गैस तथा बंदरगाह निर्माण मामले में चीन के साथ मिलकर काम कर रहा है।

