लंबे समय बाद एक बार फिर अमेरिका और रूस दुनिया पर अपनी चौधराहट जमाने के लिए आमने सामने हैं…इस बार दोनों की शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा सजा है नॉर्वे के बैरट सागर में…जहां अपनी पुरानी हाई नॉर्थ नीति पर वापस आते हुए बाइडेन प्रशासन एक ऐसा कदम उठाया है, जिससे दुनिया पर एक बार फिर कोल्ड वॉर के बादल मंडराने लगे हैं…

8 मार्च 2021, नॉर्वे के बैरट सागर में अमेरिका का सबसे शक्तिशाली बम वर्षक फाइटर जेट B-1 पहुचंता है…जो लोग बी-1 के बारे में नहीं जानते उन्हें हम बता दें कि समुद्र की तरह से करीब 30 हजार फिट की ऊंचाई पर मैक 1.2 की रफ्तार से उड़ान भर सकता है, यानि की आवाज़ की रफ्तार से करीब सवा गुना तेज़…अगर रेंज की बात करें तो ये लॉन्ग रेंज फाइटर जेट बिना रूके अमेरिका से दुनिया के किसी भी कोने तक पहुंच सकता है..और वो भी 22 हजार 600 किलो पेलोड के साथ, जिसमे परमाणु बम भी शामिल हैं… अमेरिका का ये शक्तिशाली फाइटर जेट नॉर्वे पहुंचा है नाटो के उस रियल टाइम वॉर एक्सरसाइज़ का हिस्सा बनने, जिसमें पहले से ही स्वीडन के जेएएस-39 ग्रिपन जैसे खतरनाक फाइटर जेट शामिल हैं…ज़ाहिर सी बात है कि रूस की टेंशन तो बढ़नी ही थी…

बाल्टिक सागर में अमेरिका के साथ पहले से ही वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे रूस को बैरट सागर में अमेरिकी घुसपैट इतनी नागवार गुजरी कि उसने जवाबी कार्रवाई करते हुए नॉर्वे से लगी अपनी समुद्री सीमा में अपनी उत्तरी नौसैनिक बेड़े की तैनाती कर दी…इस बेड़े में खतरनाक मिसाइल क्रूज़र वॉरशिप मार्शल उस्तीनोव भी शामिल है…रूसी नौसैना का उत्तरी बेड़ा, खास तौरपर देश के ऊपर हुए किसी भी परमाणु हमले की सूरत में जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार किया गया है…इसमें लंबी दूरी के फाइटर जेट्स से लैस विमार वाहक पोत एडमिरल कुजनेत्सोव, परमाणु पनडुब्बियां और लंबी दूरी की बैलिस्टिक परमाणु मिसाइलों से लैस क्रूज़र मार्शल उस्तीनोव शामिल है, जो पलक झपकते ही दुनिया के किसी भी देश को अपना शिकार बना सकता है…

कोल्डवॉर के बाद रूस की तरफ से ऐसी आक्रामक तैनाती कभी नहीं देखी गई…माना जा रहा है कि ये अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की नीतियों का नतीजा है…जिसके तहत उन्होंने राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप के उस आदेश को पलट दिया था जिसमें जर्मनी में तैनात अमेरिकी सेना को वापस बुलाने को कहा गया था। नॉर्वे और जर्मनी के अलावा ग्रीनलैंड में भी अमेरिकी सेना मौजूद है। ऐसे में रूस को डर सता रहा है कि कहीं, अमेरिका इस चाल के जरिए यूरोप में उसके प्रभाव को कम करने और घेराबंदी करने की प्लानिंग तो नहीं कर रहा। ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी सेना ने बाल्टिक सागर में अपनी पैठ बनाने की खूब कोशिश की थी।