प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगाह किया कि अगर संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवाद जैसी नये युग की घातक चुनौती का समाधान नहीं किया तो इस वैश्विक संस्था के अप्रासंगिक होने में देर नहीं लगेगी। प्रधानमंत्री ने गुरुवार को भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि संयुक्त राष्ट्र को भी अभी पता नहीं है कि आतंकवाद क्या होता है और कैसे इस संकट से निकला जाए। उन्होंने कहा कि आतंकवाद नये युग की नई चुनौती है, मानवता को चुनौती है और उसको आंकने में भी विश्व का इतना बड़ा संगठन अपना दायित्व नहीं निभा पा रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत ने सालों से संयुक्त राष्ट्र से आग्रह किया है कि आप एक प्रस्ताव पारित कीजिए और उसमें परिभाषित कीजिए कि कौन आतंकवादी है, कौन आतंकवादी देश है, कौन आतंकवादियों की मदद करते हैं, कौन आतंकवादियों का समर्थन करते हैं, कौन सी बाते हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं।

मोदी ने कहा कि एक बार ये बातें ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ में आ जायेंगी तो लोग आतंकवाद से जुड़ने से डरना शुरू करेंगे, उससे हटने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता हूं कि संयुक्त राष्ट्र कब करेगा, कैसे करेगा लेकिन जिस तरह के हालात बन रहे हैं, अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो उस संस्था के भी अप्रसांगिक होते हुए देर नहीं लगेगी। अगर समय के साथ चलना है, चुनौतियों को समझना है और 21वीं सदी को सुख, शांति और चैन की जिंदगी जीने के लिए तैयार करना है तो विश्व नेतृत्व को भी जिम्मेवारियां उठानी पड़ेगी और जितनी देर करेंगे, उतना नुकसान ज्यादा होने वाला है।

आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र पर प्रहार जारी रखते हुए मोदी ने कहा कि देश का दुर्भाग्य देखिए, दुनिया का दुर्भाग्य देखिए, मानवता का दुर्भाग्य देखिए….युद्ध क्या होता है, युद्ध में किसे क्या करना चाहिए, युद्ध से क्यों संकट होते हैं, युद्ध को रोकने के क्या तरीके होते हैं, संयुक्त राष्ट्र के पास जाइये सब चीजें लिखी, पढ़ी मिलेंगी । लेकिन आतंकवाद के लिए पूछो तो अभी संयुक्त राष्ट्र को भी नहीं पता कि आतंकवाद क्या होता है और कैसे वहां पहुंचा जाए और कैसे निकला जाए ।

प्रधानमंत्री ने कहा कि क्योंकि संयुक्त राष्ट्र का जन्म युद्ध की भयानकता के बीच से हुआ, वह युद्ध के दायरे के बाहर सोच नहीं पा रहा है। आतंकवाद नये युग की नयी चुनौती है, मानवता को चुनौती है और उसको आंकने में भी विश्व का इतना बड़ा संगठन अपना दायित्व नहीं निभा पा रहा है।