जम्मू कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को बड़ा आतंकी हमला हुआ। शुरुआती जांच में सामने आया कि आत्मघाती आतंकवादी ने आरडीएक्स से लदा अपना वाहन सीआरपीएफ के काफिले से टकरा दिया। इस हमले को बीते 20 वर्षों का सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जा रहा है। आरडीएक्स का इस्तेमाल कर फिदायीन हमला करना आतंकियों का प्रमुख शगल बन गया है। इसके खतरे से निपटने के लिए वैज्ञानिक शोध चल रहे हैं। जर्मनी में फ्राउनहोफर संस्थान का इंस्टीट्यूट फॉर केमिकल टेकनिक ऐसी मशीन और सेंसर नेटवर्क विकसित करने में जुटा है, जो हवा, पानी और जमीन से स्वत: नमूने जमा कर विस्फोटकों की पहचान कर लेगा और आतंकी मंसूबों को अंजाम देने के पहले पकड़ा जा सकेगा। इस परियोजना में भारत, यूरोप समेत दुनिया के कई देश शामिल हैं।
आरडीएक्स एक विस्फोटक यौगिक है, जो नाइट्रामाइंस के अंतर्गत आता है। यह जैविक नाइट्रेट विस्फोटक का समूह होता है ! इसे साइक्लोनाइट, हेक्सोजेन और टी4 भी कहा जाता है। आरडीएक्स को 1899 में जर्मर्नी के जॉर्ज फ्रेडरिक हेनिंग द्वारा खोजा गया था और आरडीएक्स का नाम ब्रिटिशों द्वारा गढ़ा गया था। यह घर्षण, प्रभाव और तापमान से शुरू किया जा सकता है शक्तिशाली विस्फोटक बनाने के लिए पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया था।
आरडीएक्स (रिसर्च एंड डेवलपमेंट एक्सप्लोसिव या अनुसंधान एवं विस्फोटक विकास) को हेनिंग ने 1899 में शुद्ध सफेद क्रिस्टलाइन्ड पाउडर के रूप में आविष्कार किया था। आरडीएक्स का रासायनिक नाम सायक्लो ट्राइमेथेलाइन ट्राइनाइट्रामाइन है और कभी-कभी इसे प्लास्टिक पलीता भी कहा जाता है और इस विस्फोट को संयुक्त राज्य अमेरिका में सायक्लोनाइट कहते हैं। जर्मर्नी में इसे हेक्सोजेन कहते हैं और इटली में इसे टी-4 कहते हैं। अगर पाली ब्यूटिनक एक्रिलिक एसिड के जैसे प्लास्टिक पदार्थ को आरडीएक्स में थोड़ी मात्रा में मिश्रित किया जाए, तो उसके बाद प्लास्टिक बॉन्डेड विस्फोटक (पीबीई) प्राप्त होता है। प्लास्टिक बॉन्डेड विस्फोटक आज बार-बार आतंकवादी और कट्टरपंथी समूह द्वारा उपयोग किया जाता है। सामान्यत: एक किलोग्राम आरडीएक्स में लगभग 1510 किलो कैलोरी विस्फोटक ऊर्जा होती है।
क्या इस तरह के धमाकों को रोका जा सकता है? क्या ऐसी मशीनें बन सकती हैं, जो विस्फोटकों के बारे में पता लगा लें और उससे होने वाले खतरे के बारे में भी? जर्मनी में फ्राउनहोफर संस्थान का इंस्टीट्यूट फॉर केमिकल टेकनिक इसी पर शोध कर रहा है। संस्थान के विस्फोटक विशेषज्ञ डिर्क रोएसलिंग बताते हैं, इस तरह के विस्फोटक पाउडर की शक्ल में होते हैं। पाउडर कितना खतरनाक है और वह किस चीज से बना है- अगर इसका पता मशीन से चलने लगे तो बहुत आसानी हो जाएगी। ऐसा संभव हो सके इसके लिए बहुत जरूरी है कि उपकरण ज्यादातर विस्फोटकों का डाटा पहचान सकें। इसलिए संस्थान द्वारा निर्मित और अभी परीक्षण से गुजर रहे छोटे छोटे उपकरण यह बता सकते हैं कि विस्फोटक में क्या क्या शामिल है और उससे कितना खतरा है। डिर्क रोएसलिंग के मुताबिक, हर विस्फोटक से खतरा है। पहला कदम है पहचान तय करना। यानी हमारे पास ऐसे उपकरण हैं, जो विस्फोटक पदार्थ की सटीक पहचान बता सकते हैं।
सिर्फ वैज्ञानिक ही इन नए विस्फोटक पदार्थों और मिक्स का पता नहीं लगा रहे, आतंकी भी इसमें जुटे हुए हैं। फ्राउनहोफर संस्थान के मोरिट्ज हाइल के मुताबिक, अलग अलग तकनीकों की मदद से एक सेंसर नेटवर्क बनाने की कोशिश की जा रही है, जो हवा और जमीन से नमूने लेगा। इस तरह का नेटवर्क संदिग्ध पदार्थों के ठोस संकेत मिलने पर अलार्म बजा देगा।