कोलकाता में गरीबों के जीवन समर्पित कर देने वाली विश्व विख्यात नन मदर टेरेसा को रविवार (4 सितंबर) को औपचारिक तौर पर संत की उपाधि से नवाजा जाएगा। पोप फ्रांसिस एक लाख तीर्थयात्रियों की मौजूदगी में एक सामूहिक कैननाइजेशन सभा की अध्यक्षता करेंगे। इस दौरान सेंट पीटर्स बेसीलिका पर मदर टेरेसा का एक बड़ा चित्र लगा है, जिसमें मदर नीचे लोगों की ओर देखते हुए मुस्कुरा रही हैं। मदर टेरेसा को संत की उपाधि उनकी 19वीं पुण्यतिथि से एक दिन पहले दी जा रही है।
मदर टेरेसा का निधन 87 साल की उम्र में कोलकाता में हुआ था। अपना वयस्क जीवन उन्होंने यहीं गुजारा था। अपना पहला अध्यापन और फिर गरीबों की सेवा का काम भी उन्होंने इसी शहर में शुरू किया था। गरीबों की सेवा के काम ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रमुख रही मदर को धरती की सबसे मशहूर महिलाओं में से एक बना दिया। मेसेडोनिया की राजधानी स्कोप्ये में कोसोवर अलबानियाई माता-पिता के यहां जन्मी मदर टेरेसा को 1979 में नोबल शांति पुरस्कार मिला था। उन्हें दुनियाभर में आत्म बलिदान एवं कल्याण से जुड़े ईसाई मूल्यों की एक मशाल के तौर पर देखा गया।
धर्मनिरपेक्ष आलोचक मदर टेरेसा की आलोचना भी करते रहे। उनका आरोप था कि मदर टेरेसा को गरीबों की स्थिति में सुधार लाने के बजाय धर्मप्रचार की ज्यादा चिंता थी। नन की विरासत को लेकर बहस उनके निधन के बाद भी जारी रही। कई शोधकर्ताओं ने उनके धर्मसंघ की वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया और मरीजों को उपेक्षा बढ़ने, अस्वास्थ्यकर स्थितियों और उनके मिशनों में कमजोर लोगों के सवालिया धर्मांतरण को लेकर साक्ष्य पेश किए।
एक मरते हुए मरीज का हाथ थामने वाली उनकी छवि के जवाब में उनकी एक ऐसी तस्वीर पेश की गई, जो उन्हें हमेशा निजी विमान में ही यात्रा करने में सहज महसूस करने वाली महिला के तौर पर चित्रित करती है। पोप फ्रांसिस जब आज (रविवार, 4 सितंबर) ‘गरीबों के लिए गरीब चर्च’ के अपने दृष्टिकोण को साकार करने वाली इस महिला को श्रद्धांजलि देंगे, तब संशयवादी लोग वेटिकन में मौजूद नहीं होंगे।
अर्जेंटीनियाई मूल के इस पादरी ने शनिवार (3 सितंबर) को कहा, ‘कल हम मदर टेरेसा को संत बनते देखने का आनंद उठाएंगे। वह इसकी हकदार हैं।’ मदर टेरेसा को संत की उपाधि के लिए जरूरी था कि वेटिकन टेरेसा से मदद के लिए की गई प्रार्थनाओं के परिणमस्वरूप हुए दो चमत्कारों को मान्यता दे।

